मंसूर अली ख़ान पटौदी: Difference between revisions

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पटौदी जूनियर जिन्हें दुनिया टाइगर पटौदी के नाम से भी जानती है का जन्म 5 जनवरी 1941 को मध्यप्रदेश के भोपाल में हुआ था। यह दिन उन्हें खुशी के साथ गम भी दे गया था। पटौदी का जन्म भले ही भोपाल के शाही परिवार में हुआ लेकिन उन्हें विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ा। पटौदी जब 11वां जन्मदिन मना रहे थे तब इसी दिन 1952 में उनके पिता नवाब पटौदी का दिल्ली में पोलो खेलते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था और जब उन्होंने क्रिकेट कैरियर शुरू किया तो उनकी एक आंख की रोशनी चली गई। मंसूर अली खां पटौदी ने इसके बावजूद क्रिकेट की अपनी विरासत न सिर्फ बरकरार रखी बल्कि भारतीय क्रिकेट को भी नई ऊंचाईयां दी। वह भारत, दिल्ली, हैदराबाद, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ससेक्स टीमों के लिए खेले थे।
पटौदी जूनियर जिन्हें दुनिया टाइगर पटौदी / नवाब पटौदी के नाम से भी जानती है का जन्म 5 जनवरी 1941 को मध्यप्रदेश के भोपाल में हुआ था। यह दिन उन्हें खुशी के साथ गम भी दे गया था। पटौदी का जन्म भले ही भोपाल के शाही परिवार में हुआ लेकिन उन्हें विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ा। पटौदी जब 11वां जन्मदिन मना रहे थे तब इसी दिन 1952 में उनके पिता नवाब पटौदी का दिल्ली में पोलो खेलते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था और जब उन्होंने क्रिकेट कैरियर शुरू किया तो उनकी दाहिनी आंख की रोशनी एक कार दुर्घटना में चली गई। मंसूर अली खां पटौदी ने इसके बावजूद क्रिकेट की अपनी विरासत न सिर्फ बरकरार रखी बल्कि भारतीय क्रिकेट को भी नई ऊंचाईयां दी। वह भारत, दिल्ली, हैदराबाद, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ससेक्स टीमों के लिए खेले थे।
 
पटौदी ने देहरादून के वेलहम बॉयज स्कूल में पढ़ाई की थी। पटौदी की शादी 1969 में अभिनेत्री शर्मिला टैगोर से हुई थी। पटौदी के परिवार में पत्नी बालीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर और तीन बच्चे हैं। उनका बेटा बालीवुड स्टार सैफ अली खान और अभिनेत्री सोहा अली खान हैं। उनकी एक बेटी सबा अली खान 'ज्वैलरी डिजाइनर' है।


पटौदी ने अपने पिता को अधिक खेलते हुए नहीं देखा था लेकिन उनका क्रिकेट प्यार तब लोगों को पता चला था जब वह अपने पिता के निधन के कुछ दिन बाद ही जहाज में इंग्लैंड जा रहे थे। इस जहाज में वीनू मांकड़ तथा वेस्टइंडीज के फ्रैंक वारेल और एवर्टन वीक्स जैसे खिलाड़ी भी थे और तब पटौदी ने जहाज के डेक पर उनके साथ क्रिकेट खेली थी। इसके दस साल बाद युवा पटौदी किसी और के साथ नहीं बल्कि वारेल के साथ टेस्ट मैच में टॉस करने के लिए उतरे थे। वारेल ने इसके बाद कई अवसरों पर अपने इस युवा प्रतिद्वंद्वी की जमकर प्रशंसा की।  
पटौदी ने अपने पिता को अधिक खेलते हुए नहीं देखा था लेकिन उनका क्रिकेट प्यार तब लोगों को पता चला था जब वह अपने पिता के निधन के कुछ दिन बाद ही जहाज में इंग्लैंड जा रहे थे। इस जहाज में वीनू मांकड़ तथा वेस्टइंडीज के फ्रैंक वारेल और एवर्टन वीक्स जैसे खिलाड़ी भी थे और तब पटौदी ने जहाज के डेक पर उनके साथ क्रिकेट खेली थी। इसके दस साल बाद युवा पटौदी किसी और के साथ नहीं बल्कि वारेल के साथ टेस्ट मैच में टॉस करने के लिए उतरे थे। वारेल ने इसके बाद कई अवसरों पर अपने इस युवा प्रतिद्वंद्वी की जमकर प्रशंसा की।  


पटौदी ने अपना टेस्ट मैच करियर 13 दिसंबर 1961 को दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ शुरू किया था और उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट 23 से 29 जनवरी 1975 तक मुंबई में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला था। भारत के सबसे बेहतरीन कप्तान माने जाने वाले पटौदी ने 46 टेस्टों में 34.91 के औसत से 2793 रन बनाए थे जिनमें छह शतक और 16 अर्धशतक शामिल हैं। उनका सर्वाधिक स्कोर नाबाद 203 रन रहा था। उनका औसत भले ही प्रभावशाली न हो लेकिन इनमें से 40 टेस्ट मैच उन्होंने तब खेले थे जबकि 1961 में एक कार दुर्घटना में उनकी दायीं आंख की रोशनी चली गई थी। इससे पहले के छह टेस्ट मैच में उनका औसत 41.00 था।  
पटौदी ने अपना टेस्ट मैच करियर 13 दिसंबर 1961 को दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ शुरू किया था और उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट 23 से 29 जनवरी 1975 तक मुंबई में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला था। भारत के सबसे सफल कप्तानों में माने जाने वाले पटौदी ने 46 टेस्टों में 34.91 के औसत से 2793 रन बनाए थे जिनमें छह शतक और 16 अर्धशतक शामिल हैं। उनका सर्वाधिक स्कोर नाबाद 203 रन रहा था। उनका औसत भले ही प्रभावशाली न हो लेकिन इनमें से 40 टेस्ट मैच उन्होंने तब खेले थे जबकि 1961 में एक कार दुर्घटना में उनकी दायीं आंख की रोशनी चली गई थी। इससे पहले के छह टेस्ट मैच में उनका औसत 41.00 था।  
   
   
अपने प्रथम श्रेणी के करियर में पटौदी ने 310 मैचों में 33.67 के औसत से 15425 रन बनाए थे जिनमें 33 शतक और 75 अर्धशतक शामिल थे। पटौदी ने अपने 46 टेस्टों में से 40 में भारत का नेतृत्व किया था और नौ में भारत को जीत दिलाई थी।
अपने प्रथम श्रेणी के करियर में पटौदी ने 310 मैचों में 33.67 के औसत से 15425 रन बनाए थे जिनमें 33 शतक और 75 अर्धशतक शामिल थे। पटौदी ने अपने 46 टेस्टों में से 40 में भारत का नेतृत्व किया था और नौ में भारत को जीत दिलाई थी।
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वह साहसिक बल्लेबाजी के लिए भी जाने जाते थे और फील्डरों के ऊपर से शाट खेलने से नहीं चूकते थे। वह परंपरागत सोच में यकीन नहीं रखने वाले कप्तान थे और हमेशा कुछ अलग करने की कोशिश में रहते थे। एक कार दुर्घटना में उनकी दाईं आंख की रोशनी पर असर पडा था जिससे उनका क्रिकेट करियर प्रभावित हुआ।
वह साहसिक बल्लेबाजी के लिए भी जाने जाते थे और फील्डरों के ऊपर से शाट खेलने से नहीं चूकते थे। वह परंपरागत सोच में यकीन नहीं रखने वाले कप्तान थे और हमेशा कुछ अलग करने की कोशिश में रहते थे। एक कार दुर्घटना में उनकी दाईं आंख की रोशनी पर असर पडा था जिससे उनका क्रिकेट करियर प्रभावित हुआ।
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद वह 1993 से 1996 तक आईसीसी मैच रैफरी भी रहे थे जिसमें उन्होंने दो टेस्ट और 10 वनडे में यह भूमिका निभाई थी। वह 2005 में तब एक विवाद में भी फंस गए थे जब उन्हें लुप्त प्रजाति काले हिरण के अवैध शिकार के लिए गिरफ्तार किया गया था। वर्ष 2008 में पटौदी इंडियन प्रीमियर लीग [आईपीएल] की संचालन परिषद में भी नियुक्त किए गए थे और दो साल तक इस पद पर बने रहने के बाद उन्होंने बीसीसीआई के इस पद की पेशकश को ठुकरा दिया था।





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पटौदी जूनियर जिन्हें दुनिया टाइगर पटौदी / नवाब पटौदी के नाम से भी जानती है का जन्म 5 जनवरी 1941 को मध्यप्रदेश के भोपाल में हुआ था। यह दिन उन्हें खुशी के साथ गम भी दे गया था। पटौदी का जन्म भले ही भोपाल के शाही परिवार में हुआ लेकिन उन्हें विषम परिस्थितियों से जूझना पड़ा। पटौदी जब 11वां जन्मदिन मना रहे थे तब इसी दिन 1952 में उनके पिता नवाब पटौदी का दिल्ली में पोलो खेलते हुए दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था और जब उन्होंने क्रिकेट कैरियर शुरू किया तो उनकी दाहिनी आंख की रोशनी एक कार दुर्घटना में चली गई। मंसूर अली खां पटौदी ने इसके बावजूद क्रिकेट की अपनी विरासत न सिर्फ बरकरार रखी बल्कि भारतीय क्रिकेट को भी नई ऊंचाईयां दी। वह भारत, दिल्ली, हैदराबाद, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ससेक्स टीमों के लिए खेले थे।

पटौदी ने देहरादून के वेलहम बॉयज स्कूल में पढ़ाई की थी। पटौदी की शादी 1969 में अभिनेत्री शर्मिला टैगोर से हुई थी। पटौदी के परिवार में पत्नी बालीवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर और तीन बच्चे हैं। उनका बेटा बालीवुड स्टार सैफ अली खान और अभिनेत्री सोहा अली खान हैं। उनकी एक बेटी सबा अली खान 'ज्वैलरी डिजाइनर' है।

पटौदी ने अपने पिता को अधिक खेलते हुए नहीं देखा था लेकिन उनका क्रिकेट प्यार तब लोगों को पता चला था जब वह अपने पिता के निधन के कुछ दिन बाद ही जहाज में इंग्लैंड जा रहे थे। इस जहाज में वीनू मांकड़ तथा वेस्टइंडीज के फ्रैंक वारेल और एवर्टन वीक्स जैसे खिलाड़ी भी थे और तब पटौदी ने जहाज के डेक पर उनके साथ क्रिकेट खेली थी। इसके दस साल बाद युवा पटौदी किसी और के साथ नहीं बल्कि वारेल के साथ टेस्ट मैच में टॉस करने के लिए उतरे थे। वारेल ने इसके बाद कई अवसरों पर अपने इस युवा प्रतिद्वंद्वी की जमकर प्रशंसा की।

पटौदी ने अपना टेस्ट मैच करियर 13 दिसंबर 1961 को दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ शुरू किया था और उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट 23 से 29 जनवरी 1975 तक मुंबई में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेला था। भारत के सबसे सफल कप्तानों में माने जाने वाले पटौदी ने 46 टेस्टों में 34.91 के औसत से 2793 रन बनाए थे जिनमें छह शतक और 16 अर्धशतक शामिल हैं। उनका सर्वाधिक स्कोर नाबाद 203 रन रहा था। उनका औसत भले ही प्रभावशाली न हो लेकिन इनमें से 40 टेस्ट मैच उन्होंने तब खेले थे जबकि 1961 में एक कार दुर्घटना में उनकी दायीं आंख की रोशनी चली गई थी। इससे पहले के छह टेस्ट मैच में उनका औसत 41.00 था।

अपने प्रथम श्रेणी के करियर में पटौदी ने 310 मैचों में 33.67 के औसत से 15425 रन बनाए थे जिनमें 33 शतक और 75 अर्धशतक शामिल थे। पटौदी ने अपने 46 टेस्टों में से 40 में भारत का नेतृत्व किया था और नौ में भारत को जीत दिलाई थी।

उन्होंने मात्र 21 वर्ष की उम्र में भारतीय टीम की कप्तानी संभाली थी। पटौदी उस समय दुनिया के सबसे युवा कप्तान बने थे। टेस्ट क्रिकेट में सबसे कम उम्र में कप्तानी का रिकार्ड लंबे समय तक उनके नाम पर रहा। उनके कप्तान बनने के बाद भारतीय क्रिकेट की तस्वीर भी बदलने लगी। पटौदी को यह जिम्मेदारी वेस्टइंडीज दौरे में नारी कांट्रेक्टर के सिर में चोट लगने के कारण दी गई थी। उन्होंने एक आंख की रोशनी के बावजूद टेस्ट क्रिकेट में पांच शतक लगाए जिनमें कप्तान के रूप में उनकी पहली पूरी सीरीज 1963-64 में दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ बनाया उनका उच्चतम स्कोर नाबाद 203 रन भी शामिल है। पटौदी ने उसी वर्ष आस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ दो अर्धशतक बनाए थे जिसकी बदौलत भारत ने मुंबई टेस्ट जीता था। उन्होंने चेन्नई टेस्ट में आस्ट्रेलिया के खिलाफ नाबाद शतक भी बनाया था। फिरोजशाह कोटला में ही उन्होंने 1965 में न्यूजीलैंड के खिलाफ 113 रन की जोरदार पारी खेली थी जिससे भारत सात विकेट से मैच जीतने में सफल रहा था।

पटौदी की ही कप्तानी में भारत ने विदेश में पहली जीत दर्ज की थी। अपनी दाई आंख की रोशनी गंवाने के कुछ महीनों बाद जब उन्हें टीम की कमान सौंपी गई तो भारत ने मुंबई में आस्ट्रेलिया को पटौदी की 53 रन की खूबसूरत पारी के दम पर दो विकेट से हराया था। भारत 1968 में जब न्यूजीलैंड दौरे पर गया तो वहां पटौदी की अगुवाई वाली टीम ने अपने प्रतिद्वंद्वी को तीन मैच में हराकर पहली बार विदेशी धरती पर भी सीरीज जीती थी। पटौदी की कप्तानी में ही भारत ने बिल लारी की आस्ट्रेलियाई टीम को 1969 में दिल्ली में सात विकेट से हराया। उन्हें 1974 में जब फिर से कप्तान बनाया गया तो भारत ने वेस्टइंडीज को कोलकाता और चेन्नई में करारी मात दी थी। उनकी कप्तानी में भारत ने नौ मैच जीते जो लंबे समय तक भारतीय रिकार्ड बना रहा।

टाइगर के कमान संभालने से पहले भारतीय टीम को नौसिखिया माना जाता था जिससे आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी बड़ी टीमें ज्यादा क्रिकेट नहीं खेलना चाहती थी लेकिन पटौदी ने अपने खिलाडि़यों को सिखाया कि वह भी जीत सकते हैं और दिग्गज टीमों को नतमस्तक करने का माद्दा उनमें भी है। पटौदी हमेशा इस बात के हिमायती रहे थे कि टीम की जो ताकत है उसे उसी हिसाब से खेलना चाहिए। स्पिनर उस समय भारतीय टीम की ताकत हुआ करते थे और उन्होंने अपनी सफलताएं तीन स्पिनरों को मैदान पर उतारकर हासिल की थीं।

वह साहसिक बल्लेबाजी के लिए भी जाने जाते थे और फील्डरों के ऊपर से शाट खेलने से नहीं चूकते थे। वह परंपरागत सोच में यकीन नहीं रखने वाले कप्तान थे और हमेशा कुछ अलग करने की कोशिश में रहते थे। एक कार दुर्घटना में उनकी दाईं आंख की रोशनी पर असर पडा था जिससे उनका क्रिकेट करियर प्रभावित हुआ।

क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद वह 1993 से 1996 तक आईसीसी मैच रैफरी भी रहे थे जिसमें उन्होंने दो टेस्ट और 10 वनडे में यह भूमिका निभाई थी। वह 2005 में तब एक विवाद में भी फंस गए थे जब उन्हें लुप्त प्रजाति काले हिरण के अवैध शिकार के लिए गिरफ्तार किया गया था। वर्ष 2008 में पटौदी इंडियन प्रीमियर लीग [आईपीएल] की संचालन परिषद में भी नियुक्त किए गए थे और दो साल तक इस पद पर बने रहने के बाद उन्होंने बीसीसीआई के इस पद की पेशकश को ठुकरा दिया था।


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