वैष्णव जन तो तेने कहिये: Difference between revisions
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वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे | वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2। | ||
पर | पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।। | ||
सकल | सकल लोक मां सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।। | ||
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी | वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।। | ||
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2। | |||
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।। | |||
जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।। | |||
मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।। | |||
भणे | राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।। | ||
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।। | |||
भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।। | |||
वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2। | |||
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Revision as of 18:40, 27 December 2011
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वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।2। |
- गुजरात के संत कवि नरसी मेहता द्वारा रचा ये भजन गाँधी जी को बहुत प्रिय था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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