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पारम्परिक भारतीय [[संस्कृत]] - [[हिंदी]] साहित्य में प्रेमी प्रेमिका के बीच संदेश लाने ले जाने वाले संदेश्वाहक का कार्य '[[शुक]]' करता रहा है। मानवों की बोलियों की हूबहू नक़ल उतारने के गुण होने के कारण और सदियों से घरों में पाले जाने के साथ ही कन्याओं का विशेष प्रिय होने के कारण शुक (सुआ) नारियों का प्रिय रहा है। है। मनुष्य की बोली की नक़ल उतारने में सिद्धहस्त इस पक्षी को साक्षी मानकर उसे अपने दिल का हाल बताने और संदेश भेज कर वियोगिनी यह संतोष करती है कि उसका संदेश उसके प्रेमी तक पहुँच गया है। कालांतर में सुआ के माध्यम से नारियों के मन के भाव और संदेश लोकगीतों में गाये जाने लगे  
पारम्परिक भारतीय [[संस्कृत]] - [[हिन्दी]] साहित्य में प्रेमी प्रेमिका के बीच संदेश लाने ले जाने वाले संदेश्वाहक का कार्य '[[शुक]]' करता रहा है। मानवों की बोलियों की हूबहू नक़ल उतारने के गुण होने के कारण और सदियों से घरों में पाले जाने के साथ ही कन्याओं का विशेष प्रिय होने के कारण शुक (सुआ) नारियों का प्रिय रहा है। है। मनुष्य की बोली की नक़ल उतारने में सिद्धहस्त इस पक्षी को साक्षी मानकर उसे अपने दिल का हाल बताने और संदेश भेज कर वियोगिनी यह संतोष करती है कि उसका संदेश उसके प्रेमी तक पहुँच गया है। कालांतर में सुआ के माध्यम से नारियों के मन के भाव और संदेश लोकगीतों में गाये जाने लगे  
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Revision as of 08:04, 20 July 2011

thumb|तोता पारम्परिक भारतीय संस्कृत - हिन्दी साहित्य में प्रेमी प्रेमिका के बीच संदेश लाने ले जाने वाले संदेश्वाहक का कार्य 'शुक' करता रहा है। मानवों की बोलियों की हूबहू नक़ल उतारने के गुण होने के कारण और सदियों से घरों में पाले जाने के साथ ही कन्याओं का विशेष प्रिय होने के कारण शुक (सुआ) नारियों का प्रिय रहा है। है। मनुष्य की बोली की नक़ल उतारने में सिद्धहस्त इस पक्षी को साक्षी मानकर उसे अपने दिल का हाल बताने और संदेश भेज कर वियोगिनी यह संतोष करती है कि उसका संदेश उसके प्रेमी तक पहुँच गया है। कालांतर में सुआ के माध्यम से नारियों के मन के भाव और संदेश लोकगीतों में गाये जाने लगे

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