आशुतोष मुखर्जी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (श्रेणी:नया पन्ना; Adding category Category:शिक्षक (को हटा दिया गया हैं।))
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
Line 21: Line 21:
}}
}}


{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-367
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-367

Revision as of 08:23, 21 March 2011

आशुतोष मुखर्जी (1864-1924), बंगाल के ख्यातिप्राप्त बैरिस्टर और शिक्षाविद थे। इनका एक मध्यम वर्ग के बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ और विद्यार्थी जीवन में ही नाम कमाने के उपरान्त 1888 ई. में कलकत्ता (कोलकाता) हाईकोर्ट में वक़ालत प्रारम्भ की।

बंगाल-निर्माता

1904 ई. से हाईकोर्ट के न्यायाधीश और 1920 ई. में स्थानापन्न मुख्य न्यायाधीश रहने के बाद 1923 ई. में उन्होंने अवकाश ग्रहण कर लिया। वे यद्यपि राजनीति से दूर रहे, फिर भी वे 1899 ई. में बंगाल विधान परिषद के सदस्य मनोनीत किये गए। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में, जिसके लिए उन्होंने अपना समस्त जीवन अर्पित कर दिया था, उन्होंने बंगाली की जो महती सेवा की, उसके आधार पर उन्हें आधुनिक बंगाल का निर्माता कहा जा सकता है। 25 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य हुए और इसके उपरान्त सत्रावधि तक उसके उपकुलपति रहे।

उच्च शिक्षा प्रसार

कलकत्ता विश्वविद्यालय से उनका जीवन की अन्तिम घड़ी तक सम्बन्ध बना रहा। लॉर्ड कर्ज़न ने भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, भारत में उच्च शिक्षा का प्रसार रोकने के उद्देश्य से बनाया गया था, किन्तु आशुतोष मुखर्जी ने उसी के माध्यम से बंगाल में उच्च शिक्षा का प्रसार कर दिया और कलकत्ता विश्वविद्यालय को परीक्षा की व्यवस्था करने वाली संस्था मात्र से ऊपर उठाकर उच्चतम स्नातकोत्तर शिक्षण देने वाली संस्था बना दिया। उन्होंने केवल कला संकाय में ही विभिन्न विषयों में एम.ए. की कक्षाएँ नहीं खोली, प्रयोगात्मक एवं प्रयुक्त विज्ञानों (Applied sciences) के प्रशिक्षण हेतु भी स्नातकोत्तर शिक्षा का प्रबन्ध किया, जिसके लिए इसके पूर्व कोई प्राविधान न था।

भारतीय भाषाओं का प्रयोग

उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के लिए महाराज दरभंगा, सर तारकनाथ पालित एवं रास बिहारी घोष से प्रचुर दान प्राप्त किया और इस धनराशि से उन्होंने विश्वविद्यालय में पुस्तकालय और विज्ञान कॉलेजों के विशाल भवनों का निर्माण कराया, जो कि प्रयोगशालाओं से युक्त थे। इस प्रकार उन्होंने देश में शिक्षा की धारा को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने बंगला तथा भारतीय भाषाओं को एम.ए. की उच्चतम डिग्री के लिए अध्ययन का विषय बनाया।

भारतीयता की झलक

उनकी वेशभूषा और आचार व्यवहार में भारतीयता झलकती थी। कदाचित वह प्रथम भारतीय थे, जिन्होंने रॉयल कमीशन (सैडलर समिति) के सदस्य की हैसियत से सम्पूर्ण भारत में धोती और कोट पहनकर भ्रमण किया। वह कभी इंग्लैण्ड नहीं गए और उन्होंने अपने जीवन तथा कार्य-कलापों से सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से एक सच्चा भारतीय अपने विचारों में सनातनपंथी, कार्यों में प्रगतिशील तथा विश्वविद्यालय के हेतु अध्यापकों के चयन में अंर्तराष्ट्रीयतावादी हो सकता है। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में भारतीय ही नहीं, अंग्रेज़, जर्मन और अमेरिकी प्रोफ़ेसरों की भी नियुक्ति की और उसे पूर्व का अग्रगण्य विश्वविद्यालय बना दिया।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-367