प्रयोग:दीपिका3: Difference between revisions
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+हॉब्स | +हॉब्स | ||
||हॉब्स के अनुसार, प्रभुसत्ता के अबाध अधिकार के फलस्वरूप ही एक वास्तविक सुदृढ़ शासन (Commonwealth) की स्थापना हो सकती है। किसी प्रकार की शर्तें लगाने से अनिश्चय और अविश्वास की संभावना हो सकती थी, जिससे इस प्रकार के झगड़े उत्पन्न हो जाते, जिनका हल संभव नहीं होता और तब पुन: अराजकता फैल जाती। | ||हॉब्स के अनुसार, प्रभुसत्ता के अबाध अधिकार के फलस्वरूप ही एक वास्तविक सुदृढ़ शासन (Commonwealth) की स्थापना हो सकती है। किसी प्रकार की शर्तें लगाने से अनिश्चय और अविश्वास की संभावना हो सकती थी, जिससे इस प्रकार के झगड़े उत्पन्न हो जाते, जिनका हल संभव नहीं होता और तब पुन: अराजकता फैल जाती। इसका परिणाम यह रहा कि सबसे निकृष्ट राज्य में भी प्रजा को शासक के विरुद्ध बोलने का अधिकार नहीं रहा, क्योंकि शासन के विरुद्ध जाने का अभिप्राय प्राकृतिक अवस्था की ओर लौटना अर्थात उत्कृष्ट अराजकता के माहौल में लौटना था। इसलिए हॉब्स का कथन है कि "सबसे निकृष्ट राज्य भी सबसे उत्कृष्ट अराजकता से अच्छा है"। | ||
{'[[राज्य]] की उत्पत्ति का दैवी सिद्धांत' कितने प्रतिपादित किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-20,प्रश्न-24 | {'[[राज्य]] की उत्पत्ति का दैवी सिद्धांत' कितने प्रतिपादित किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-20,प्रश्न-24 | ||
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+जेम्स प्रथम ने | +जेम्स प्रथम ने | ||
-एच.जे. लास्की ने | -एच.जे. लास्की ने | ||
||राज्य की उत्पत्ति का दैवी सिद्धांत का सबसे प्रबल समर्थन 17वीं सदी में स्टुअर्ट राजा जेम्स प्रथम द्वारा अपनी पुस्तक 'Law of Monarchy' में किया गया। जेम्स प्रथम के अनुसार, "राजा लोग पृथ्वी पर ईश्वर की जीवित प्रतिमाएं हैं"। दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत सबसे प्राचीन है, इसके अनुसार, राज्य मानवीय नहीं वरन् ईश्वर द्वारा स्थापित एक दैवीय संस्था है। इसलिए विविध धर्मग्रंथों में भी इसी सिद्धांत का समर्थन किया गया है। [[यहूदी धर्म]] की प्रसिद्ध पुस्तक 'Old Testament',[[महाभारत]], मनुस्मृति सभी में इसका उल्लेख है। सेंट आगस्टाइन और पोप ग्रेगरी द्वारा भी इस सिद्धांत का समर्थन किया गया है। | ||राज्य की उत्पत्ति का दैवी सिद्धांत का सबसे प्रबल समर्थन 17वीं सदी में स्टुअर्ट राजा जेम्स प्रथम द्वारा अपनी पुस्तक 'Law of Monarchy' में किया गया। जेम्स प्रथम के अनुसार, "राजा लोग पृथ्वी पर ईश्वर की जीवित प्रतिमाएं हैं"। दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत सबसे प्राचीन है, इसके अनुसार, राज्य मानवीय नहीं वरन् ईश्वर द्वारा स्थापित एक दैवीय संस्था है। इसलिए विविध धर्मग्रंथों में भी इसी सिद्धांत का समर्थन किया गया है। [[यहूदी धर्म]] की प्रसिद्ध पुस्तक 'Old Testament',[[महाभारत]], [[मनुस्मृति]] सभी में इसका उल्लेख है। सेंट आगस्टाइन और पोप ग्रेगरी द्वारा भी इस सिद्धांत का समर्थन किया गया है। | ||
{राजनीतिक समानता की सर्वश्रेष्ठ गांरटी है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-47,प्रश्न-16 | {राजनीतिक समानता की सर्वश्रेष्ठ गांरटी है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-47,प्रश्न-16 | ||
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-लीकॉक | -लीकॉक | ||
+गेटेल | +गेटेल | ||
||राजनीतिक विद्वानों के अनुसार वैधानिक संप्रभुता का विचार एक प्रमाणिक सत्य है और इसे आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन राजनीतिक संप्रभुता संबंधी विचार एक कल्पना है। निर्वाचकों (राजनीतिक संप्रभु) की इच्छाएं दलीय राजनीति, लोकमत, प्रचार, अशिक्षा आदि के कारण बदलती रहती है जिससे राजनीतिक संप्रभुता की धारणा स्पष्ट नहीं हो पाती है। इसी के संदर्भ में गैटल ने टिप्पणी की है कि "वैधानिक संप्रभु के पीछे राजनीतिक संप्रभु को खोजने का कोई प्रयास संप्रभुता की संपूर्ण धारणा के मूल्य को नष्ट कर देता है और संप्रभुता को प्रभावों की सूची मात्र | ||राजनीतिक विद्वानों के अनुसार वैधानिक संप्रभुता का विचार एक प्रमाणिक सत्य है और इसे आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन राजनीतिक संप्रभुता संबंधी विचार एक कल्पना है। निर्वाचकों (राजनीतिक संप्रभु) की इच्छाएं दलीय राजनीति, लोकमत, प्रचार, अशिक्षा आदि के कारण बदलती रहती है जिससे राजनीतिक संप्रभुता की धारणा स्पष्ट नहीं हो पाती है। इसी के संदर्भ में गैटल ने टिप्पणी की है कि "वैधानिक संप्रभु के पीछे राजनीतिक संप्रभु को खोजने का कोई प्रयास संप्रभुता की संपूर्ण धारणा के मूल्य को नष्ट कर देता है और संप्रभुता को प्रभावों की सूची मात्र बना देता है।" | ||
{"मेरा प्रोग्राम (कार्यक्रम) कार्य है बात | {"मेरा प्रोग्राम (कार्यक्रम) कार्य है बात नहीं" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-14 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] | -[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] | ||
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+मुसोलिनी | +मुसोलिनी | ||
-[[महात्मा गांधी]] | -[[महात्मा गांधी]] | ||
||फॉसीवाद एक सुनिश्चित एवं स्पष्ट सिद्धांत के रूप में 'नहीं' उभरा। यह एक कार्यक्रम के रूप में सामने आया। मुसोलिनी ने स्वयं कहा है कि "हम निश्चित सिद्धांतों में विश्वास नहीं रखते। फॉसीवाद वास्तविकता पर आधारित है। हम निश्चित तथा वास्तविक उद्देश्य प्राप्त करना चाहते | ||फॉसीवाद एक सुनिश्चित एवं स्पष्ट सिद्धांत के रूप में 'नहीं' उभरा। यह एक कार्यक्रम के रूप में सामने आया। मुसोलिनी ने स्वयं कहा है कि "हम निश्चित सिद्धांतों में विश्वास नहीं रखते। फॉसीवाद वास्तविकता पर आधारित है। हम निश्चित तथा वास्तविक उद्देश्य प्राप्त करना चाहते हैं। हमारा उद्देश्य काम करना है, बात करना नहीं। देश काल की परिस्थितियों के अनुसार हम कुलीनतंत्रीय और जनतंत्रीय, रूढ़िवादी और प्रगतिवादी, प्रतिक्रियावादी और क्रांतिवादी तथा कानूनी और गैरकानूनी बन सकते हैं। इस प्रकार फॉसीवाद का कोई निश्चित सिद्धांत नहीं है। | ||
{"कानून संप्रभु का आदेश है।" यह किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-68,प्रश्न-25 | {"कानून संप्रभु का आदेश है।" यह किसका कथन है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-68,प्रश्न-25 | ||
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-हालैंड का | -हालैंड का | ||
-ग्रीन का | -ग्रीन का | ||
||जॉन ऑस्टिन के अनुसार "कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" या "कानून संप्रभु की आज्ञा (आदेश) है।" ऑस्टिन के कानून को इस परिभाषा में तीन तत्व निहित है- (i) संप्रभुता (ii) आदेश (समादेश) (iii) शास्ति-अर्थात संप्रभु के आदेश की अवहेलना करने वाले को दण्ड देने की शक्ति। इस प्रकार ऑस्टिन ने कानून को संप्रभु आदेश (समादेश) माना है। ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक में संप्रभुता की | ||जॉन ऑस्टिन के अनुसार "कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" या "कानून संप्रभु की आज्ञा (आदेश) है।" ऑस्टिन के कानून को इस परिभाषा में तीन तत्व निहित है- (i) संप्रभुता (ii) आदेश (समादेश) (iii) शास्ति-अर्थात संप्रभु के आदेश की अवहेलना करने वाले को दण्ड देने की शक्ति। इस प्रकार ऑस्टिन ने कानून को संप्रभु आदेश (समादेश) माना है। ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक में संप्रभुता की एकलवादी अवधारणा का प्रतिपादन किया है। | ||
{ओम्बुड्समैन की अवधारणा का प्रारम्भ हुआ- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-6 | {ओम्बुड्समैन की अवधारणा का प्रारम्भ हुआ- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-6 | ||
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-[[इंग्लैंड]] में | -[[इंग्लैंड]] में | ||
{ | {बहुल कार्यपालिका पायी जाती है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-200,प्रश्न-44 | ||
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-[[अमेरिका]] में | -[[अमेरिका]] में | ||
-[[भारत]] में | -[[भारत]] में | ||
-[[ | -[[कनाडा]] में | ||
+स्विट्जरलैंड में | +स्विट्जरलैंड में | ||
||संसार में जहां सभी देशों की कार्यपालिका शक्ति सम्राट या [[राष्ट्रपति]] में निहित होती है वहां स्विट्जरलैंड में कार्यपालिका शक्तियां सात सदस्यों की एक संघीय परिषद को प्रदान की गई है। इसीलिए इसे | ||संसार में जहां सभी देशों की कार्यपालिका शक्ति सम्राट या [[राष्ट्रपति]] में निहित होती है वहां स्विट्जरलैंड में कार्यपालिका शक्तियां सात सदस्यों की एक संघीय परिषद को प्रदान की गई है। इसीलिए इसे बहुल कार्यपालिका कहते है। इन सातों सदस्यों की शक्तियां समान होती है। इनका अध्यक्ष इन्हीं सात सदस्यों में से क्रमश: बनता रहता है। | ||
{कौन-सा विचारक संविधान एवं संविधानवाद में अंतर नहीं मानता? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193,प्रश्न-8 | {कौन-सा विचारक संविधान एवं संविधानवाद में अंतर नहीं मानता? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193,प्रश्न-8 | ||
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+सी.एफ.स्ट्रांग | +सी.एफ.स्ट्रांग | ||
-के.सी. व्हीयर | -के.सी. व्हीयर | ||
||सी.एफ. स्ट्रांग संविधान एवं संविधानवाद में अंतर नहीं मानते हैं। इनके अनुसार संविधान पर आधारित शासन ही संविधानवाद तथा | ||सी.एफ. स्ट्रांग संविधान एवं संविधानवाद में अंतर नहीं मानते हैं। इनके अनुसार संविधान पर आधारित शासन ही संविधानवाद तथा संविधान में कोई अंतर नहीं है। इनके विचार का समर्थन कोरी तथा अब्राहम जैसे विद्वान भी करते हैं। सी.एफ. स्ट्रांग के अनुसार "संविधान उन सिद्धांतों का समूह है जिसके अनुसार राज्य के अधिकारों, नागरिकों के अधिकारों, तथा दोनों के संबंधों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है। कोरी एवं अब्राहम के अनुसार स्थापित संविधान के निर्देशों के अनुसार शासन को संविधानवाद माना जाता है।" | ||
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Revision as of 11:29, 14 December 2017
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