सत्यदेव दुबे: Difference between revisions

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सत्यदेव दुबे भारत के जानेमाने नाटककार, पटकथा लेखक, फिल्म व नाट्य निर्देशक रहे हैं। उनका जन्म छत्तीसगढ़ के शहर बिलासपुर में 1936 में हुआ था। शुरुआती दिनों में दूबेजी की क्रिकेट के प्रति दीवानगी थी और वे एक नामी क्रिकेटर बनना चाहते थे और अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई चले आए थे लेकिन शौकिया तौर पर भारतीय रंगमंच के पितामह कहलाने वाले इब्राहीम अल्काजी द्वारा संचालित थिएटर के संपर्क में आने से उनकी जिंदगी बदल गई। पी डी शिनॉय और निखिलजी का मार्गदर्शन रहा। अल्काजी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रमुख का पद संभालने दिल्ली चले गए तो मुंबई में उनके रंगमंच की कमान दुबे के हाथों में आ गई।
सत्यदेव दुबे भारत के जानेमाने नाटककार, पटकथा लेखक, फिल्म व नाट्य निर्देशक रहे हैं। उनका जन्म छत्तीसगढ़ के शहर बिलासपुर में 1936 में हुआ था। शुरुआती दिनों में दूबेजी की क्रिकेट के प्रति दीवानगी थी और वे एक नामी क्रिकेटर बनना चाहते थे और अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई चले आए थे लेकिन शौकिया तौर पर भारतीय रंगमंच के पितामह कहलाने वाले इब्राहीम अल्काजी द्वारा संचालित थिएटर के संपर्क में आने से उनकी जिंदगी बदल गई। पी डी शिनॉय और निखिलजी का मार्गदर्शन रहा। अल्काजी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रमुख का पद संभालने दिल्ली चले गए तो मुंबई में उनके रंगमंच की कमान दुबे के हाथों में आ गई।



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thumb|250px|सत्यदेव दुबे सत्यदेव दुबे भारत के जानेमाने नाटककार, पटकथा लेखक, फिल्म व नाट्य निर्देशक रहे हैं। उनका जन्म छत्तीसगढ़ के शहर बिलासपुर में 1936 में हुआ था। शुरुआती दिनों में दूबेजी की क्रिकेट के प्रति दीवानगी थी और वे एक नामी क्रिकेटर बनना चाहते थे और अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई चले आए थे लेकिन शौकिया तौर पर भारतीय रंगमंच के पितामह कहलाने वाले इब्राहीम अल्काजी द्वारा संचालित थिएटर के संपर्क में आने से उनकी जिंदगी बदल गई। पी डी शिनॉय और निखिलजी का मार्गदर्शन रहा। अल्काजी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रमुख का पद संभालने दिल्ली चले गए तो मुंबई में उनके रंगमंच की कमान दुबे के हाथों में आ गई।

मराठी थियेटर में किए गए उनके काम ने उन्हें काफी ख्य़ाति दिलाई। इतना ही नहीं सत्यदेव दुबे को मराठी और हिंदी थियेटर में किए गए उनके व्यापक काम के लिए पद्मभूषण भी दिया गया था। अपने लंबे कार्यकाल के दौरान सत्यदेव दुबे ने आज़ादी के बाद लिखे गए सभी प्रमुख नाटकों का निर्देशन और प्रस्तुतिकरण किया था।

गिरीश कर्नाड के पहले नाटक 'यायाति और हैयावदाना', बादल सरकार के 'इवाम इंद्रजीत और पगला घोडा', चंद्रशेखर कंबारा की 'और तोता बोला', मोहन राकेश के 'आधे-अधूरे' और विजय तेंदुलकर के 'गिदहड़े, शांता और कोर्ट चालू आहे' जैसे नाटकों का मंचन कर भारतीय रंगमंच मे योगदान दिया। उन्हें धर्मवीर भारती के रेडियो के लिखे नाटक 'अंधा युग' को रंगमंच पर उतारने का श्रेय दिया जाता है। दुबे ने दो लघु फिल्मों 'अपरिचय के विंध्याचल' और 'टंग इन चीक' का भी निर्माण किया और मराठी फिल्म 'शांताताई' का निर्देशन किया।

वे चर्चित नाटककार और निर्देशक थे। दुबे 'पगला घोड़ा', 'आधे अधूरे' और 'एवम इंद्रजीत' जैसे नाटकों के लिए प्रसिद्ध थे लेकिन उन्हें प्रसिद्धी 'अंधा युग' ने दिलाई। उन्होंने नाटकों के सौ से ज्यादा शो किये।

सत्यदेव दुबे ने श्याम बेनेगल की फिल्म 'भूमिका' के अलावा कुछ अन्य फिल्मों के लिए भी कहानी और डायलॉग लिखे थे। उनके द्वारा चलाए जाने वाले थियेटर कार्यशाला को पेशेवर और शौकिया तौर पर थियेटर करने वाले लोग एक समान पसंद किया करते थे।

निर्देशक के रूप में उन्होंने 1956 में काम शुरू किया। वे अनेक मराठी व हिन्दी फ़िल्मों के निर्देशक रहे हैं। उन्हें 1971 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया है। श्याम बेनेगल निर्देशित भूमिका फिल्म में सर्वश्रेष्ठ पटकथा लेखन के लिये उन्हें 1978 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। 1980 में जुनून फिल्म में संवाद लेखन के लिये उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। बाद में भारत सरकार ने कला क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान को देखते हुए पद्म भूषण से सम्मानित किया। सत्यदेव ने कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया और कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया है। उन्होंने निर्देशक श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी की फिल्मों संवाद और पटकथा भी लिखी। इनमें अंकुर (197।), निशांत (1975), भूमिका (1977), जुनून (1978), कलयुग (1980), आक्रोश (1980), विजेता (1982) और मंडी (1983) शामिल हैं।

साल 2011 गणतंत्र दिवस के मौके पर छत्तीसगढ़ के मशहूर सत्यदेव दुबे को पद्मभूषण दिये जाने की घोषणा हुई थी। दुबे जी थियेटर को रेप्रेज़ेंट करते रहे हैं। उन्होंने जो ठीक समझा वही किया। एक्टरों को उन्होनें सबसे पहले उसकी ज़मीन पर ठीक से खड़े रहना सिखाया अगर वो ऎसा नहीं कर पाया तो दुबेजी ने उसे डाट कर उसे ज़मीन पर ला कर खड़ा कर दिया। बम्बई की प्रशिद्ध संस्था 'थियटर यूनिट' ने सत्यदेव दुबे के निर्देशन में 'शुतुरमुर्ग़' के अनेक प्रदर्शन किये।

सत्यदेव दूबे के पौत्र ने कहा वह पिछले कई महीने से कोमा में थे। सत्यदेव दूबे को इस साल सितंबर महीने में जूहू स्थित पृथ्वी थियेटर कैफे में दौरा पड़ा था और तभी से वह कोमा में थे। इसके बाद से वे वह मस्तिष्क-आघात से जूझ रहे थे।

वयोवृद्ध नाटककार एवं निर्देशक सत्यदेव दुबे का निधन रविवार 25 दिसंबर, 2011 को सुबह करीब 12:30 बजे मुम्बई में हुआ था। वह 75 वर्ष के थे और कई दिनो से बीमार थे। सत्यदेव के परिजनों ने बताया था कि वह पिछले कई दिनों से कोमा में थे। वह मस्तिष्क आघात से पीड़ित थे।



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