User talk:Sanjay marar: Difference between revisions
आदित्य चौधरी (talk | contribs) ('{{वार्ता}} अश्वमेध मे हिंसा नही होती थी यह बाद के काल म...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
अश्वमेध मे हिंसा नही होती थी यह बाद के काल में विकृत हो ग ई हो, यह गुढ़ संस्कृत के गलत भाष्य से हु आ होगा । यज्ञ को अध्वर अर्थात हिंसारहित कर्म कहा गया है। इसका एक कारण वाममार्गी भी हो सकते हैं। देखें यजुर्वेद की भूमिका. गायत्री परिवार द्वारा भाष्य। | अश्वमेध मे हिंसा नही होती थी यह बाद के काल में विकृत हो ग ई हो, यह गुढ़ संस्कृत के गलत भाष्य से हु आ होगा । यज्ञ को अध्वर अर्थात हिंसारहित कर्म कहा गया है। इसका एक कारण वाममार्गी भी हो सकते हैं। देखें यजुर्वेद की भूमिका. गायत्री परिवार द्वारा भाष्य। |
Revision as of 07:47, 23 November 2011
अश्वमेध मे हिंसा नही होती थी यह बाद के काल में विकृत हो ग ई हो, यह गुढ़ संस्कृत के गलत भाष्य से हु आ होगा । यज्ञ को अध्वर अर्थात हिंसारहित कर्म कहा गया है। इसका एक कारण वाममार्गी भी हो सकते हैं। देखें यजुर्वेद की भूमिका. गायत्री परिवार द्वारा भाष्य।
अश्वमेध मे हिंसा ?
Sanjay marar जी आचार्य श्रीराम शर्मा जी विद्वान थे और मैं उनसे व्यक्तिगत रूप से परिचित था। अनेक वर्षों तक रोज़ाना 8-8 घंटे लिखते रहे थे। समाज में उनका बहुत सम्मान है।
अनेक संप्रदायों के प्रवर्तकों और गुरुओं ने भारत के प्राचीन संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद अपने संप्रदाय से सामंजस्य बनाते हुए किए हैं। ये अनुवाद असल में मन मुताबिक रूपान्तरण हैं जो हिन्दू धर्म को अपनी सुविधानुसार प्रस्तुत करने की प्रक्रिया में मूल स्वरूप को समाप्त करके कुछ अलग ही रूप में प्रस्तुत करते हैं। बुद्ध को भी हिन्दू अवतार बना कर उनके उपदेशों को 'आत्मा' की धारणा से जोड़ दिया जाता है। जबकि सभी जानते हैं कि बौद्ध धर्म में आत्मा की कोई अवधारणा नहीं है और ईश्वर की भी नहीं।
संस्कृत भाषा पूरी तरह से एक वैज्ञानिक भाषा है जिसका उच्चारण ज्यों का त्यों किया जा सकता है और अनुवाद भी हिन्दी के साथ-साथ अनेक भारतीय भाषाओं में आसानी से हो सकता है। ये सब बातें अव्यावहारिक हैं कि संस्कृत का ग़लत अनुवाद हो गया।
जिस काल में ये यज्ञ होते थे उस समय हिंसा, मांस भक्षण, बलि चढाना (जानवर भी और मनुष्य बलि भी) सामान्य बातें थीं। जैसे कि सीता ने राम से सुनहरे मृग का चर्म मांगा (मारीच प्रकरण)। इस सुन्दर और निरीह प्राणी हिरन की हत्या कर उसका चर्म उतारकर अपनी पत्नी सीता को देने का कार्य स्वयं भागवान श्री राम करने वाले थे... ये सब उस काल-परिस्थित की साधारण दैनिक कार्रवाइयाँ थीं... संस्कृति थी...इसमें बेकार की बहस का कोई औचित्य नहीं है।
रही बात वामपंथ की तो भारतकोश पर तो सिर्फ़ 'भारत-पंथ' ही चलता है। दक्षिणपंथ, वामपंथ, कोई जाति, कोई धर्म, आदि जैसी मानसिकता के पूर्वाग्रह की यहाँ कोई जगह नहीं है। सर्वधर्म सर्वजाति समभाव और सर्वजन हिताय है भारतकोश। धन्यवाद सहित... प्रशासक|link=User:आदित्य चौधरी आदित्य चौधरी प्रशासक . वार्ता 12:44, 23 नवम्बर 2011 (IST)