किमख़ाब: Difference between revisions

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[[भारत]] में स्थित [[वाराणसी]] का पुराना शहर प्रारम्भिक काल से ही अपने किमखाब और सिल्क के कपड़ों के लिए प्रसिद्ध रहा है। आज भी यह उज्जवल परम्परा यहाँ पर जीवित है और वाराणसी के क़ारीगर तरह तरह के नक्शों और नमूनों में आश्चर्यचकित कर देने वाले विभिन्न प्रकार के मनमोहक कपड़े तैयार करते हैं।  
[[भारत]] में स्थित [[वाराणसी]] का पुराना शहर प्रारम्भिक काल से ही अपने किमखाब और सिल्क के कपड़ों के लिए प्रसिद्ध रहा है। आज भी यह उज्जवल परम्परा यहाँ पर जीवित है और वाराणसी के कारीगर तरह तरह के नक्शों और नमूनों में आश्चर्यचकित कर देने वाले विभिन्न प्रकार के मनमोहक कपड़े तैयार करते हैं।
==किमखाब क्या है?==
 
किमखाब एक प्रकार की कढ़ाई होती है जो ज़्ररी और रेशम से की जाती है। बनारसी साड़ियों के पल्लू, बार्डर (किनारी) पर मुख्यत: इस प्रकार की कढ़ाई की जाती है। 
==प्रसिद्धि==
==प्रसिद्धि==
*[[इंग्लैंड]] की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के 1961 में वाराणसी आगमन के अवसर पर उपहारस्वरूप  दिया गया किमखाब का एक अत्युत्तम भाग, उनको दिये गये अनेक उपहारों में सबसे प्रमुख था।  
*[[इंग्लैंड]] की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के 1961 में वाराणसी आगमन के अवसर पर उपहारस्वरूप  दिया गया किमखाब का एक अत्युत्तम भाग, उनको दिये गये अनेक उपहारों में सबसे प्रमुख था।  

Revision as of 15:14, 1 May 2011

भारत में स्थित वाराणसी का पुराना शहर प्रारम्भिक काल से ही अपने किमखाब और सिल्क के कपड़ों के लिए प्रसिद्ध रहा है। आज भी यह उज्जवल परम्परा यहाँ पर जीवित है और वाराणसी के कारीगर तरह तरह के नक्शों और नमूनों में आश्चर्यचकित कर देने वाले विभिन्न प्रकार के मनमोहक कपड़े तैयार करते हैं।

किमखाब क्या है?

किमखाब एक प्रकार की कढ़ाई होती है जो ज़्ररी और रेशम से की जाती है। बनारसी साड़ियों के पल्लू, बार्डर (किनारी) पर मुख्यत: इस प्रकार की कढ़ाई की जाती है।

प्रसिद्धि

  • इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के 1961 में वाराणसी आगमन के अवसर पर उपहारस्वरूप दिया गया किमखाब का एक अत्युत्तम भाग, उनको दिये गये अनेक उपहारों में सबसे प्रमुख था।
  • सिल्क की बुनाई और तत्सम्बंधी कलाओं, जो इस स्थान के अत्यंत पुराने और प्रमुख उद्योगों में से एक है और सारे विश्व में जिसकी प्रतिष्ठा है, के लिए वाराणसी ने क़ाफ़ी नाम कमाया है।

केन्द्र और हथकरघे

यह ज़िला आज भी भारत के प्रमुख सिल्क बुनने वाले केन्द्रों में से एक है और इसके पास लगभग 29,000 हथकरघे हैं, जिनमें से अधिकाँश शहर के 10 से 15 मील के अर्द्धव्यास में फैले हुए हैं। 1958 में 1,25,20,000 रुपये के विनियोजन पर, इस उद्योग से लगभग 85,000 लोगों को रोज़गार मिला तथा अन्य 10,000 लोग इसके सहायक व्यवसायों और व्यापार के कार्यों में लगे थे।





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टीका टिप्पणी और संदर्भ