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'''विश्वनाथन शांता''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vishwnathan Shanta'', जन्म-[[11 मार्च]], [[1927]], माइलापुर, [[मद्रास]]) प्रमुख कैंसर विशेषज्ञ हैं और एड्यार कैंसर इंस्टीट्यूट, चेन्नई की अध्यक्ष हैं। उनके कैरियर में कैंसर रोगियों तथा रोग की रोकथाम और इलाज में अनुसंधान के लिए संगठित देखभाल शामिल है।
डॉ. विजय पाण्डुरंग भटकर (जन्म : ११ अक्टूबर, १९४६ ) भारत के वैज्ञानिक एवं आईटी प्रध्यापक हैं। भारतीय सुपर कम्प्यूटरों के विकास में उनका योगदन अद्वितीय है। उनकी सबसे बड़ी पहचान देश के पहले सुपरकंप्यूटर परम के निर्माता और देश में सुपरकंप्यूटिंग की शुरुआत से जुड़े सी-डेक के संस्थापक कार्यकारी निदेशक के तौर पर है। वर्तमान में वे नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। नालंदा विश्वविद्यालय एक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जिसकी स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के तहत हुई है। उनका कार्यकाल 25 जनवरी, 2017 से तीन वर्षों के लिए सुनिश्चित है। इस पद पर उन्होने जार्ज येओ का स्थान लिया है, जिन्होंने नवंबर, 2016 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। वे भारत में आईटी लीडर के नाम से प्रसिद्ध है। उनको पद्म श्री पद्म भूषण, महाराष्ट्र भूषण अवार्ड, संत ज्ञानेश्वर विश्व शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
==परिचय==
विश्वनाथन शान्ता का जन्म 11 मार्च 1927 को मद्रास के माइलापुर में हुआ था। उनका परिवार प्रबुद्ध और ख्यातिप्राप्त लोगों से उजागर था। [[नोबेल पुरस्कार]] प्राप्त वैज्ञानिक [[एस. चन्द्रशेखर]] उनके मामा थे और प्रसिद्ध वैज्ञानिक तथा नोबेल पुरस्कार विजेता [[सी.वी. रमन]] उनके नाना के भाई थे। इस नाते उनके सामने उच्च आदर्श के उदाहरण बचपन से ही थे।


वी. शान्ता की स्कूली शिक्षा चेन्नई में नेशनल गर्ल्स हाई स्कूल से हुई, जो अब सिवास्वामी हायर सेकेन्डरी स्कूल बन गया है। शान्ता की बचपन से डॉक्टर बनने की इच्छा थी। उन्होंने [[1949]] में मद्रास मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया तथा [[1955]] में उन्होंने अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन एम. डी. की शिक्षा पूरी की।
==कुलपति पद पर नियुक्ति==
==कार्यक्षेत्र==
भारतीय सुपरकम्प्युटिंग के जनक माने जाने वाले पुणे के तकनीकी विशेषज्ञ विजय पांडुरंग भाटकर को बिहार के राजगीर स्थित नालंदा विश्वविद्यालय का कुलपति (वाइस चांसलर) नियुक्त किया गया है. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 25 जनवरी 2017 से भाटकर की इस पद पर नियुक्ति की मंजूरी दे दी है. नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, के अनुच्छेद 11 (3) के मुताबिक, वह अपनी नियुक्ति के तिथि से अगले तीन वर्षो तक इस पद पर बने रहेंगे.
[[1954]] में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्‌डी ने कैंसर इन्टीट्यूट की स्थापना की थी। वी. शान्ता ने पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा में सफल होकर वुमन एण्ड चिल्ड्रेन हॉस्पिटल में सेवारत होने का आदेश पा लिया था, जो कि एक बेहद सम्मानित उपलब्धि थी। लेकिन जब कैंसर इन्टीट्यूट का विकल्प सामने आया तो उन्होंने बहुतों को नाराज़ करते हुए वुमन एण्ड चिल्ड्रेन हॉस्पिटल का प्रस्ताव छोड़कर कैंसर इन्स्टीट्‌यूट का काम ही स्वीकार कर लिया। [[13 अप्रैल]], 1955 को वह कैंसर इन्टीट्यूट के परिसर में पहुँची और वहीं कार्यरत हो गईं। यह शान्ता की मानवीय संवेदना का एक प्रमाण बना।


[[भारत]] में कैंसर के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। विशेष रूप से पुरुषों में गले, फेफड़ों तथा पेट का कैंसर, प्रमुखता से देखा जाता है, जो तम्बाकू के कारण होता है। स्त्रियों में गर्दन तथा स्तन का कैंसर सबसे ज्यादा देखा जाता है । इसके बावजूद लम्बे समय से इस दिशा में कोई खोजपरक काम तथा इसके इलाज के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है । डॉ. वी. शान्ता ने चेन्नई कैंसर इन्टीट्‌यूट में इस ओर बहुत काम किया और इस उपेक्षित क्षेत्र में इलाज तथा अनुसंधान दोनों को अपने निर्देशन में सम्पन्न किया। डॉ. वी. शान्ता को उनके द्वारा जनकल्याणकारी कार्य के लिए 2005 का मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया।
==सुपरकम्यूटर के निर्माण में भूमिका==
==सम्मान एवं पुरस्कार==
भाटकर (70) गोपा सभरवाल के स्थान पर नियुक्त हुए हैं. गोपा ने पिछले साल 24 नवंबर को इस पद से इस्तीफा दे दिया था. पुणे में 11 अक्टूबर, 1946 को जन्मे भाटकर ने आईआईटी दिल्ली, सर विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर और एमएस यूनिवर्सिटी वडोदरा से शिक्षा ग्रहण की थी. वह 1988 में पुणे स्थित सेंटर ऑफ डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कम्प्यूटिंग (सी-डैक) में सुपरकम्पयूटर बनाने की परियोजना का नेतृत्व कर चुके हैं, जिसके तहत देश के पहले स्वदेशी सुपरकम्प्यूटर परम 8,000 और परम 10,000 का निर्माण किया गया था.
*[[पद्मश्री]] - [[1986]]
 
*[[पद्म भूषण]] - [[2005]]
भाटकर केंद्रीय मंत्रिमंडल की वैज्ञानिक सलाहकार समिति और वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के संचालक मंडल के सदस्य रह चुके हैं. भाटकर को पद्मश्री और पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है.
*[[पद्म विभूषण]] - [[2015]]
*[[मैग्सेसे पुरस्कार]] - 2005

Revision as of 12:51, 21 September 2017

डॉ. विजय पाण्डुरंग भटकर (जन्म : ११ अक्टूबर, १९४६ ) भारत के वैज्ञानिक एवं आईटी प्रध्यापक हैं। भारतीय सुपर कम्प्यूटरों के विकास में उनका योगदन अद्वितीय है। उनकी सबसे बड़ी पहचान देश के पहले सुपरकंप्यूटर परम के निर्माता और देश में सुपरकंप्यूटिंग की शुरुआत से जुड़े सी-डेक के संस्थापक कार्यकारी निदेशक के तौर पर है। वर्तमान में वे नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। नालंदा विश्वविद्यालय एक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जिसकी स्थापना नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 के तहत हुई है। उनका कार्यकाल 25 जनवरी, 2017 से तीन वर्षों के लिए सुनिश्चित है। इस पद पर उन्होने जार्ज येओ का स्थान लिया है, जिन्होंने नवंबर, 2016 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। वे भारत में आईटी लीडर के नाम से प्रसिद्ध है। उनको पद्म श्री पद्म भूषण, महाराष्ट्र भूषण अवार्ड, संत ज्ञानेश्वर विश्व शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

कुलपति पद पर नियुक्ति

भारतीय सुपरकम्प्युटिंग के जनक माने जाने वाले पुणे के तकनीकी विशेषज्ञ विजय पांडुरंग भाटकर को बिहार के राजगीर स्थित नालंदा विश्वविद्यालय का कुलपति (वाइस चांसलर) नियुक्त किया गया है. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 25 जनवरी 2017 से भाटकर की इस पद पर नियुक्ति की मंजूरी दे दी है. नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, के अनुच्छेद 11 (3) के मुताबिक, वह अपनी नियुक्ति के तिथि से अगले तीन वर्षो तक इस पद पर बने रहेंगे.

सुपरकम्यूटर के निर्माण में भूमिका

भाटकर (70) गोपा सभरवाल के स्थान पर नियुक्त हुए हैं. गोपा ने पिछले साल 24 नवंबर को इस पद से इस्तीफा दे दिया था. पुणे में 11 अक्टूबर, 1946 को जन्मे भाटकर ने आईआईटी दिल्ली, सर विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, नागपुर और एमएस यूनिवर्सिटी वडोदरा से शिक्षा ग्रहण की थी. वह 1988 में पुणे स्थित सेंटर ऑफ डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कम्प्यूटिंग (सी-डैक) में सुपरकम्पयूटर बनाने की परियोजना का नेतृत्व कर चुके हैं, जिसके तहत देश के पहले स्वदेशी सुपरकम्प्यूटर परम 8,000 और परम 10,000 का निर्माण किया गया था.

भाटकर केंद्रीय मंत्रिमंडल की वैज्ञानिक सलाहकार समिति और वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के संचालक मंडल के सदस्य रह चुके हैं. भाटकर को पद्मश्री और पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है.