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| {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}}
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| {{इतिहास सामान्य ज्ञान}}
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| {{सामान्य ज्ञान नोट}}
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| {| class="bharattable-green" width="100%"
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| | valign="top"|
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| {| width="100%"
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| <quiz display=simple>
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| { [[झेलम नदी]] के किनारे प्रसिद्ध 'वितस्ता का युद्ध' किन-किन शासकों के बीच हुआ था?
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| |type="()"}
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| -[[चन्द्रगुप्त मौर्य]] एवं [[सेल्युकस]] के मध्य
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| -घननन्द एवं चन्द्रगुप्त मौर्य के मध्य
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| +पोरस एवं [[सिकन्दर]] के मध्य
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| -सिकन्दर एवं [[आम्भि]] के मध्य
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| { निम्न में से किसने शुद्ध सोने के सिक्के जारी किए थे?
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| |type="()"}
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| -[[गुप्त|गुप्तों]] ने
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| -हिन्द यवनों ने
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| +[[कुषाण|कुषाणों]] ने
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| -[[शुंग|शुंगों]] ने
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| ||कुषाण भी [[शक|शकों]] की ही तरह मध्य [[एशिया]] से निकाले जाने पर [[क़ाबुल]]-[[कंधार]] की ओर यहाँ आ गये थे। उस काल में यहाँ के हिन्दी यूनानियों की शक्ति कम हो गई थी, उन्हें कुषाणों ने सरलता से पराजित कर दिया। उसके बाद उन्होंने क़ाबुल-कंधार पर अपना राज्याधिकार कायम किया। उनके प्रथम राजा का नाम 'कुजुल कडफाइसिस' था। उसने क़ाबुल–कंधार के [[यवन|यवनों]] (हिन्दी यूनानियों) को हराकर [[भारत]] की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर बसे हुए [[पल्लव|पल्लवों]] को भी पराजित कर दिया। कुषाणों का शासन पश्चिमी [[पंजाब]] तक हो गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[कुषाण]]
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| { [[मौर्य काल]] में निर्मित ‘सुदर्शन झील’ का निर्माण किसने करवाया था?
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| |type="()"}
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| +पुष्पगुप्त
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| -उपगुप्त
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| -तुषाष्क
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| -[[चन्द्रगुप्त मौर्य]]
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| { [[गुप्त वंश]] का संस्थापक कौन था?
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| |type="()"}
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| -घटोत्कचगुप्त
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| -[[चन्द्रगुप्त प्रथम]]
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| +[[श्रीगुप्त]]
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| -[[रामगुप्त]]
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| ||[[गुप्त]] राजा स्वयं [[बौद्ध]] नहीं थे, पर क्योंकि बौद्ध तीर्थ स्थानों का दर्शन करने के लिए बहुत से चीनी इस समय [[भारत]] में आने लगे थे। अतः महाराज श्रीगुप्त ने उनके आराम के लिए यह महत्त्वपूर्व दान दिया था। दो मुद्राएँ ऐसी मिली हैं, जिनमें से एक पर 'गुतस्य' और दूसरी पर 'श्रीगुप्तस्य' लिखा है। सम्भवतः ये इसी महाराज श्रीगुप्त की हैं। प्रभावती गुप्त के [[पूना]] स्थित ताम्रपत्र अभिलेख में श्री गुप्त का उल्लेख [[गुप्त वंश]] के आदिराज के रूप में किया गया है। लेखों में इसका गोत्र 'धरण' बताया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीगुप्त]]
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| { ‘मेहरोली का स्तम्भ लेख’ किस शासक से सम्बन्धित है?
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| |type="()"}
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| +[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
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| -[[चन्द्रगुप्त मौर्य]]
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| -[[अशोक]]
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| -[[समुद्रगुप्त]]
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| ||चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (राज 380-413) [[गुप्त वंश]] का राजा था। समस्त गुप्त राजाओं में समुद्रगुप्त का पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय सर्वाधिक शौर्य एवं वीरोचित गुणों से सम्पन्न था। चन्द्रगुप्त द्वितीय (381-413 ई.) का सेनापति आम्रकार्द्दव था। उसे देव, देवगुप्त, देवराज, देवश्री, श्रीविक्रम, विक्रमादित्य, परमाभागवत्, नरेन्द्रचन्द्र, सिंहविक्रम, अजीत विक्रम आदि उपाधि धारण किए थे। अनुश्रूतियों में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह [[वाकाटक वंश|वाकाटक]] नरेश रुद्रसेन से किया, रुद्रसेन की मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त ने अप्रत्यक्ष रूप से वाकाटक राज्य को अपने राज्य में मिलाकर [[उज्जैन]] को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। इसी कारण चन्द्रगुप्त द्वितीय को 'उज्जैनपुरवराधीश्वर' भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
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| { किस गुप्तकालीन शासक को ‘कविराज’ कहा गया है?
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| |type="()"}
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| -[[श्रीगुप्त]]
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| -[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
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| +[[समुद्रगुप्त]]
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| -[[स्कन्दगुप्त]]
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| ||समुद्रगुप्त अनुपम वीर था। उसने शीघ्र ही भाइयों के विद्रोह को शान्त कर दिया था, और [[पाटलिपुत्र]] के सिंहासन पर दृढ़ता के साथ अपना अधिकार जमा लिया। काच ने एक साल के लगभग तक राज्य किया। काच नामक गुप्त राजा की सत्ता को मानने का आधार केवल वे सिक्के हैं, जिन पर उसका नाम 'सर्वराजोच्छेता' विशेषण के साथ दिया गया है। अनेक विद्वानों का मत है, कि काच समुद्रगुप्त का ही नाम था। ये सिक्के उसी के हैं, और बाद में दिग्विजय करके जब वह 'आसमुद्रक्षितीश' बन गया था, तब उसने काच के स्थान पर समुद्रगुप्त नाम धारण कर लिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[समुद्रगुप्त]]
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| { ‘दीवानी’ एवं ‘फ़ौजदारी’ से सम्बन्धित ग्रन्थ की रचना सर्वप्रथम कब हुई थी?
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| |type="()"}
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| -[[मौर्य काल]] में
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| -[[कुषाण काल]] में
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| +[[गुप्त साम्राज्य|गुप्त काल]] में
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| -गुप्तोत्तर काल में
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| || गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी सदी के अन्त में [[प्रयाग]] के निकट [[कौशाम्बी]] में हुआ। गुप्त [[कुषाण|कुषाणों]] के सामन्त थे। इस वंश का आरंभिक राज्य [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] में था। लगता है कि गुप्त शासकों के लिए बिहार की उपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्त्व वाला प्रान्त था, क्योंकि आरम्भिक अभिलेख मुख्यतः इसी राज्य में पाए गए हैं। यही से गुप्त शासक कार्य संचालन करते रहे। और अनेक दिशाओं में बढ़ते गए। गुप्त शासकों ने अपना अधिपत्य अनुगंगा (मध्य गंगा मैदान), प्रयाग (इलाहाबाद), [[साकेत (अयोध्या)|साकेत]] (आधुनिक [[अयोध्या]]) और [[मगध]] पर स्थापित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुप्त साम्राज्य]]
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| { [[श्रीलंका]] के राजा 'मेघवर्मन' ने किस स्थान पर भगवान [[बुद्ध]] का मन्दिर बनवाने के लिए [[समुद्रगुप्त]] से अनुमति माँगी थी?
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| |type="()"}
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| -[[प्रयाग]]
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| +[[बोधगया]]
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| -[[कुशीनगर]]
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| -[[अमरावती]]
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| ||बोधगया में बराबर की पहाडि़यों में सात गुफाएं हैं, जिनमें तीन को [[अशोक]] ने आजीविकों को दान कर दिया था। [[श्रीलंका]] के शासक मेघवर्मन ने [[समुद्रगुप्त]] की अनुमति से बोधगया में एक बौद्ध-विहार बनवाया था। बराबर की पहाड़ी से प्राप्त एक अभिलेख में [[मौखरि वंश|मौखरि]] शासक अनन्तवर्मन का वर्णन है। बोधगया के ताराडीह में [[पाल वंश|पाल]] कालीन अवशेष प्राप्त हैं। गया के समीप [[सोनपुर]] से कुषाणों के अवशेष मिले हैं। गया की यात्रा चीनी यात्रियों [[फ़ाह्यान]] तथा [[ह्वेनसांग]] ने की थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बोधगया]]
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| { [[चन्द्रगुप्त द्वितीय]] ने कब ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि धारण की थी?
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| |type="()"}
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| +[[शक|शकों]] का उन्मूलन करने पर
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| -गुप्त सिंहासन पर बैठने के बाद
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| -[[चाँदी]] के सिक्के जारी करने के बाद
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| -उपर्युक्त सभी
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| || शक सम्भवतः उत्तरी [[चीन]] तथा [[यूरोप]] के मध्य स्थित विदेश झींगझियांग प्रदेश के निवासी थे। [[कुषाण|कुषाणों]] एवं शकों का क़बीला एक ही माना गया था। लगभग ई. पू. 100 में विदेशी शासकों की शक्ति बढ़ने लगी। [[मथुरा]] में इनका केन्द्र बना। यहाँ के राजा 'शक क्षत्रप' के नाम से जाने जाते हैं। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शक]]
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| { गुप्त कालीन सोने की मुद्रा को क्या कहा जाता था?
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| +दीनार
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| -कर्षापण
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| -निष्क
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| -काकिनी
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| { गुप्त काल के जनपदों की सूची में प्रथम जनपद का सम्मान निम्न में से किसे दिया गया-
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| |type="()"}
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| -[[मालवा]]
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| -[[मगध]]
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| +[[प्रयाग]]
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| -उपर्युक्त में से कोई नहीं
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| ||प्रयाग शब्द की व्युत्पत्ति वनपर्व यज धातु से मानी गयी है। उसके अनुसार सर्वात्मा [[ब्रह्मा]] ने सर्वप्रथम यहाँ यजन किया था (आहुति दी थी) इसलिए इसका नाम प्रयाग पड़ गया। [[पुराण|पुराणों]] में प्रयागमण्डल, प्रयाग और वेणी अथवा त्रिवेणी की विविध व्याख्याएँ की गयी है। [[मत्स्य पुराण]] तथा [[पद्मपुराण]] के अनुसार प्रयागमण्डल पाँच योजन की परिधि में विस्तृत है और उसमें प्रविष्ट होने पर एक-एक पद पर [[अश्वमेध यज्ञ]] का पुण्य मिलता है। प्रयाग की सीमा प्रतिष्ठान (झूँसी) से वासुकि सेतु तक तथा कंबल और अश्वतर नागों तक स्थित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रयाग]]
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| { हरिषेण किस शासक का दरबारी कवि था?
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| |type="()"}
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| +[[समुद्रगुप्त]]
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| -[[अशोक]]
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| -[[कनिष्क]]
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| -[[चन्द्रगुप्त द्वितीय]]
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| ||सम्राट समुद्रगुप्त के वैयक्तिक गुणों और चरित्र के सम्बन्ध में [[प्रयाग]] की प्रशस्ति में बड़े सुन्दर संदर्भ पाये जाते हैं। इसे महादण्ड नायक ध्रुवभूति के पुत्र, संधिविग्रहिक महादण्डनायक हरिषेण ने तैयार किया था। हरिषेण के शब्दों में समुद्रगुप्त का चरित्र इस प्रकार का था - 'उसका मन विद्वानों के सत्संग-सुख का व्यसनी था। उसके जीवन में सरस्वती और लक्ष्मी का अविरोध था। वह वैदिक मार्ग का अनुयायी था। उसका काव्य ऐसा था, कि कवियों की बुद्धि विभव का भी उससे विकास होता था। कौन सा ऐसा गुण है, जो उसमें नहीं था। सैकड़ों देशों में विजय प्राप्त करने की उसमें अपूर्व क्षमता थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[समुद्रगुप्त]]
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| { [[सारनाथ]] के ‘घमेख स्तूप’ का निर्माण किस काल में हुआ था?
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| |type="()"}
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| -[[मौर्य काल]]
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| -[[कुषाण काल]]
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| -शुंग काल
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| +[[गुप्त साम्राज्य|गुप्त काल]]
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| || गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी सदी के अन्त में [[प्रयाग]] के निकट [[कौशाम्बी]] में हुआ। गुप्त [[कुषाण|कुषाणों]] के सामन्त थे। इस वंश का आरंभिक राज्य [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]] में था। लगता है कि गुप्त शासकों के लिए बिहार की उपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्त्व वाला प्रान्त था, क्योंकि आरम्भिक अभिलेख मुख्यतः इसी राज्य में पाए गए हैं। यही से गुप्त शासक कार्य संचालन करते रहे। और अनेक दिशाओं में बढ़ते गए। गुप्त शासकों ने अपना अधिपत्य अनुगंगा (मध्य गंगा मैदान), प्रयाग (इलाहाबाद), [[साकेत (अयोध्या)|साकेत]] (आधुनिक [[अयोध्या]]) और [[मगध]] पर स्थापित किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुप्त साम्राज्य]]
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| { यूरोपीय भाषा में अनुवादित प्रथम भारतीय ग्रन्थ कौन-सा है?
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| |type="()"}
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| -[[श्रीमद्भागवदगीता]]
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| +अभिज्ञानशाकुन्तलम
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| -कुमारसम्भव
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| -कामसूत्र
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| { [[सती प्रथा]] का प्रथम उल्लेख कहाँ से मिलता है?
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| |type="()"}
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| -भीतरगाँव लेख से
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| -विलसद स्तम्भलेख से
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| +एरण अभिलेख से
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| -भितरी स्तम्भलेख से
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| || एरण गुप्तकाल में एक महत्त्वपूर्ण नगर था। यहाँ से गुप्तकाल के अनेक अभिलेख प्राप्त हुये हैं। गुप्त सम्राट [[समुद्रगुप्त]] के एक शिलालेख में एरण को 'एरकिण' कहा गया है। इस अभिलेख को [[कनिंघम]] ने खोजा था। यह वर्तमान में [[कोलकाता]] संग्रहालय में सुरक्षित है। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[एरण]]
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| { [[थानेश्वर]] में [[वर्धन वंश]] की स्थापना किसने की थी?
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| |type="()"}
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| -राज्यवर्धन
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| -आदित्यवर्धन
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| +पुष्यभूतिवर्धन
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| -नरवर्धन
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| { [[हर्षवर्धन]] प्रत्येक पाँच वर्ष के बाद कहाँ पर सम्मेलन आयोजित करता था?
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| |type="()"}
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| -[[कन्नौज]]
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| -वल्लभि
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| +[[प्रयाग]]
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| -[[थानेश्वर]]
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| ||प्रयाग में आत्मघात करने वाले को [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार जो योगी [[गंगा]]-[[यमुना नदी|यमुना]] के संगम पर आत्महत्या करके स्वर्ग को प्राप्त करता है, वह पुन: नरक नहीं देख सकता। प्रयाग में वैश्यों और शूद्रों के लिए आत्महत्या विवशता की स्थिति में यदा-कदा ही मान्य थी। किन्तु [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] और क्षत्रियों के द्वारा आत्म-अग्न्याहुति दिया जाना एक विशेष विधान के अनुसार उचित था। अत: जो ऐसा करना चाहें तो ग्रहण के दिन यह कार्य सम्पन्न करते थे, या किसी व्यक्ति को मूल्य देकर डूबने के लिए क्रय कर लेते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रयाग]]
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| { [[कदम्ब वंश|कदम्ब]] राज्य के संस्थापक 'मयूरदर्शन' ने किसे अपनी राजधानी बनाया था?
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| |type="()"}
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| -[[बंगाल]]
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| -[[कन्नौज]]
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| +वैजयंती या बनवासी
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| -इनमें में से कोई नहीं
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| { किस संगमयुगीन [[चेर वंश|चेर]] शासक ने ‘पत्तिनी पूजा’ या ‘कण्णगी पूजा’ की प्रथा को प्रारम्भ करवाया था?
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| |type="()"}
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| -कुट्टवन
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| -उदियनजेरल
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| +शेनगुट्टुवन
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| -नेदुनजेरल आदन
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| { संगम युगीन अंत्येष्टि सम्बन्धी कथन में कौन-सा असत्य है?
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| |type="()"}
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| -ताबूत में दफन करना
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| -दाह संस्कार करना
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| -सीधा दफन करना
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| +पक्षियों व जानवरों के लिए खुला छोड़ देना
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| { वेंगी के युद्ध में [[चोल वंश|चोल]] नरेश करिकाल से पराजित होकर किस चेर राजा ने आत्महत्या कर ली?
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| |type="()"}
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| -उदियनरेजल
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| -शेनगुट्टुवन
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| -जेरल आदन
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| +नेदुन जेरल
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| { किस [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूट]] शासक ने [[एलोरा की गुफ़ाएँ|एलोरा]] के पर्वतों को काटकर प्रसिद्ध कैलाश मन्दिर का निर्माण करवाया था?
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| |type="()"}
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| -[[इन्द्र तृतीय]]
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| -[[कृष्ण तृतीय]]
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| +[[कृष्ण प्रथम]]
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| -ध्रुव
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| || [[दंतिदुर्ग]] के चाचा एवं उत्तराधिकारी कृष्ण प्रथम ने [[बादामी कर्नाटक|बादामी]] के [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] के अस्तित्व को पूर्णतः समाप्त कर दिया था। उसने [[मैसूर]] के गंगो की राजधानी मान्यपुर एवं लगभग 772 ई. में [[हैदराबाद]] को अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया। उसने सम्भवतः दक्षिण कोंकण के कुछ भाग को भी जीता था। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कृष्ण प्रथम]]
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| { वेंगी के [[चालुक्य वंश]] का संस्थापक कौन था?
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| |type="()"}
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| +विष्णुवर्धन
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| -विजयादित्य
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| -इन्द्रवर्धन
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| -जयसिंह द्वितीय
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| { कल्याणी के [[चालुक्य वंश]] का संस्थापक कौन था?
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| |type="()"}
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| -[[सत्याश्रय]]
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| -विक्रमादित्य
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| +तैल या [[तैल चालुक्य|तैलप द्वितीय]]
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| -[[तैलप तृतीय]]
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| || तैल चालुक्य द्वितीय चालुक्य राजवंश का प्रतिष्ठापक था। उसकी राजधानी कल्याणी थी। 972 ई. के आसपास उसने अन्तिम राष्ट्रकूट राजा कर्क द्वितीय को परास्त किया। तैल द्वारा प्रतिष्ठापित राजवंश ने 1119 ई. तक शासन किया। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[तैल चालुक्य]]
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| { ‘सप्तरथ मन्दिर’ का निर्माण [[पल्लव वंश|पल्लव]] नरेश [[नरसिंह वर्मन प्रथम]] ने कहाँ पर करवाया था?
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| |type="()"}
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| +[[महाबलीपुरम]]
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| -[[कांची]]
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| -[[मदुरा]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||महाबलीपुरम ऐतिहासिक नगर, मामल्लपुरम भी कहलाता है, यह पूर्वोत्तर [[तमिलनाडु]] राज्य, दक्षिण भारत में स्थित है। यह नगर [[बंगाल की खाड़ी]] पर [[चेन्नई]] (भूतपूर्व [[मद्रास]]) से 60 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका एक अन्य प्राचीन नाम बाणपुर भी है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाबलीपुरम]]
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| </quiz>
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| |}
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| |}
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| {{विज्ञान सामान्य ज्ञान}}
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| {{सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी}}
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| {{प्रचार}}
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