जीवतत्त्व प्रदीपिका: Difference between revisions
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*तीसरी टीका की तरह इसका नाम भी जीवतत्त्व प्रदीपिका है। | *तीसरी टीका की तरह इसका नाम भी जीवतत्त्व प्रदीपिका है। |
Revision as of 08:04, 22 April 2010
Template:जैन दर्शन जीवतत्त्व प्रदीपिका
- यह नेमिचन्द्रकृत चतुर्थ टीका है।
- तीसरी टीका की तरह इसका नाम भी जीवतत्त्व प्रदीपिका है।
- यह केशववर्णी की कर्नाटकवृत्ति में लिखी गई संस्कृत मिश्रित जीवतत्त्व प्रदीपिका का ही संस्कृत रूपान्तर है।
- इसके रचयिता नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती से भिन्न और उत्तरवर्ती नेमिचन्द्र हैं।
- ये नेमिचन्द्र ज्ञानभूषण के शिष्य थे।
- गोम्मटसार के अच्छे ज्ञाता थे। इनका कन्नड़ तथा संस्कृत दोनों पर समान अधिकार है। यदि इन्होंने केशववर्णी की टीका को संस्कृत रूप नहीं दिया होता तो पं॰ टोडरमल जी हिन्दी में लिखी गई अपनी सम्यग्ज्ञानचंद्रिका नहीं लिख पाते।
- ये नेमिचन्द्र गणित के भी विशेषज्ञ थे।
- इन्होंने अलौकिक गणिसंख्यात, असंख्यात, अनंत, श्रेणि, जगत्प्रवर, घनलोक आदि राशियों को अंकसंदृष्टि के द्वारा स्पष्ट किया है।
- इन्होंने जीव तथा कर्म विषयक प्रत्येक चर्चित बिन्दु का सुन्दर विश्लेषण किया है।
- इनकी शैली स्पष्ट और संस्कृत परिमार्जित है।
- टीका में दुरूहता या संदिग्धता नहीं है। न ही अनावश्यक विषय का विस्तार किया है।
- टीका में संस्कृत तथा प्राकृत के लगभग 100 पद्य पद्धृत हैं।
- आचार्य समन्तभद्र की आप्तमीमांसा, विद्यानंद की आप्तपरीक्षा, सोमदेव के यशस्तिलक, सिद्धान्तचक्रवर्ती नेमिचन्द्र के त्रिलोकसार, पं॰ आशाधर के अनागारधर्मामृत आदि ग्रन्थों से उक्त पद्यों को लिया गया है।
- यह टीका ई॰ 16वीं शताब्दी की रचित है।