मिर्गी: Difference between revisions
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सामान्य भाषा में मिर्गी को मूर्च्छा या दौरा कहते हैं। मिर्गी रोग से पीड़ित व्यक्ति को दौरा पड़ने से पहले उसके रंग में परिवर्तन होने लगता है तथा उसे कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें सुनाई देने लगती है और रोगी को लगता है कि उसकी त्वचा पर या उसके नीचे बहुत से कीड़े रेंग रहे हैं। इस अवस्था को पूर्वाभास कहते हैं। ग्रांड माल दौरे की अवस्था में रोगी जोर से चीखता है और जमीन पर गिर | सामान्य भाषा में मिर्गी को मूर्च्छा या दौरा कहते हैं। मिर्गी रोग से पीड़ित व्यक्ति को दौरा पड़ने से पहले उसके रंग में परिवर्तन होने लगता है तथा उसे कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें सुनाई देने लगती है और रोगी को लगता है कि उसकी त्वचा पर या उसके नीचे बहुत से कीड़े रेंग रहे हैं। इस अवस्था को पूर्वाभास कहते हैं। ग्रांड माल दौरे की अवस्था में रोगी जोर से चीखता है और शरीर में खिंचाव होने लगता है तथा रोगी के हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं और फिर रोगी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता है तथा अपने हाथ-पैर इधर उधर फेंकने लगता है। रोगी व्यक्ति अपने शरीर को धनुष के आकार में तान लेता है और अपने सिर को एक तरफ लटका लेता है। इसके साथ-साथ वह अपने हाथ-पैरों में जोर-जोर से झटके मारता है तथा हाथ तथा पैर मुड़ जाते हैं, गर्दन टेढ़ी हो जाती है, आंखे फटी-फटी हो जाती है, पलकें स्थिर हो जाती हैं तथा उसके मुंह से झाग निकलने लगता है। मिर्गी का दौरा पड़ने पर कभी-कभी तो रोगी की जीभ भी बाहर निकल जाती है जिसके कारण रोगी के दांतों से उसकी जीभ के कटने का डर भी लगा रहता है। मिर्गी के दौरे के समय में रोगी का पेशाब और मल भी निकल जाता है। इस क्रिया के बाद उसका शरीर ढीला पड़ जाता है तथा कुछ समय बाद रोगी को फिर से वैसे ही अगला दौरा पड़ने लगता है। इसके बाद में रोगी होश में आ जाता है। जब रोगी का दौरा समाप्त हो जाता है तो उसे अपने शरीर में बहुत कमजोरी महसूस होती है तथा उसका चेहरा नीला पड़ जाता है और उसके बाद रोगी को बहुत गहरी नींद आ जाती है। दौरा पड़ने के बाद रोगी बेहोश हो जाता है तथा इसके कुछ घंटे बाद रोगी को बेहतर अनुभव होने लगता है लेकिन दौरे का असर 1 हफ्ते तक रहता है। | ||
==मिर्गी रोग होने का कारण== | ==मिर्गी रोग होने का कारण== |
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परिचय
आधुनिक युग के बहुत से वैज्ञनिकों ने यह ज्ञात किया है कि मिर्गी रोग (अपस्मार) (Epilepsy) कोई रोग नहीं है बल्कि यह किसी गंभीर रोग का लक्षण है। यह रोग दिमाग में रक्त संचरण अथवा तंतुओं में किसी प्रकार की गड़बड़ी आ जाने के कारण होता है। कई सारे डाक्टरों के अनुसार यह रोग पाचनक्रिया में गड़बड़ी के कारण होता है तथा इसके और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे- शराब का सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में चोट लग जाना, कोई बहुत बड़ा सदमा हो जाना, मानसिक तनाव आदि। यह रोग मन में किसी प्रकार का के डर बैठ जाने के कारण भी हो सकता है।
मिर्गी रोग में रोगी को बार-बार बेहोशी के दौरे पड़ने लगते हैं। यह रोग कई प्रकार का होता हैं लेकिन इन सभी रोगो में रोगी को दौरे ही पड़ते हैं। इस रोग से पीड़ित रोगी को अपने शरीर में ऐंठन तथा आक्षेप होने लगता है या शरीर में कभी-कभी ऐंठन भी नहीं होती हैं। रोगी के मस्तिष्क के एक भाग में तीव्र और अव्यवस्थित विद्युत क्रिया होने लगती है जिसे दौरा कहते है। दौरे पड़ने के साथ ही रोगी के मस्तिष्क की क्रिया बिगड़ जाती है जिसके कारण रोगी के काम करने की क्षमता नष्ट हो जाती है तथा रोगी छटपटाने लगता है। मिर्गी का दौरा पड़ना इस बात पर निर्भर करता है कि मनुष्य के शरीर के कौन से भाग में गड़बड़ी पैदा हुई है।
मिर्गी के दौरे 2 तरह की होते हैं जैसे-
- ग्रांड माल
- पेटिट माल।
यह रोग युवा लोगों के मुकाबले बच्चों को अधिक होता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को भय तथा अंधविश्वासों के चक्कर में पड़ जाता है। वैसे मिर्गी के रोगियों का जीवन ज्यादातर सामान्य होता है।
मिर्गी रोग के लक्षण
सामान्य भाषा में मिर्गी को मूर्च्छा या दौरा कहते हैं। मिर्गी रोग से पीड़ित व्यक्ति को दौरा पड़ने से पहले उसके रंग में परिवर्तन होने लगता है तथा उसे कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें सुनाई देने लगती है और रोगी को लगता है कि उसकी त्वचा पर या उसके नीचे बहुत से कीड़े रेंग रहे हैं। इस अवस्था को पूर्वाभास कहते हैं। ग्रांड माल दौरे की अवस्था में रोगी जोर से चीखता है और शरीर में खिंचाव होने लगता है तथा रोगी के हाथ-पैर अकड़ने लगते हैं और फिर रोगी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता है तथा अपने हाथ-पैर इधर उधर फेंकने लगता है। रोगी व्यक्ति अपने शरीर को धनुष के आकार में तान लेता है और अपने सिर को एक तरफ लटका लेता है। इसके साथ-साथ वह अपने हाथ-पैरों में जोर-जोर से झटके मारता है तथा हाथ तथा पैर मुड़ जाते हैं, गर्दन टेढ़ी हो जाती है, आंखे फटी-फटी हो जाती है, पलकें स्थिर हो जाती हैं तथा उसके मुंह से झाग निकलने लगता है। मिर्गी का दौरा पड़ने पर कभी-कभी तो रोगी की जीभ भी बाहर निकल जाती है जिसके कारण रोगी के दांतों से उसकी जीभ के कटने का डर भी लगा रहता है। मिर्गी के दौरे के समय में रोगी का पेशाब और मल भी निकल जाता है। इस क्रिया के बाद उसका शरीर ढीला पड़ जाता है तथा कुछ समय बाद रोगी को फिर से वैसे ही अगला दौरा पड़ने लगता है। इसके बाद में रोगी होश में आ जाता है। जब रोगी का दौरा समाप्त हो जाता है तो उसे अपने शरीर में बहुत कमजोरी महसूस होती है तथा उसका चेहरा नीला पड़ जाता है और उसके बाद रोगी को बहुत गहरी नींद आ जाती है। दौरा पड़ने के बाद रोगी बेहोश हो जाता है तथा इसके कुछ घंटे बाद रोगी को बेहतर अनुभव होने लगता है लेकिन दौरे का असर 1 हफ्ते तक रहता है।
मिर्गी रोग होने का कारण
- मिर्गी रोग होने का वैसे तो कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं दिखाई पड़ता है लेकिन बहुत सारे वैज्ञानिकों का मानना है कि यह रोग होने का प्रमुख कारण मस्तिष्क का काई भाग क्षतिग्रस्त हो जाना है जिसकी वजह से यह रोग हो जाता है।
- आमतौर पर मिर्गी का रोग अधिकतर पैतृक (वंशानुगत/अनुवांशिक) होता है। इसका कारण रोगी के माता-पिता का फिरंग रोग या उपदंश रोग से पीड़ित होने या अधिक मात्रा में शराब पीने जैसे कारणों से बच्चों को हो जाता है।
- इस रोग के होने के और भी कई कारण है जैसे- लिंगमुण्ड की कठोरता, अपच की उग्र अवस्था, कब्ज की समस्या होने, पेट या आंतों में कीड़े होने, नाक में किसी प्रकार की खराबी, आंखों के रोग या मानसिक उत्तेजना, स्त्रियों के मासिकधर्म सम्बन्धित रोगों के कारण आदि।
- मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे- बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना आदि। इस रोग के होने का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, मानसिक तनाव, संक्रमक ज्वर भी है। वैसे यह कारण बहुत कम ही देखने को मिलता है।
- यह रोग कई प्रकार के गलत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरु हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।
- अत्यधिक नशीले पदार्थों जैसे तम्बाकू, शराब का सेवन या अन्य नशीली चीजों का सेवन करने के कारण मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है और व्यक्ति को मिर्गी का रोग हो जाता है।
मिर्गी रोग का उपचार
एक्यूप्रेशर चिकित्सा द्वारा मिर्गी रोग का उपचार
एक्यूप्रेशर पद्धति में मिर्गी का उपचार करने के लिए स्थायी रूप से स्नायुसंस्थान, मस्तिष्क, हृदय तथा आमाशय के पास पाये जाने वाले एक्यूप्रेशर बिन्दुओं पर दबाब देकर इस रोग का उपचार किया जा सकता है। इस उपचार में गर्दन, रीढ़ की हड्डी, टखनों पर भी लगातार दबाब दिया जाना चाहिए। दौरे पड़ने की अवस्था में नाक और पैरों के नीचे के भाग पर दबाव देने से बहुत ही आराम मिलता है। यदि नियमित रूप से इन केन्द्रों पर प्रेशर दिए जाए तो रोगी को इस रोग के ठीक होने में बहुत लाभ मिल सकता है। उचित एक्यूप्रेशर डाक्टर की सलाह क द्वारा काफी हद तक इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
चुम्बक द्वारा मिर्गी रोग का उपचार
इस रोग से पीड़ित रोगी की कनपटियों पर रोज सुबह सेरामिक चुम्बकों को लगभग 10 से 15 मिनट तक लगाना चाहिए तथा इसके साथ-साथ रोज सुबह 10 मिनट तक शरीर के सूचीवेधन बिन्दु जी.बी.- 20 पर दक्षिणी ध्रुव सेरामिक चुम्बक को लगाना चाहिए। रोगी को दिन में तीन बार दवाई की मात्रा के बराबर चुम्बकित जल को पिलाना चाहिए।
अन्य उपचार
- जब मिर्गी के रोगी को दौरा पडने लगे तो उसकी जीभ को दांतों से होने वाले नुकसान / कटने से बचाना चाहिए। रोगी की दांतों के बीच में किसी मुलायम तौलिये या कपड़े को रख लेना चाहिए तथा रोगी ने जो कपड़े पहन रखे हो उन्हे ढीला कर देना चाहिए।
- मिर्गी रोग से पीड़ित व्यक्ति को कभी भी भारी तथा श्वेतसारिक पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को भोजन में अधिकतर शाकाहारी पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए और रोज नियमित रूप से दूध का सेवन करना चाहिए, जितना जरूरत हो उतना ही भोजन करना चाहिए तथा खाने में केक, पेस्ट्री जैसे न पचने वाले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
- मिर्गी के रोगी को परावर्तन दोष या अपच की समस्या हो तो उसका तुरंत इलाज कराना चाहिए, रोगी को ताजी हवा लेनी चाहिए, खुली हवा में व्यायाम करना चाहिए। रोगी को अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए, रोगी को कभी भी तले या भुने पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को अकेले गाड़ी नहीं चलानी चाहिए।
मिर्गी रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार
- मिर्गी के रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को कम से कम 2 महीने तक फलों, सब्जियों और अंकुरित अन्न का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा रोगी को फलों एवं सब्जियों के रस का सेवन करके सप्ताह में एक बार उपवास रखना चाहिए।
- मिर्गी के रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय गुनगुने पानी के साथ त्रिफला के चूर्ण का सेवन करना चाहिए। तथा फिर सोयाबीन को दूध के साथ खाना चाहिए इसके बाद कच्ची हरे पत्तेदार सब्जियां खाने चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
- रोगी व्यक्ति को अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए तथा इसके बाद अपने पेट तथा माथे पर मिट्टी की पट्टी लगानी चाहिए। रोगी को कटिस्नान करना चाहिए तथा इसके बाद उसे मेहनस्नान, ठंडे पानी से रीढ़ स्नान और जलनेति क्रिया करनी चाहिए।
- मिर्गी रोग से पीड़ित रोगी का रोग ठीक करने के लिए सूर्यतप्त जल को दिन में कम से कम 6 बार पीना चाहिए और फिर माथे पर भीगी पट्टी लगानी चाहिए। जब पट्टी सूख जाए तो उस पट्टी को हटा लेना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी को सिर पर आसमानी रंग का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इस रोग से पीड़ित रोगी को गहरी नींद लेनी चाहिए।
- जब रोगी व्यक्ति को मिर्गी रोग का दौरा पड़े तो दौरे के समय रोगी के मुंह में रुमाल लगा देना चाहिए ताकि उसकी जीभ न कटे। दौरे के समय में रोगी व्यक्ति के अंगूठे को नाखून को दबाना चाहिए ताकि रोगी व्यक्ति की बेहोशी दूर हो सके। फिर रोगी के चेहरे पर पानी की छींटे मारनी चाहिए इससे भी उसकी बेहोशी दूर हो जाती है। इसके बाद रोगी का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए ताकि मिर्गी का रोग ठीक हो सके।
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