संकटमोचन हनुमानाष्टक: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('<blockquote><span style="color: maroon"><poem> बाल समय रबि लियो तब तीनहुँ लोक भयो ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 38: Line 38:
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥</poem></span></blockquote>
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥</poem></span></blockquote>


{{लेख प्रगति
==संबंधित लेख==
|आधार=आधार1
{{आरती स्तुति स्त्रोत}}
|प्रारम्भिक=
[[Category:आरती_स्तुति_स्त्रोत]]
|माध्यमिक=
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
|पूर्णता=
|शोध=
}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
[[Category:नया पन्ना]]
__INDEX__
__INDEX__
[[Category:आरती_स्तुति_स्त्रोत]]

Revision as of 06:39, 4 January 2011

बाल समय रबि लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो॥
देवन आनि करी बिनती तब छाँडि दियो रबि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥1॥

बालि की त्रास कपीस बसे गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो॥
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो॥2॥ को नहिं.

अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो॥
हरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया-सुधि प्रान उबारो॥3॥ को नहिं..

रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो॥
चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो॥4॥ को नहिं..

बान लग्यो उर लछिमन के तब प्रान तजे सुत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो॥
आनि सजीवन हाथ दई तब लछिमन के तुम प्रान उबारो॥5॥ को नहिं..

रावन जुद्ध अजान कियो तब नाग की फाँस सबे सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो॥
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो॥6॥ को नहिं..

बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो॥
जाय सहाय भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत सँहारो॥7॥ को नहिं॥

काज किये बड देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुमसों नहिं जात है टारो॥
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो॥8॥ को नहिं..

दोहा

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लँगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥

संबंधित लेख

  1. REDIRECT साँचा:आरती स्तुति स्तोत्र