गायत्री देवी: Difference between revisions

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==जन्म और परिवार==
==जन्म और परिवार==

Revision as of 10:56, 21 July 2011

गायत्री देवी
पूरा नाम महारानी गायत्री देवी
अन्य नाम आयशा
जन्म 23 मई 1919
जन्म भूमि लंदन
मृत्यु तिथि 29 जुलाई 2009
मृत्यु स्थान जयपुर राजस्थान
पिता/माता महाराजा जीतेंद्र नारायण, इंदिरा राजे
पति/पत्नी मानसिंह द्वितीय
संतान जगत सिंह
सुधार-परिवर्तन बालिकाओं की शिक्षा के लिए 1943 में जयपुर में पहला पब्लिक स्कूल 'महारानी गायत्री देवी पब्लिक स्कूल' प्रारम्भ किया
राजघराना जयपुर

महारानी गायत्री देवी (अंग्रेज़ी: Maharani Gayatri Devi) (जन्म- 23 मई 1919, लंदन; मृत्यु- 29 जुलाई 2009, जयपुर राजस्थान) जयपुर राजघराने की राजमाता थी। ये दुनिया की दस सबसे ख़ूबसूरत महिलाओं में से एक थीं। इन्होंने पहली बार बाहर साल की उम्र में बघेरे का शिकार किया था। सन् 1939 से 1970 तक गायत्री देवी जयपुर की महारानी बनी रहीं।

जन्म और परिवार

गायत्री देवी का जन्म 23 मई 1919 को लंदन मे6 हुआ था। इनका बचपन का नाम आयशा था। गायत्री देवी कूच बिहार की राजकुमारी और जयपुर की तीसरी महारानी थी। इनके पिता का नाम महाराजा जीतेंद्र नारायण था जो कूच बिहार के राजा थे। इनकी माता का नाम इंदिरा राजे था। इंदिरा राजे वडोदरा की राजकुमारी थीं। गायत्री देवी के दो भाई और दो बहिनें थीं। पाँच भाई बहनों में उनका नंबर चौथा था। इस राजकुमारी का बचपन बेहद ही ठाठ-बाट में बीता। बचपन से ही महारानी गायत्री देवी प्रतिभावान बालिका थी, जिनके हर शौक लड़कों की तरह थे।

शिक्षा

गायत्री देवी की शिक्षा महल में, शांति निकेतन में, लंदन और स्विट्‌जरलैंड में हुई थी।

विवाह

सवाई मानसिंह द्वितीय भी गायत्री देवी की खूबसूरती, बहादुरी व उनकी अदाओं के मुरीद होकर उन्हें अपना दिल दे बैठे थे। वे जब-जब भी लंदन जाते, तब-तब अपनी इस प्रेमिका से मुलाकात करते। इसका कारण दोनों की विचारधाराओं का मेल भी हो सकता है, महाराज और महारानी दोनों ही घुड़सवारी व पोलो के शौकीन थे। कई बार तो उनकी मुलाकात खेल के मैदान में होती थी। जब मुलाकातें बढ़ने लगी तो धीरे-धीरे दोनों के बीच प्यार भी बढ़ने लगा और यह प्यार इस हद तक बढ़ा कि सवाई मानसिंह द्वितीय ने गायत्री देवी विवाह कर लिया।

9 मई 1940 को जयपुर के अंतिम महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय ने गायत्री देवी से विवाह कर उन्हें अपनी तीसरी धर्मपत्नी का दर्जा दिया। उनका पुत्र प्रिंस जगत सिंह जिसका जन्म 17 अक्टूबर 1949 में हुआ था।

ख़ूबसूरती में थी लाजवाब

अब तक रंग-बिरंगी पेंटिंगों व फ़िल्मों में दिखाई देने वाली ख़ूबसूरत राजकुमारियों की तरह गायत्री देवी भी ख़ूबसूरती की मिसाल थी। वह खुलेपन की समर्थक थीं। गायत्री देवी वो सौभाग्यशाली महिला थीं, जिसे प्रसिद्ध 'वोग मैग्ज़ीन' ने दुनिया की दस ख़ूबसूरत महिलाओं की सूची में शुमार किया था।

रसोई से प्रेम

बहुत कम लोगों को मालूम है कि उन्हें रसोई से भी बहुत प्रेम था। राजकुमारी या राजमाता होने के साथ आखिर गायत्री देवी भी एक भारतीय बहू थीं। जयपुर के राजमहल की रसोई से उन्हें काफी लगाव था। गायत्री देवी के पिता पूर्वी भारत के कूच बिहार इलाके से थे और उनकी मां मराठी राजसी परिवार की थीं, इसलिए उनके मायके की रसोई में कूच बिहार के अलावा मराठी स्वाद भी था। साथ ही, उनके पिता की पहली पत्नी तंजोर से थीं, जिससे उन्हें दक्षिण भारत का स्वाद भी मिला। चाहे कूच बिहार के तरीके से बनी गोभी हो या गाजर के साथ पकी मछली या फिर मराठी तरीके से बनी नारियल और घी के स्वाद वाली आमटी दाल, गायत्री देवी की शादी के बाद इन सबका आनंद जयपुर के महल को मिला।[1]

जिंदादिल महिला थीं गायत्री देवी

जयपुर की महारानी गायत्री देवी एक जिंदादिल महिला थीं, जो हर वो कार्य करती, जो उसे करना पसंद था। उन्हें बंधनों में घुट-घुटकर जीना पसंद नहीं था, वह पंछी की तरह उड़ना और कोयल की तरह गाना चाहती थीं। महारानी गायत्री देवी ने अपने जीवन के हर क्षण का लुत्फ उठाया। फिर चाहे वह महँगी कारों में घूमने का शौक हो या फिर लड़कों की तरह सूट-बूट पहनने का शौक। गायत्री देवी को कार चलाने का बड़ा शौक था। जयपुर राजघराने के रूढ़िवादी रिवाजों की परवाह किए बगैर महारानी अपनी कार लेकर अकेले ही जयपुर की सैर को निकल जाती थी।

खेलों में रुचि

इसी तरह घुड़सवारी की शौकीन गायत्री देवी अपने महाराजा के साथ घोड़े पर बैठकर घुड़सवारी भी करती थीं। शिकार की शौकीन इस महिला ने महज 12 साल की उम्र में बघेरे का शिकार किया था। इसके अलावा गायत्री देवी को पोलो, बैडमिंटन, टेबल टेनिस आदि खेलों में भी विशेष रुचि थी। राजस्थान में पोलो को बुलंदियों तक पहुंचाने में उनकी अहम भूमिका रही।

समाज में सक्रिय

विचारों के खुलेपन की समर्थक महारानी ने जब देखा कि जयपुर की बालिकाएँ व महिलाएँ आज भी पर्दाप्रथा की आड़ में शिक्षा से वंचित रहकर अपने जीवन को बर्बाद कर रही हैं तो उन्हें इस बात का बहुत दुख हुआ और महारानी ने इसका विरोध भी किया। बालिकाओं की शिक्षा के लिए 1943 में जयपुर में पहला पब्लिक स्कूल 'महारानी गायत्री देवी पब्लिक स्कूल' (एमजीडी) प्रारंभ करने का श्रेय भी महारानी गायत्री देवी को ही जाता है। वे जयपुर के "महारानी गायत्री देवी पब्लिक स्कूल की संस्थापक अध्यक्ष होने के साथ ही महाराजा सवाई बेनीवोलेंट ट्रस्ट, महारानी गायत्री देवी सैनिक कल्याण कोष, सवाई मानसिंह पब्लिक स्कूल और सवाई रामसिंह कला मंदिर की भी अध्यक्ष थीं। वह महाराजा जयपुर म्यूजियम ट्रस्ट की ट्रस्टी भी थीं।

राजनीति में भूमिका

राजमहलों में शानो-शौकत का जीवन बसर करने वाली महारानी गायत्री देवी से आम जन की पीड़ा कभी छुपी नहीं थी। लड़कों की तरह बहादुर व खुली विचारधारा की समर्थक गायत्री देवी ने तत्कालीन सक्रिय राजनीति में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सन् 1962 में गायत्री देवी स्वर्गीय राजगोपालाचार्य की पार्टी 'स्वतंत्र पार्टी' की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी। इसके बाद 1962, 1967 व 1971 के चुनावों में गायत्री देवी जयपुर संसदीय क्षेत्र से 'स्वतंत्र पार्टी' के टिकिट पर लोकसभा की सदस्य चुनी गईं।

जनता के बीच महारानी गायत्री देवी का वर्चस्व इतना अधिक था कि सन् 1962 में जनता की प्रिय महारानी गायत्री देवी ने अपने प्रतिद्वंदी को लगभग साढ़े तीन लाख वोटों के अंतर से हराकर एक रिकॉर्ड कायम किया, जिसके कारण गायत्री देवी का नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया। इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दिनों में 'कोफेपोसा एक्ट' के अंतर्गत दोषी पाए जाने पर गायत्री देवी ने अपने जीवन के कुछ माह तिहाड़ जेल में बिताए थे।[2]

पुस्तक

गायत्री देवी केवल जयपुर की महारानी ही नहीं थीं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय शख्सियत थीं। उनकी 'ए पिंरसेस रिमेम्बर्स' तथा 'ए गवर्नमेंट्स गेट वे' नामक पुस्तकें अंग्रेज़ी में प्रकाशित हो चुकी हैं।

निधन

90 वर्ष की आयु में 29 जुलाई 2009, जयपुर में गायत्री देवी का निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्वाद की दुनिया की भी महारानी थीं गायत्री देवी (हिन्दी) (सी.एम.एस.) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 18 जुलाई, 2011
  2. गायत्री देवी (हिन्दी) (एच.टी.एम.) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 18 जुलाई, 2011

बाहरी कड़ियाँ

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