पहेली 28 जुलाई 2016: Difference between revisions

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-[[राजेंद्र प्रसाद]]
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-[[राम मनोहर लोहिया]]
-[[राम मनोहर लोहिया]]
||[[चित्र:Pandit-Ravi-Shankar.jpg|right|100px|border|महात्मा गाँधी]]'महात्मा गाँधी' को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ [[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]] का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। सन [[1925]] में जब अधिकांश कांग्रेसजनों ने [[1919]] के भारतीय शासन विधान द्वारा स्थापित कौंसिल में प्रवेश करने की इच्छा प्रकट की तो [[महात्मा गाँधी]] ने कुछ समय के लिए सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और उन्होंने अपने आगामी तीन [[वर्ष]] ग्रामोंत्थान कार्यों में लगाय। उन्होंने गाँवों की भयंकर निर्धनता को दूर करने के लिए चरखे पर सूत कातने का प्रचार किया और [[हिन्दू|हिन्दुओं]] में व्याप्त छुआछूत को मिटाने की कोशिश की। अपने इस कार्यक्रम को गांधी जी 'रचनात्मक कार्यक्रम' कहते थे। इस कार्यक्रम के ज़रिये वे अन्य भारतीय नेताओं के मुक़ाबले, गाँवों में निवास करने वाली देश की 90 प्रतिशत जनता के बहुत अधिक निकट आ गये थे। उन्होंने सारे देश में गाँव-गाँव की यात्रा की, गाँव वालों की पोशाक अपना ली और उनकी [[भाषा]] में उनसे बातचीत की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महात्मा गाँधी]]
||[[चित्र:Mahatma-Gandhi-2.jpg|right|100px|border|महात्मा गाँधी]]'महात्मा गाँधी' को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ [[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन]] का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। सन [[1925]] में जब अधिकांश कांग्रेसजनों ने [[1919]] के भारतीय शासन विधान द्वारा स्थापित कौंसिल में प्रवेश करने की इच्छा प्रकट की तो [[महात्मा गाँधी]] ने कुछ समय के लिए सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और उन्होंने अपने आगामी तीन [[वर्ष]] ग्रामोंत्थान कार्यों में लगाय। उन्होंने गाँवों की भयंकर निर्धनता को दूर करने के लिए चरखे पर सूत कातने का प्रचार किया और [[हिन्दू|हिन्दुओं]] में व्याप्त छुआछूत को मिटाने की कोशिश की। अपने इस कार्यक्रम को गांधी जी 'रचनात्मक कार्यक्रम' कहते थे। इस कार्यक्रम के ज़रिये वे अन्य भारतीय नेताओं के मुक़ाबले, गाँवों में निवास करने वाली देश की 90 प्रतिशत जनता के बहुत अधिक निकट आ गये थे। उन्होंने सारे देश में गाँव-गाँव की यात्रा की, गाँव वालों की पोशाक अपना ली और उनकी [[भाषा]] में उनसे बातचीत की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महात्मा गाँधी]]
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Revision as of 12:03, 19 July 2016

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मानस का प्रत्येक पृष्ठ भक्ति से भरपूर है। मानस अनुभवजन्य ज्ञान का भण्डार है। यह कथन किस महापुरुष का है?

बाल गंगाधर तिलक
महात्मा गाँधी
राजेंद्र प्रसाद
राम मनोहर लोहिया



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