प्रयोग:माधवी 3: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
'''प्रफुल्लचंद्र सेन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Prafulla Chandra Sen'', जन्म- [[1879]], हुगली जिला) [[बंगाल]] के प्रमुख [[कांग्रेस|कांग्रेसी]] नेता, [[गांधी जी]] के अनुयायी और स्वतंत्रता सेनानी थे।
'''प्रफुल्लचंद्र सेन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Prafulla Chandra Sen'', जन्म- [[1879]], हुगली ज़िला) [[बंगाल]] के प्रमुख [[कांग्रेस|कांग्रेसी]] नेता, [[गांधी जी]] के अनुयायी और स्वतंत्रता सेनानी थे।
 
==जन्म एवं परिचय==
और उस प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रफुल्लचंद्र सेन का जन्म 1879 ई. में हुगली जिले के आरामबाग नामक स्थान में एक गरीब परिवार में हुआ था। वे कोलकाता विश्वविद्यालय से विज्ञान के स्नातक थे। उनके ऊपर आरंभ से लाला लाजपतराय, बालगंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल (लाल बाल पाल) के विचारों का प्रभाव था। रामकृष्णा परमहंस और स्वामी  विवेकानंद से भी वे प्रभावित थे। बाद में जब गांधी जी से संपर्क हुआ तो वे सदा के लिए उनके अनुयायी बन गए।
और उस प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रफुल्लचंद्र सेन का जन्म 1879 ई. में हुगली जिले के आरामबाग नामक स्थान में एक गरीब परिवार में हुआ था। वे कोलकाता विश्वविद्यालय से विज्ञान के स्नातक थे। उनके ऊपर आरंभ से लाला लाजपतराय, बालगंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल (लाल बाल पाल) के विचारों का प्रभाव था। रामकृष्णा परमहंस और स्वामी  विवेकानंद से भी वे प्रभावित थे। बाद में जब गांधी जी से संपर्क हुआ तो वे सदा के लिए उनके अनुयायी बन गए।



Revision as of 11:51, 27 December 2016

प्रफुल्लचंद्र सेन (अंग्रेज़ी: Prafulla Chandra Sen, जन्म- 1879, हुगली ज़िला) बंगाल के प्रमुख कांग्रेसी नेता, गांधी जी के अनुयायी और स्वतंत्रता सेनानी थे।

जन्म एवं परिचय

और उस प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रफुल्लचंद्र सेन का जन्म 1879 ई. में हुगली जिले के आरामबाग नामक स्थान में एक गरीब परिवार में हुआ था। वे कोलकाता विश्वविद्यालय से विज्ञान के स्नातक थे। उनके ऊपर आरंभ से लाला लाजपतराय, बालगंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल (लाल बाल पाल) के विचारों का प्रभाव था। रामकृष्णा परमहंस और स्वामी विवेकानंद से भी वे प्रभावित थे। बाद में जब गांधी जी से संपर्क हुआ तो वे सदा के लिए उनके अनुयायी बन गए।

प्रफुल्लचंद्र सेन स्वतंत्रता आंदोलन में सदा सक्रिय रहे। 1921, 1930, 1932, 1034 और 1942 में उन्होंने कैद की सजा भोगी और कुल ग्यारह वर्ष तक जेल में बंद रहे। रचनात्मक कार्यों में उनकी बड़ी निष्ठा थी। ग्राम विकास के कार्यों और हरिजनोद्धार में योगदान के कारण ओग उन्हें 'आरामबाग का गांधी' कहने लगे थे।

उनके राजनैतिक जीवन का आरंभ 1948 में डॉ. विधान चंद्र राय के मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में सम्मिलित होने के साथ हुआ। 1962 में विधान चंद्र राय की मृत्यु के बाद वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंय्ती बने और 1967 तक इस पद पर रहे। इस वर्ष के निर्वाचन में कांग्रेस पराजित हो गई थी। इसके बाद का उनका समय रचनात्मक कार्यों में ही बीता। 1968 के कांग्रेस विभाजन में इंदिरा जी के साथ न जाकर उन्होंने पुराने नेतृत्व के साथ ही रहने का निश्चय किया। इस प्रकार उनकी राजनैतिक गतिविधियाँ समाप्त हो गईं।