रम्या और विनीथा: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) ('thumb|रम्या और विनीथा (अंतिम समय में) '''रम...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 71: | Line 71: | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
Revision as of 13:13, 11 December 2011
thumb|रम्या और विनीथा (अंतिम समय में) रम्या राजन और पी.के. विनीथा केरल की रहने वाली दो नर्स हैं जिनकी 9 दिसंबर 2011 शुक्रवार को कोलकाता आमरी अस्पताल में हुए भीषण अग्निकांड में फंसे लोगों को बचाने में मृत्यु हो गयी।
समाचार
खुद मौत को गले लगाकर रम्या और विनीथा ने बचाई 8 जानें
आग की लपटों और जहरीले धुएं से घिरे कोलकाता के एएमआरआई (आमरी) अस्पताल में 'रम्या राजन' और 'पी.के. विनीथा' ने मानवता और बहादुरी की अतुलनीय मिसाल पेश की। अपनी जान की परवाह न करते हुए दोनों ने आठ मरीजों को सुरक्षित निकाल लिया, पर एक अन्य मरीज को बचाने के प्रयास में उनकी मौत हो गई। अस्पताल की डिप्टी नर्सिग अधीक्षक सुमिनी ने बताया कि जिस समय हादसा हुआ उस समय रम्या और विनीथा (दोनों की उम्र लगभग 24 वर्ष) महिला वार्ड में ड्यूटी पर थीं। वार्ड में दमघोंटू जहरीले धुएं के घुसने पर उन्होंने जरा भी समय गंवाए बिना वहाँ भर्ती आठ मरीजों को एक-एक कर सुरक्षित निकाल लिया, पर नौवें मरीज को बचाने के प्रयास में फ्रैक्चर, धुएं से दम घुटने और अत्यधिक गर्मी की वजह से उनकी मौत हो गई।
समाचार विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें
रम्या राजन
thumb|रम्या राजन रम्या ने कोलकाता में हुए हादसे की रात मरीजों को बचाने से पहले केरल स्थित अपने घर पर मां से फोन पर बात की थी, जो उनके बीच हुई आखिरी बातचीत थी। बातचीत में उसने मां को बताया था कि अस्पताल में तेज गंध वाला धुआं भर गया है और सांस लेने में परेशानी हो रही है। इससे पहले कि बात पूरी होती फोन कट गया। बाद में एक अन्य नर्स ने रम्या के घर फोन कर जानकारी दी कि रम्या सहित दो मलयाली नर्सो की अग्निकांड में मौत हो गई।
पी.के. विनीथा
thumb|विनीथा विनीथा भी कोट्टायम की रहने वाली थी। बेहद गरीब परिवार की विनीथा ने चंड़ीगढ़ के एक अस्पताल से इस्तीफा देकर दो माह पहले ही एएमआरआई अस्पताल में नौकरी की थी।
- रम्या और विनीथा की वंदना में एक कविता
रम्या और विनीथा की मानवता और बहादुरी की अतुलनीय मिसाल को दर्शाती वरिष्ठ हिन्दी कवि अशोक चक्रधर की कविता।
दिव्य दिवंगत नर्स रम्या और विनीथा!
वहां हर कोई तुम्हारा ऋणी था।
ऋणी है और ऋणी रहेगा,
इंसानियत का हर ज़र्रा यही कहेगा—
दृश्य जहां था हाहाकारी,
युवा चेतना वहां न हारी।
चौबिस की थीं दोनों नर्सें,
पीड़ा पर करुणा बन बरसें।
आग धुंए की आपाधापी,
इन्हें न कोई चिंता व्यापी।
कुटिल काल क्रीड़ा कराल थी,
हिम्मत इनकी बेमिसाल थी।
तड़प रहे थे बेबस रोगी,
निश्चित ही था दुर्गति होगी।
दमघोंटू था धुआं भयानक,
तन को झुलसाता था पावक।
मृत्यु अचानक खुल कर नाची,
यम ने अपनी पोथी बांची।
गूंज रही थीं कलप-कराहें,
सांसों की जो भिक्षा चाहें।
जीवन बनीं विनीथा-रम्या,
धुंए-धांस में सांस सुरम्या।
जिनको थे जीवन के लाले,
एक एक कर आठ निकाले।
ये दोनों कोमल कन्याएं,
उठा-उठा कर बाहर लाएं।
बाहर से फिर जाएं अंदर,
हिम्मत का बन एक समंदर।
नवां मरीज़ अपाहिज भारी,
आग हो गई प्रलयंकारी।
चारों ओर धुआं ज़हरीला,
ख़त्म कर गया इनकी लीला।
परहित अपने प्राण गंवाए,
सबने अपने शीश झुकाए।
जिन्होंने आहुति दी निष्काम,
रम्या और विनीथा को प्रणाम!
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख