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ग़ज़लों की दुनिया के बादशाह पद्मभूषण जगजीत सिंह। अपनी सहराना आवाज़ से लाखों-करोड़ों सुनने वालों के दिलों पर अपना जादू चलाते रहें।
==जीवन परिचय==
====जन्म====
जगजीत जी का जन्म [[8 फ़रवरी]] 1941 को [[राजस्थान]] के गंगानगर में हुआ था। पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत जी का परिवार मूलतः [[पंजाब]] के रोपड़ ज़िले के दल्ला गाँव का रहने वाला है। माँ बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गाँव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था। करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए।
====शिक्षा====
शुरूआती शिक्षा [[गंगानगर]] के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद [[कुरूक्षेत्र]] विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया।
====संगीत की शुरुआत====
बचपन में अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। गंगानगर मे ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे 1965 में मुंबई आ गए।
====जीवन में संघर्ष====
वे पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे। यहाँ से संघर्ष का दौर शुरू हुआ।
इसके बाद फ़िल्मों में हिट संगीत देने के सारे प्रयास बुरी तरह नाकामयाब रहे। कुछ साल पहले डिंपल कापड़िया और विनोद खन्ना अभिनीत फ़िल्म लीला का संगीत औसत दर्ज़े का रहा।
#1994  में ख़ुदाई,
#1989 में बिल्लू बादशाह,
#1989 में क़ानून की आवाज़,
#1987 में राही,
#1986 में ज्वाला,
#1986 में लौंग दा लश्कारा,
#1984 में रावण और
#1982 में सितम के गीत चले और न ही फ़िल्में।
====विवाह====
1967 में जगजीत जी की मुलाक़ात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए।
==फ़िल्मी जगत== 
1981 में रमन कुमार निर्देशित ‘प्रेमगीत’ और 1982 में महेश भट्ट निर्देशित '''अर्थ''' को भला कौन भूल सकता है। '''अर्थ''' में जगजीत जी ने ही संगीत दिया था। फ़िल्म का हर गाना लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया था। ये सारी फ़िल्में उन दिनों औसत से कम दर्ज़े की फ़िल्में मानी गईं। ज़ाहिर है कि जगजीत सिंह ने बतौर कमजोर बहुत पापड़ बेले लेकिन वे अच्छे फ़िल्मी गाने रचने में असफल ही रहे।  कुछ हिट फ़िल्मी गीत ये रहे-
#‘प्रेमगीत’ का ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’
#‘खलनायक’ का ‘ओ मां तुझे सलाम’
#‘दुश्मन’ का ‘चिट्ठी ना कोई संदेश’
#‘जॉगर्स पार्क’ का ‘बड़ी नाज़ुक है ये मंज़िल’
#‘साथ-साथ’ का ‘ये तेरा घर, ये मेरा घर’ और ‘प्यार मुझसे जो किया तुमने’
#‘सरफ़रोश’ का ‘होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’
#ट्रैफ़िक सिगनल का ‘हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते’ (फ़िल्मी वर्ज़न)
#‘तुम बिन’ का ‘कोई फ़रयाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’
#‘वीर ज़ारा’ का ‘तुम पास आ रहे हो’ (लता जी के साथ)
#‘तरक़ीब’ का ‘मेरी आंखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर’ (अलका याज्ञिक के साथ)


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ग़ज़लों की दुनिया के बादशाह पद्मभूषण जगजीत सिंह। अपनी सहराना आवाज़ से लाखों-करोड़ों सुनने वालों के दिलों पर अपना जादू चलाते रहें।

जीवन परिचय

जन्म

जगजीत जी का जन्म 8 फ़रवरी 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था। पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत जी का परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ ज़िले के दल्ला गाँव का रहने वाला है। माँ बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गाँव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था। करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए।

शिक्षा

शुरूआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया।

संगीत की शुरुआत

बचपन में अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। गंगानगर मे ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे 1965 में मुंबई आ गए।

जीवन में संघर्ष

वे पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे। यहाँ से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। इसके बाद फ़िल्मों में हिट संगीत देने के सारे प्रयास बुरी तरह नाकामयाब रहे। कुछ साल पहले डिंपल कापड़िया और विनोद खन्ना अभिनीत फ़िल्म लीला का संगीत औसत दर्ज़े का रहा।

  1. 1994 में ख़ुदाई,
  2. 1989 में बिल्लू बादशाह,
  3. 1989 में क़ानून की आवाज़,
  4. 1987 में राही,
  5. 1986 में ज्वाला,
  6. 1986 में लौंग दा लश्कारा,
  7. 1984 में रावण और
  8. 1982 में सितम के गीत चले और न ही फ़िल्में।

विवाह

1967 में जगजीत जी की मुलाक़ात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए।

फ़िल्मी जगत

1981 में रमन कुमार निर्देशित ‘प्रेमगीत’ और 1982 में महेश भट्ट निर्देशित अर्थ को भला कौन भूल सकता है। अर्थ में जगजीत जी ने ही संगीत दिया था। फ़िल्म का हर गाना लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया था। ये सारी फ़िल्में उन दिनों औसत से कम दर्ज़े की फ़िल्में मानी गईं। ज़ाहिर है कि जगजीत सिंह ने बतौर कमजोर बहुत पापड़ बेले लेकिन वे अच्छे फ़िल्मी गाने रचने में असफल ही रहे। कुछ हिट फ़िल्मी गीत ये रहे-

  1. ‘प्रेमगीत’ का ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’
  2. ‘खलनायक’ का ‘ओ मां तुझे सलाम’
  3. ‘दुश्मन’ का ‘चिट्ठी ना कोई संदेश’
  4. ‘जॉगर्स पार्क’ का ‘बड़ी नाज़ुक है ये मंज़िल’
  5. ‘साथ-साथ’ का ‘ये तेरा घर, ये मेरा घर’ और ‘प्यार मुझसे जो किया तुमने’
  6. ‘सरफ़रोश’ का ‘होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’
  7. ट्रैफ़िक सिगनल का ‘हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते’ (फ़िल्मी वर्ज़न)
  8. ‘तुम बिन’ का ‘कोई फ़रयाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’
  9. ‘वीर ज़ारा’ का ‘तुम पास आ रहे हो’ (लता जी के साथ)
  10. ‘तरक़ीब’ का ‘मेरी आंखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर’ (अलका याज्ञिक के साथ)


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