बुद्धि -वैशेषिक दर्शन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 16: Line 16:
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:नया पन्ना]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Revision as of 11:33, 19 August 2011

महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।

बुद्धि का स्वरूप

गुणों में बुद्धि का भी परिगणन किया गया है। बुद्धि आत्मा का गुण है, क्योंकि आत्मा को ही मन तथा बाह्येन्द्रियों के द्वारा अर्थ का प्रकाश अर्थात ज्ञान होता है। सांख्य में बुद्धि को महततत्त्व कहा गया है किन्तु वैशेषिक यह मानते हैं कि बुद्धि ज्ञान का पर्याय है।

  • प्रशस्तपाद ने इस संदर्भ में ठीक वैसा ही विचार व्यक्त किया है, जैसा कि न्यायसूत्रकार गौतम ने किया था कि बुद्धि, उपलब्धि और ज्ञान पर्यायवाची शब्द हैं।[1]
  • शिवादित्य ने भी आत्माश्रय प्रकाश को बुद्धि कहा है।[2] बुद्धि का मानस प्रत्यक्ष होता है। बुद्धि के प्रमुख दो भेद हैं- विद्या और अविद्या।
  • विश्वनाथ पंचानन ने विद्या को प्रमा और अविद्या को अप्रमा कहा है।
  • अन्नंभट्ट ने सब प्रकार के व्यवहार हेतु को बुद्धि कहा है। उन्होंने बुद्धि के भेद बताये- स्मृति और अनुभव। अनुभव भी दो प्रकार का होता है- यथार्थ और अयथार्थ। यथार्थ अनुभव को ही प्रमा कहते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बुद्धिरुपलब्धिज्ञानं प्रत्यय इति पर्याय:, प्र. भा. पृ. 130
  2. आत्माश्रय: प्रकाशों बुद्धि:, स.ष. पृ. 76

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख