भारतकोश:अभ्यास पन्ना: Difference between revisions
आदित्य चौधरी (talk | contribs) No edit summary |
(प्रकृति का करो तुम संरक्षण यही करती है जीवन का सृजन वृक्षों को तुम लहलहाने दो पशु पक्षियों से तु) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{{अभ्यास पन्ना}} | {{अभ्यास पन्ना}} | ||
<!--सम्पादन अभ्यास इस से नीचे करे --> | <!--सम्पादन अभ्यास इस से नीचे करे --> | ||
[[Category:प्रकृति का सरंक्षण ]][[Category:प्रकृति का सरंक्षण ]][[Category:प्रकृति का सरंक्षण ]] | |||
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= प्रकृति}} | |||
प्रकृति का सरंक्षण | |||
................... | |||
प्रकृति का करो तुम संरक्षण | |||
यही करती है जीवन का सृजन | |||
वृक्षों को तुम लहलहाने दो | |||
पशु पक्षियों से तुम प्रेम करो | |||
करो नित्य सौंदर्य का अवलोकन | |||
तुम्हे देना होगा ये वचन | |||
करोगे कर्तव्यों का निर्वहन | |||
नदियों ने तुमको जल दिया | |||
मत रोको उनके धारा को | |||
वृक्षों ने तुमको फल दिया | |||
मत उनका करो तुम दोहन | |||
कुदरत देती तुम्हे जीवन दान | |||
तुम कर लो इसका अब नमन | |||
सोचो जब वर्षा न होगी | |||
क्या खाओगे क्या पिओगे | |||
जब नदियाँ सुख जाएँगी | |||
झुलसेगी ये धरती जब | |||
तब सह न सकोगे तुम तपन | |||
अगर बचाना है मानवता को | |||
तो मानना होगा ये कथन | |||
तुम्हे रोकना होगा प्रदुषण | |||
अगर तुम अब भी न सुनोगे ये पुकार | |||
तुम न करोगे इसका सम्मान | |||
तो कब तक करेगी ये तुझको वहन | |||
तुम्हे देखना होगा तब रौद्र रूप | |||
तब करना होगा सब सहन | |||
इसलिए तुम्हे मैं कहता हूँ | |||
ये प्रकृति देती है तुमको जीवन | |||
समझो तुम इसको अपना मित्र | |||
खोलो तुम अपना अंतर्मन | |||
प्रकृति का करो तुम संरक्षण | |||
यही करती है जीवन का सृजन | |||
यही करती है जीवन का सृजन | |||
. |
Revision as of 11:52, 11 May 2011
अभ्यास पन्ने पर आपका स्वागत है यह अभ्यास पन्ना "सम्पादन अभ्यास" के लिए है। इसका पाठ प्रतिदिन समाप्त कर दिया जाता है। देखें: सहायता |
|
|
|
|
|
प्रकृति का सरंक्षण ...................
प्रकृति का करो तुम संरक्षण यही करती है जीवन का सृजन वृक्षों को तुम लहलहाने दो पशु पक्षियों से तुम प्रेम करो करो नित्य सौंदर्य का अवलोकन तुम्हे देना होगा ये वचन करोगे कर्तव्यों का निर्वहन
नदियों ने तुमको जल दिया मत रोको उनके धारा को वृक्षों ने तुमको फल दिया मत उनका करो तुम दोहन कुदरत देती तुम्हे जीवन दान तुम कर लो इसका अब नमन
सोचो जब वर्षा न होगी क्या खाओगे क्या पिओगे जब नदियाँ सुख जाएँगी झुलसेगी ये धरती जब तब सह न सकोगे तुम तपन अगर बचाना है मानवता को तो मानना होगा ये कथन तुम्हे रोकना होगा प्रदुषण
अगर तुम अब भी न सुनोगे ये पुकार तुम न करोगे इसका सम्मान तो कब तक करेगी ये तुझको वहन तुम्हे देखना होगा तब रौद्र रूप तब करना होगा सब सहन इसलिए तुम्हे मैं कहता हूँ ये प्रकृति देती है तुमको जीवन समझो तुम इसको अपना मित्र खोलो तुम अपना अंतर्मन प्रकृति का करो तुम संरक्षण यही करती है जीवन का सृजन यही करती है जीवन का सृजन .