अभिव्यक्ति: Difference between revisions

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'''अभिव्यक्ति''' का अर्थ विचारों के प्रकाशन से है। व्यक्तित्व के समायोजन के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अभिव्यक्ति को मुख्य साधन माना है। इसके द्वारा मनुष्य अपने मनोभावों को प्रकाशित करता तथा अपनी भावनाओं को रूप देता है। वर्तमान युग में मनोविश्लेषण शास्त्र के विद्वानों ने व्यक्ति की अतृप्त इच्छाओं की अभिव्यक्ति के लिए कई विधियाँ बताई हैं। उनका कहना है कि विकृत मन को शांति देने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि किसी भी प्रकार की कोई क्षति उसे ऐसा करने से रोके नहीं। इस कार्य के लिए आज पाश्चात्य देशों में एक नवीन मानसशास्त्र का जन्म हो गया है तथा उसका प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात लोग व्यक्ति की समस्याओं को वैज्ञानिक ढंग से सुलझाने में प्रयत्नशील हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=185 |url=}}</ref>
'''अभिव्यक्ति''' का अर्थ विचारों के प्रकाशन से है। व्यक्तित्व के समायोजन के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अभिव्यक्ति को मुख्य साधन माना है। इसके द्वारा मनुष्य अपने मनोभावों को प्रकाशित करता तथा अपनी भावनाओं को रूप देता है।<br />
 
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*[[आधुनिक काल|वर्तमान युग]] में मनोविश्लेषणशास्त्र के विद्वानों ने व्यक्ति की अतृप्त इच्छाओं की अभिव्यक्ति के लिए कई विधियाँ बताई हैं। उनका कहना है कि विकृत मन को शांति देने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि किसी भी प्रकार की कोई क्षति उसे ऐसा करने से रोके नहीं। इस कार्य के लिए आज पाश्चात्य देशों में एक नवीन मानसशास्त्र का जन्म हो गया है तथा उसका प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात लोग व्यक्ति की समस्याओं को वैज्ञानिक ढंग से सुलझाने में प्रयत्नशील हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=185 |url=}}</ref>
 
 
 


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Latest revision as of 11:39, 9 December 2020

अभिव्यक्ति का अर्थ विचारों के प्रकाशन से है। व्यक्तित्व के समायोजन के लिए मनोवैज्ञानिकों ने अभिव्यक्ति को मुख्य साधन माना है। इसके द्वारा मनुष्य अपने मनोभावों को प्रकाशित करता तथा अपनी भावनाओं को रूप देता है।

  • वर्तमान युग में मनोविश्लेषणशास्त्र के विद्वानों ने व्यक्ति की अतृप्त इच्छाओं की अभिव्यक्ति के लिए कई विधियाँ बताई हैं। उनका कहना है कि विकृत मन को शांति देने के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि किसी भी प्रकार की कोई क्षति उसे ऐसा करने से रोके नहीं। इस कार्य के लिए आज पाश्चात्य देशों में एक नवीन मानसशास्त्र का जन्म हो गया है तथा उसका प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात लोग व्यक्ति की समस्याओं को वैज्ञानिक ढंग से सुलझाने में प्रयत्नशील हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 185 |

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