आदि शंकराचार्य: Difference between revisions
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आदि शंकराचार्य जिन्हें शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाना जाता है, वेदांत के अद्वैत मत के प्रणेता थे । आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल के कालडी़ ग्राम में हुआ था । वह अपने ब्राह्मण माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे । शंकर के बचपन में ही उनके पिता का देहान्त हो गया । आरम्भ से ही सन्यास की तरफ रुचि के कारण अल्पायु में ही आग्रह करके माता से सन्यास की अनुमति लेकर गुरु की खोज मे निकल पड़े । उन्हें हिन्दू धर्म को पुनः स्थापित एवं प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया जाता है । एक तरफ उन्होनें अद्वैत चिन्तन को पुनर्जीवित करके सनातन हिन्दू धर्म के दार्शनिक आधार को सुदृढ़ किया, तो दूसरी तरफ उन्होनें जनसामान्य में प्रचलित मूर्तिपूजा का औचित्य सिद्ध करने का भी प्रयास किया । [[सनातन]] [[हिन्दू धर्म]] को दृढ़ आधार प्रदान करने के लिये उन्होने विरोधी पन्थ के मत को भी आंशिक तौर पर अंगीकार किया । शंकर के मायावाद पर [[महायान]] [[बौद्ध]] चिन्तन का प्रभाव माना जाता है । इसी आधार पर उन्हें प्रछन्न बुद्ध कहा गया है । शंकराचार्य ने चार पीठों की स्थापना की । 'श्रंगेरी' कर्नाटक (दक्षिण) में, '[[द्वारका]]' गुजरात (पश्चिम) में, 'पुरी' उड़ीसा ( पूर्व) में और जोर्तिमठ (जोशी मठ) उत्तराखन्ड (उत्तर) में । | आदि शंकराचार्य जिन्हें शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाना जाता है, वेदांत के अद्वैत मत के प्रणेता थे । आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल के कालडी़ ग्राम में हुआ था । वह अपने ब्राह्मण माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे । शंकर के बचपन में ही उनके पिता का देहान्त हो गया । आरम्भ से ही सन्यास की तरफ रुचि के कारण अल्पायु में ही आग्रह करके माता से सन्यास की अनुमति लेकर गुरु की खोज मे निकल पड़े । उन्हें हिन्दू धर्म को पुनः स्थापित एवं प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया जाता है । एक तरफ उन्होनें अद्वैत चिन्तन को पुनर्जीवित करके सनातन हिन्दू धर्म के दार्शनिक आधार को सुदृढ़ किया, तो दूसरी तरफ उन्होनें जनसामान्य में प्रचलित मूर्तिपूजा का औचित्य सिद्ध करने का भी प्रयास किया । [[सनातन]] [[हिन्दू धर्म]] को दृढ़ आधार प्रदान करने के लिये उन्होने विरोधी पन्थ के मत को भी आंशिक तौर पर अंगीकार किया । शंकर के मायावाद पर [[महायान]] [[बौद्ध]] चिन्तन का प्रभाव माना जाता है । इसी आधार पर उन्हें प्रछन्न बुद्ध कहा गया है । शंकराचार्य ने चार पीठों की स्थापना की । 'श्रंगेरी' कर्नाटक (दक्षिण) में, '[[द्वारका]]' गुजरात (पश्चिम) में, 'पुरी' उड़ीसा ( पूर्व) में और जोर्तिमठ (जोशी मठ) उत्तराखन्ड (उत्तर) में । | ||
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[[Category:संस्कृत_साहित्यकार]][[Category:हिन्दू_धर्म_प्रवर्तक_और_संत]][[Category:वेदांत]] |
Revision as of 10:34, 15 April 2010
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आदि शंकराचार्य
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आदि शंकराचार्य / Adi Shankaracharya
(788 ई - 820 ई)
आदि शंकराचार्य जिन्हें शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाना जाता है, वेदांत के अद्वैत मत के प्रणेता थे । आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल के कालडी़ ग्राम में हुआ था । वह अपने ब्राह्मण माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे । शंकर के बचपन में ही उनके पिता का देहान्त हो गया । आरम्भ से ही सन्यास की तरफ रुचि के कारण अल्पायु में ही आग्रह करके माता से सन्यास की अनुमति लेकर गुरु की खोज मे निकल पड़े । उन्हें हिन्दू धर्म को पुनः स्थापित एवं प्रतिष्ठित करने का श्रेय दिया जाता है । एक तरफ उन्होनें अद्वैत चिन्तन को पुनर्जीवित करके सनातन हिन्दू धर्म के दार्शनिक आधार को सुदृढ़ किया, तो दूसरी तरफ उन्होनें जनसामान्य में प्रचलित मूर्तिपूजा का औचित्य सिद्ध करने का भी प्रयास किया । सनातन हिन्दू धर्म को दृढ़ आधार प्रदान करने के लिये उन्होने विरोधी पन्थ के मत को भी आंशिक तौर पर अंगीकार किया । शंकर के मायावाद पर महायान बौद्ध चिन्तन का प्रभाव माना जाता है । इसी आधार पर उन्हें प्रछन्न बुद्ध कहा गया है । शंकराचार्य ने चार पीठों की स्थापना की । 'श्रंगेरी' कर्नाटक (दक्षिण) में, 'द्वारका' गुजरात (पश्चिम) में, 'पुरी' उड़ीसा ( पूर्व) में और जोर्तिमठ (जोशी मठ) उत्तराखन्ड (उत्तर) में ।