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| {{वाराणसी विषय सूची}}
| | #REDIRECT [[वाराणसी पर्यटन]] |
| {{सूचना बक्सा वाराणसी}}
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| वाराणसी, '''[[बनारस]] या [[काशी]]''' भी कहलाता है। [[वाराणसी]] दक्षिण-पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] राज्य, उत्तरी-मध्य [[भारत]] में [[गंगा नदी]] के बाएँ तट पर स्थित है और [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के सात पवित्र शहरों में से एक है।
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| वाराणसी एक पर्यटन स्थल हैं। वाराणसी में देखने के लिए बहुत कुछ है। वाराणसी में क़रीब 2000 मंदिर हैं। वाराणसी में शाम के समय गंगा के किनारे होने वाली आरती काफ़ी आकर्षक होती है। हिन्दुओं के अलावा [[बौद्ध धर्म]] के अनुयायी भी वाराणसी में घूमने आते हैं।
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| ==वाराणसी की नदियाँ==
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| {{मुख्य|वाराणसी की नदियाँ}}
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| वाराणसी का विस्तार [[गंगा नदी]] के दो संगमों [[वरुणा नदी]] और [[असी नदी]] से संगम के बीच बताया जाता है। इन संगमों के बीच की दूरी लगभग 2.5 मील है। इस दूरी की परिक्रमा हिन्दुओं में पंचकोसी यात्रा या पंचकोसी परिक्रमा कहलाती है। वाराणसी ज़िले की नदियों के विस्तार से अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि वाराणसी में तो प्रस्रावक नदियाँ है लेकिन चंदौली में नहीं है, जिससे उस ज़िले में झीलें और दलदल हैं, अधिक बरसात होने पर गाँव पानी से भर जाते हैं तथा फ़सल को काफ़ी नुकसान पहुँचता है।
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| ==वाराणसी के मंदिर==
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| वाराणसी में कई प्रमुख मंदिर स्थित हैं। वाराणसी कई प्रमुख मंदिरों का नगर है। वाराणसी में लगभग हर एक चौराहे पर एक मंदिर स्थित है। दैनिक स्थानीय अर्चना के लिये ऐसे छोटे मंदिर सहायक होते हैं। इन छोटे मंदिरों के साथ ही वाराणसी में ढेरों बड़े मंदिर भी हैं, जो समय-समय पर [[वाराणसी का इतिहास|वाराणसी के इतिहास]] में बनवाये गये थे।
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| ====काशी विश्वनाथ मंदिर====
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| {{मुख्य|विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग}}
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| मूल 'काशी विश्वनाथ मंदिर' बहुत छोटा था। 18वीं शताब्दी में इंदौरा की रानी [[अहिल्याबाई होल्कर]] ने इसे भव्य रूप प्रदान किया। [[सिक्ख]] राजा [[रणजीत सिंह]] ने 1835 ई. में इस मंदिर के शिखर को [[सोना|सोने]] से मढ़वाया था। इस कारण इस मंदिर का एक अन्य नाम 'गोल्डेन टेम्पल' भी पड़ा।
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| यह मंदिर कई बार ध्वस्त हुआ। वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण चौथी बार में हुआ है। [[क़ुतुबुद्दीन ऐबक]] ने सर्वप्रथम इसे 1194 ई. में ध्वस्त किया था। [[रज़िया सुल्तान]] (1236-1240) ने इसके ध्वंसावशेष पर रज़िया मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद इस मंदिर का निर्माण अभिमुक्तेश्वर मंदिर के नज़दीक बनवाया गया। बाद में इस मंदिर को [[जौनपुर]] के [[शर्की वंश|शर्की]] राजाओं ने तोड़वा दिया। 1490 ई. में इस मंदिर को [[सिंकदर लोदी]] ने ध्वंस करवाया था। 1585 ई. में बनारस के एक प्रसिद्ध व्यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में इस मंदिर को [[औरंगज़ेब]] ने पुन: तोड़वा दिया। औरंगज़ेब ने भी इस मंदिर के ध्वंसावशेष पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।
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| [[चित्र:Vishwanath-Temple-Varanasi.jpg|[[विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग|विश्वनाथ मन्दिर]], वाराणसी<br /> Vishwanath Temple, Varanasi|thumb|200px|left]]
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| मूल मंदिर में स्थित [[नन्दी|नंदी बैल]] की मूर्त्ति का एक टुकड़ा अभी भी जाना वापी मस्जिद में दिखता है। इसी मस्जिद के समीप एक जाना वापी कुंआ भी है। विश्वास किया जाता है कि प्राचीन काल में इस कुएं से अभिमुक्तेश्वर मंदिर में पानी की आपूर्ति होती थी। 1669 ई. में जब काशी विश्वनाथ के मंदिर को औरंगज़ेब द्वारा तोड़ा जा रहा था, तब इस मंदिर में स्थापित विश्वनाथ की मूर्त्ति को इसी कुएं में छिपा दिया गया था। जब वर्तमान काशी विश्वनाथ का निर्माण हुआ तब इस कुंए से मूर्त्ति को निकाल कर पुन: मंदिर में स्थापित किया गया। इस मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी हैं। ये मंदिर [[विष्णु]], अभिमुक्ता विनायक, दण्डपाणिश्वर, काल भैरव तथा विरुपक्ष गौरी का मंदिर है। दश्वमेद्यघाट से यह मंदिर आधे किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर चौबीस घण्टे खुला रहता है।
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| ====दूध का कर्ज़ मंदिर====
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| {{मुख्य|दूध का कर्ज़ मंदिर वाराणसी}}
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| *[[वाराणसी]] में 'दूध का कर्ज' मंदिर प्रसिद्ध मंदिर है।
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| *पर्यटकों को वाराणसी में यह मंदिर जरूर देखना चाहिए।
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| ====अन्नपूर्णा का मंदिर====
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| {{मुख्य|अन्नपूर्णा मंदिर वाराणसी}}
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| *काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता अन्नपूर्णा का मंदिर है।
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| *इन्हें तीनों लोकों की माता माना जाता है।
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| [[चित्र:Ganga-River-Varanasi-5.jpg|thumb|250px|[[गंगा नदी]], वाराणसी|left]]
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| ====साक्षी गणेश मंदिर====
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| {{मुख्य|साक्षी गणेश मंदिर वाराणसी}}
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| वाराणसी में स्थित साक्षी गणेश मंदिर एक प्रसिद्ध मंदिर है।
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| ====काशी विशालाक्षी मंदिर====
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| {{मुख्य|काशी विशालाक्षी मंदिर वाराणसी}}
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| *विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर काशी विशालाक्षी मंदिर है।
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| *यह पवित्र 51 [[शक्तिपीठ|शक्तिपीठों]] में से एक है।
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| ====केदारेश्वर मंदिर====
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| {{मुख्य|केदारेश्वर मंदिर वाराणसी}}
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| [[चित्र:Ghat-Varanasi-2.jpg|thumb|250px|वाराणसी में [[गंगा नदी]] के घाट]]
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| *केदार घाट के पास केदारेश्वर मंदिर है।
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| *यह मंदिर 17वीं शताब्दी में औरंगज़ेब के कहर से बच गया था।
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| ====विष्णु चरणपादुका====
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| {{मुख्य|विष्णु चरणपादुका वाराणसी}}
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| *मणिकार्णिका घाट के समीप विष्णु चरणपादुका है।
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| *इसे संगमरमर से चिन्हित किया गया है।
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| ====भैरव मंदिर====
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| {{मुख्य|भैरव मंदिर वाराणसी}}
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| *वाराणसी में काली भैरव मंदिर भी प्रसिद्ध है।
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| *यह मंदिर गोदौलिया चौक से 2 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में टाउन हॉल के पास स्थित है।
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| ====सीता मंदिर====
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| {{मुख्य|सीता मंदिर वाराणसी}}
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| *वाराणसी में देवी [[सीता]] का दोमंजिला मंदिर है।
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| *यह मंदिर मानसून के मौसम में चारों तरफ़ से पानी से घिर जाता है। माना जाता है कि देवी सीता यहीं पर धरती में समा गई थीं।
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| [[चित्र:Ghat-Varanasi.jpg|thumb|250px|वाराणसी में [[गंगा नदी]] के घाट|left]]
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| ====विंध्याचल====
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| {{मुख्य|विंध्याचल मंदिर वाराणसी}}
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| *वाराणसी से विंध्याचल मंदिर 78 किलोमीटर और [[इलाहाबाद]] से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
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| *यह एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है।
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| ==सारनाथ==
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| {{main|सारनाथ}}
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| [[चित्र:Sarnath-Stupa.jpg|thumb|250px|[[सारनाथ]] [[स्तूप]]<br /> Sarnath Stupa]]
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| सारनाथ वाराणसी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सारनाथ [[बौद्ध|बौद्धों]] का एक बड़ा तीर्थस्थल है। यहीं [[गौतम बुद्ध|महात्मा बुद्ध]] ने ज्ञान प्राप्ित के बाद प्रथम उपदेश दिया था। यहां कई [[स्तूप]] तथा मंदिर है। चौखण्डी स्तूप, धमेखा स्तूप तथा धर्मराजिका स्तूप यहां हैं। धमेखा स्तूप उसी जगह पर बना हुआ है, जहां पर भगवान बुद्ध ने दूसरी बार उपदेश दिया था। इसे सारनाथ में सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। चौखण्डी स्तूप के निकट ही एक थाई मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण 1976 ई. में हुआ था।
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| सारनाथ में एक पुरातत्वीय संग्रहालय ( समय: सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक, प्रवेश शुल्क: 5 रु., शुक्रवार बंद) भी है। इस संग्रहालय में कई उत्कृष्ट मूर्त्तियां हैं। सारनाथ में ही एक अशोक स्तंभ है। इसके अलावा यहां बुद्ध की अभयमुद्रा में 287 मीटर ऊंची मूर्त्ति है। यह मूर्त्ति मूर्तिकला की [[मथुरा]] शैली में बनी हुई है। यहां एक हिरण पार्क भी है।
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| ==वाराणसी के कुंड==
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| ====लोलारक कुंड====
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| तुलसीघाट से पैदल दूरी पर पवित्र लोलारक कुंड है। [[महाभारत]] में भी इस कुण्ड का उल्लेख मिलता है। रानी [[अहिल्याबाई होल्कर]] ने इस कुण्ड के चारों तरफ कीमती पत्थर से सजावट करवाई थी। यहां पर लोलाकेश्वर का मंदिर है। भादो महीने (अगस्त-सितम्बर) में यहां मेला लगता है।
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| ====दुर्गा कुण्ड====
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| अस्सी रोड से कुछ ही दूरी पर आनन्द बाग़ के पास दुर्गा कुण्ड है। यहां संत भास्करानंद की समाधि है। यहां पर एक दुर्गा मंदिर भी है। मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में [[भक्त|भक्तों]] की काफ़ी भीड़ रहती है। इसी के पास [[हनुमान]] जी का संकटमोचन मंदिर है। महत्ता की दृष्टि से इस मंदिर का स्थान काशी विश्वनाथ और अन्नपूर्णा मंदिर के बाद आता है।
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| ====अन्य सांस्कृतिक उत्सव====
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| [[चित्र:Ghat-Varsanasi-4.jpg|thumb|250px|[[गंगा नदी]], [[वाराणसी]]]]
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| फागुन (फ़रवरी-मार्च) में [[शिवरात्रि]] के उत्सव के दौरान यहां जरुर आना चाहिए। इस दौरान मंदिर के [[देवता]] का श्रृंगार किया जाता है। रंगभरी एकादशी भी यहां बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान शिवभक्त भगवान [[शिव]] की मूर्त्ति को [[लाल रंग]] के चूर्ण से रंग देते हैं। पंचकरोशी यात्रा प्रत्येक साल अप्रैल के महीने में होती है। दुर्गा पूजा (सितम्बर-अक्टूबर) के दौरान मनाया जाता है। भरत मिलाप उत्सव [[विजयादशमी]] को मनाया जाता है। इस दिन 'संस्कृत विश्वविद्यालय' के समीप मेला लगता है। [[दीपावली]] के समय का यहां का गंगा स्नान भी काफ़ी प्रसिद्ध है। दीपावली के अगले दिन यहां अन्नाकूता उत्सव मनाया जाता है। [[कार्तिक पूर्णिमा]] के दौरान यहां सभी घाटों को मृत्यु के देवता [[यमराज]] के सम्मान में दीयों से सजाया जाता है।
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| {{पर्यटन चित्र वाराणसी}}
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| ==वाराणसी के घाट==
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| {{Main|वाराणसी के घाट}}
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| [[चित्र:Ghat-Varanasi-3.jpg|thumb|250px|वाराणसी में [[गंगा नदी]] के घाट]]
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| वाराणसी (काशी) में [[गंगा नदी|गंगा]] तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी के घाट [[गंगा नदी|गंगा]] नदी के धनुष की आकृति होने के कारण मनोहारी लगते हैं। सभी घाटों के पूर्वार्भिमुख होने से सूर्योदय के समय घाटों पर पहली किरण दस्तक देती है। उत्तर दिशा में राजघाट से प्रारम्भ होकर दक्षिण में अस्सी घाट तक सौ से अधिक घाट हैं। मणिकर्णिका घाट पर चिता की अग्नि कभी शांत नहीं होती, क्योंकि बनारस के बाहर मरने वालों की अन्त्येष्टी पुण्य प्राप्ति के लिये यहीं की जाती है। कई हिन्दू मानते हैं कि वाराणसी में मरने वालों को मोक्ष प्राप्त होता है।<br />
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| ===प्रमुख घाट===
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| वाराणसी में कुछ प्रसिद्ध घाट हैं। इनमें कुछ घाटों का धार्मिक व अध्यात्मिक महत्त्व है और कुछ घाट अपनी प्राचीनता तो कुछ ऐतिहासिकता व कुछ कला के लिहाज़ से ख़ासियत रखते हैं।<ref name="जागरण यात्रा">{{cite web |url=http://www.jagranyatra.com/2010/04/varansi-religious-culture-temples-ghat/ |title=वाराणसी के घाट |accessmonthday=[[17 फ़रवरी]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण यात्रा |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| ====अस्सीघाट====
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| *अस्सीघाट वाराणसी के दक्षिणी छोर पर गंगा व असि नदी के संगम पर स्थित है।
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| *यह घाट श्रद्धालुओं की आस्था व आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है।
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| *यहीं पर भगवान जगन्नाथ का प्रसिद्ध मंदिर है।
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| ====तुलसी घाट====
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| *तुलसीघाट प्रसिद्ध कवि [[तुलसीदास]] से संबंधित है।
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| *यहाँ गोस्वामी तुलसी दास ने श्रीरामचरित मानस के कई अंशों की रचना की थी।
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| *कहा जाता है कि तुलसीदास ने अपना आख़िरी समय यहीं व्यतीत किया था।
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| *इस घाट का नाम पहले लोलार्क घाट था।
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| ====हरिश्चंद्र घाट====
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| *हरिश्चंद्र घाट का संबंध राजा [[हरिश्चंद्र]] से है।
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| *सत्यप्रिय राजा हरिश्चंद्र के नाम पर यह घाट वाराणसी के प्राचीनतम घाटों में एक है।
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| *इस घाट पर हिन्दू मरणोपरांत दाहसंस्कार करते हैं।
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| ====केदार घाट====
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| *केदार घाट का नाम केदारेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर पड़ा है।
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| *इस घाट के समीप में ही स्वामी करपात्री आश्रम व गौरी कुंड स्थित है।
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| ====दशाश्वमेध घाट====
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| *यह घाट गोदौलिया से गंगा जाने वाले मार्ग के अंतिम छोर पर पड़ता है।
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| *प्राचीन ग्रंथो के मुताबिक राजा दिवोदास द्वारा यहाँ दस [[अश्वमेध यज्ञ]] कराने के कारण इसका नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा।
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| *एक अन्य मत के अनुसार नागवंशीय राजा वीरसेन ने चक्रवर्ती बनने की आकांक्षा में इस स्थान पर दस बार अश्वमेध कराया था।<ref name="जागरण यात्रा" />
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| ====राजेन्द्र घाट====
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| *राजेन्द्र प्रसाद घाट दशाश्वमेध घाट के बगल में है।
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| *यह घाट देश के प्रथम [[राष्ट्रपति]] [[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] की स्मृति में बनाया गया है।
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| ====मणिकर्णिका घाट====
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| *[[पुराण|पौराणिक]] मान्यताओं से जुड़े मणिकर्णिका घाट का धर्मप्राण जनता में मरणोपरांत अंतिम संस्कार के लिहाज़ से अत्यधिक महत्त्व है।
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| *इस घाट की गणना काशी के पंचतीर्थो में की जाती है।
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| *मणिकर्णिघाट पर स्थित भवनों का निर्माण [[पेशवा]] बाजीराव तथा अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था।
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| ====चेत सिंह घाट====
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| [[चित्र:Chet-Singh-Ghat-Varanasi.jpg|thumb|250px|चेत सिंह घाट, [[वाराणसी]]]]
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| *चेत सिंह घाट एक क़िला की तरह लगता है।
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| *चेत सिंह बनारस के एक साहसी राजा थे जिन्होंने 1781 ई. में वॉरेन हेस्टिंगस की सेना के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी।
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| ====पंचगंगा घाट====
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| *पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पंचगंगा घाट से [[गंगा]], [[यमुना]], [[सरस्वती नदी|सरस्वती]], किरण व धूतपापा नदियाँ गुप्त रूप से मिलती हैं।
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| *इसी घाट की सीढि़यों पर गुरु [[रामानंद]] से [[संत कबीरदास]] ने दीक्षा ली थी।
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| ====राजघाट====
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| *राजघाट काशी रेलवे स्टेशन से सटे मालवीय सेतु (डफरिन पुल) के पार्श्व में स्थित है।
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| *यहां संत रविदास का भव्य मंदिर भी है।
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| ====आदिकेशव घाट====
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| *आदिकेशव घाट वरुणा व गंगा के संगम पर स्थित है।
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| *यहाँ संगमेश्वर व ब्रह्मेश्वर मंदिर दर्शनीय हैं।
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| *इसके अलावा गायघाट, लालघाट, सिंधिया घाट आदि काशी के सौंदर्य को उद्भाषित करते हैं।<ref name="जागरण यात्रा" />
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| ====बच्चाराजा घाट====
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| *बच्चाराजा घाट तुलसी घाट के समीप स्थित है।
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| *यहीं पर जैनों के सातवें तीर्थंकर सुपर्श्वनाथ का जन्म हुआ था।
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| *अब यह जैनघाट के नाम से जाना जाता है।
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| {{लेख प्रगति
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| {{संदर्भ ग्रंथ}}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==संबंधित लेख==
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| {{वाराणसी}}{{उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल}}
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| [[Category:उत्तर प्रदेश]]
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| [[Category:उत्तर प्रदेश के पर्यटन स्थल]]
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| [[Category:पर्यटन कोश]]
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| [[Category:वाराणसी]]
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