सपूत और कपूत -शिवदीन राम जोशी: Difference between revisions

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बोल्ड पाठ

सपूत और कपूत-शिवदीन राम जोशी

पूत सपूत जने जननी,पितु मात की बात को शीश चढावे। कुल की मरियाद रखे उर में,दिन रैन सदा प्रभु का गुन गावे। सत संगत सार गहे गुन को,फल चार धरा पर सहज ही पावे। शिवदीन प्रवीन धनाढ्य वही,सुत धन्य है धन्य जो लाल कहावे।

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पूत सपूत निहाल करे, पर हेतु करे नित्त और भलाई। मात पिता खुश हाल रहें,सबको खुश राखत वो सुखदाई। सत संगत सार गहे गुन-ज्ञान,गुमान करे न करे वो बुराई। शिवदीन मिले मुसकाता हुआ,सुत सत्य वही जन सज्जन भाई।

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पूत सपूत जने जननी,

        अहो भक्त जने जग होय भलाई।  

लोक बने परलोक बने,

        बिगरी को  बनायदें  श्री रघुराई।

सुख पावत तात वे मात सदा,

         सुत ज्ञानी हरे, हरे पीर पराई।

मानो तो बात सही है सही,

         शिवदीन कपूत तो है दु:खदाई।
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जननी का जोबन हरन, करन अनेक कुचाल, जनमें पूत कपूत धृक, दु:ख उपजत हर हाल। दु:ख उपजत हर हाल, नृपति बन रहे रात का, भ्रात बहन का नहीं, नहीं वह मात तात का। शिवदीन धन्य जननी जने, जन्में ना कोई उत, क्या जरूरत दो चार की, एक ही भला सपूत।

                     राम गुन गायरे।। 
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काहूँ के न जनमें उतडा कपूत पूत, मूर्ख मतिमंदन को सुसंगत ना सुहाती है। कुसंगत में बैठ-बैठ हंसते है हराम लूंड, माता पिता बांचे क्या कर्मन की पाती है। पूर्व जन्म संस्कार बिगडायल होने से, बेटा बन काढे बैर जारत नित छाती है। कहता शिवदीन राम राम-नाम सत्य सदा, संतन की कृपा से जीव बिगरी बन जाती है।

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