प्रयोग:गोविन्द 5: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
<sort>  
<sort>  
अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम,
अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गए सब के दाता राम  
दास मलूका कह गए सब के दाता राम ..।</poem>
असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है। क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।
<poem> असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है।  
अधजल गगरी छलकत जाय।
क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे।</poem>
अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान, तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।
अधजल गगरी छलकत जाय।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
<poem>अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान,  
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान।</poem>
असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।। भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
<poem>अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि।  
असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।। चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।</poem>
असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र। तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।
<poem>अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत।  
तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।</poem>
<poem>असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।</poem>
<poem>असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।।
चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।</poem>
<poem>असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।
तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।।</poem>
अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे।  
अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे।  
[[अंधों का हाथी]]
[[अंधों का हाथी]]
अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत।
अंडा सिखावे बच्चे को चीं चीं मत क…
अंडा सिखावे बच्चे को चीं चीं मत क…
अंडे सेवे कोई, बच्चे  लेवे कोई
अंडे सेवे कोई, बच्चे  लेवे कोई
अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।
अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे।
अंत भला तो सब भला।
अंत भला तो सब भला।
अंधा क्या चाहे, दो आँखें।
अंधा क्या जाने बसंत बहार।
  अंधा क्या जाने बसंत बहार।
अंधी पीसे कुत्ता‍ खाए।
  अंधा पीसे कुत्ता‍ खाए।
अंधे की लाठी।
  अंधा बगुला कीचड़ खाए।
अंत भले का भला।
  अंधा राजा चौपट नगरी।
अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
  अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने ख़ूब मिलाई जोड़ी।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पंडित।
अकेला हँसता भला न रोता भला।
अंधे की लकड़ी।
अक्ल बड़ी या भैंस।
अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना।
अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
अंधे के हाथ बटेर।
अब के बनिया देय उधार।
अंत भले का भला।
अटकेगा सो भटकेगा।
अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है।
अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी।
अनजान सुजान, सदा कल्याण।
अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा।
अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
अकेला हँसता भला न रोता भला।
अपना मकान कोट (क़िले) समान।
अक्ल बड़ी या भैंस।
अपना रख पराया चख।
अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ।
अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
अब के बनिया देय उधार।
अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या  दोष।
अटकेगा सो भटकेगा।
अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज।
अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
अनजान सुजान, सदा कल्याण।
अपनी करनी पार उतरनी।
अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना।
अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे।
अपनी गरज बावली।
अपना मकान कोट (क़िले) समान।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
अपना रख पराया चख।
अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख।
अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या  दोष।
अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
अपनी–अपनी खाल में सब मस्त।
अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग।
अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
अपनी करनी पार उतरनी।
अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं।
अपनी पगड़ी अपने हाथ,
अपनी गरज बावली।
अपने किए का क्या इलाज।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर।
अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा।
अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो।
अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता।
अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज।
अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना।
अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े।
अभी दिल्ली दूर है।
  अपनी पगड़ी अपने हाथ,
अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
  अपने किए का क्या इलाज।
अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
  अपने झोपड़े की खैर मनाओ।
अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
  अपने पूत को कोई काना नहीं कहता।
अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
  अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना।
अक्‍ल का अंधा।
  अब की अब के साथ, जब की जब के साथ।
अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
  अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार।
अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना।   
  अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे।
अगर मगर करना।
  अभी दिल्ली दूर है।
अटकलें भिड़ाना।
  अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी।
अठखेलियाँ सूझना।
  अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला।
अडियल टट्टू।
  अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
अड्डे पर चहकना।
  अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर।
अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
  अक्‍ल का अंधा।
अढ़ाई दिन की बादशाहत।
  अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना।
अधर में लटकना या झूलना।
  अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना।   
अन्‍न जल उठ जाना।
  अगर मगर करना।
अन्‍न न लगना।
  अटकलें भिड़ाना।
अपना अपना राग अलापना।
  अठखेलियाँ सूझना।
अपना उल्‍लू सीधा करना।
  अडियल टट्टू।
अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
  अड्डे पर चहकना।
अपनी खाल में मस्‍त रहना।
  अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना।
अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
  अढ़ाई दिन की बादशाहत।
अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
  अधर में लटकना या झूलना।
अपने पैरों पर खड़ा होना।
  अन्‍न जल उठ जाना।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
  अन्‍न न लगना।
अबे-तबे करना।
  अपना अपना राग अलापना।
  अपना उल्‍लू सीधा करना।
  अपना सा मुँह लेकर रह जाना।
  अपनी खाल में मस्‍त रहना।
  अपनी खिचड़ी अलग पकाना।
  अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना।
  अपने पैरों पर खड़ा होना।
  अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना।
अबे-तबे करना।
</sort>
</sort>

Revision as of 06:56, 23 May 2011

<sort> अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम, दास मलूका कह गए सब के दाता राम असाढ़ जोतो लड़के ढार, सावन भादों हरवा है। क्वार जोतो घर का बैल, तब ऊंचे उनहारे। अधजल गगरी छलकत जाय। अति ऊँचे भूधारन पर भुजगन के स्थान, तुलसी अति नीचे सुखद उंख अन्न असपान। अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। चँदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।। अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।। असुनी नलिया अन्त विनासै।गली रेवती जल को नासै।। भरनी नासै तृनौ सहूतो।कृतिका बरसै अन्त बहूतो।। असाढ़ मास आठें अंधियारी। जो निकले बादर जल धारी।। चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।। असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र। तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम अनन्द।। अंधा बाँटे रेवड़ी (शीरनी), फिर फिर अपनों को दे। अंधों का हाथी अब पछताए होत क्या जब चिडिया चुग गई खेत। अंडा सिखावे बच्चे को चीं चीं मत क… अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे। अंत भला तो सब भला। अंधा क्या जाने बसंत बहार। अंधी पीसे कुत्ता‍ खाए। अंधे की लाठी। अंत भले का भला। अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। अकेला हँसता भला न रोता भला। अक्ल बड़ी या भैंस। अच्छी मति जो चाहो, बूढ़े पूछन जाओ। अब के बनिया देय उधार। अटकेगा सो भटकेगा। अढ़ाई हाथ की लकड़ी, नौ हाथ का बीज। अनजान सुजान, सदा कल्याण। अपना अपना कमाना, अपना अपना खाना। अपना ढेंढर देखे नही, दूसरे की फुल्ली निहारे। अपना मकान कोट (क़िले) समान। अपना रख पराया चख। अपना लाल गँवाय के दर दर माँगे भीख। अपना ही पैसा खोया तो परखने वाले का क्या दोष। अपनी–अपनी खाल में सब मस्त। अपनी अपनी तुनतुनी (ढफली), अपना अपना राग। अपनी करनी पार उतरनी। अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं। अपनी गरज बावली। अपनी गली में कुत्ता भी शेर। अपनी गाँठ पैसा तो, पराया आसरा कैसा। अपनी चिलम भरने को मेरा झोपड़ा जलाते हो। अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता। अपनी टाँग उघारिए, आपहि मरिए लाज। अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना। अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े। अपनी पगड़ी अपने हाथ, अपने किए का क्या इलाज। अपने झोपड़े की खैर मनाओ। अपने पूत को कोई काना नहीं कहता। अपने मुँह मिया मिट्ठू बनाना। अब की अब के साथ, जब की जब के साथ। अब सतवंती होकर बैठी, लूट लिया सारा संसार। अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे। अभी दिल्ली दूर है। अमरी की जान प्यारी, ग़रीब को दम भारी। अरहर की टट्टिया, गुजराती ताला। अलख पुरुष की माया, कहीं धूप कहीं छाया। अशर्फ़ियाँ लुटें और कोयलों पर मोहर। अक्‍ल का अंधा। अक्‍ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना। अक्‍ल पर पत्‍थर/परदा पड़ना। अगर मगर करना। अटकलें भिड़ाना। अठखेलियाँ सूझना। अडियल टट्टू। अड्डे पर चहकना। अढ़ाई चावल की खिचड़ी अलग पकाना। अढ़ाई दिन की बादशाहत। अधर में लटकना या झूलना। अन्‍न जल उठ जाना। अन्‍न न लगना। अपना अपना राग अलापना। अपना उल्‍लू सीधा करना। अपना सा मुँह लेकर रह जाना। अपनी खाल में मस्‍त रहना। अपनी खिचड़ी अलग पकाना। अपने पांव पर आप कुल्‍हाड़ी मारना। अपने पैरों पर खड़ा होना। अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनाना। अबे-तबे करना। </sort>