User:प्रीति चौधरी/अभ्यास पन्ना2: Difference between revisions
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तीजनबाई ने अपना जीवन का पहला कार्यक्रम सिर्फ 13 साल की उम्र में [[दुर्ग ज़िला|दुर्ग ज़िले]] के चंदखुरी गाँव में किया था। बचपन में तीजनबाई अपने नाना ब्रजलाल को [[महाभारत]] की कहानियाँ गाते हुए सुनती और देखतीं थी और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने तीजनबाई को अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया, बाद में उनका परिचय हबीब तनवीर से हुआ। प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के सामने प्रदर्शन करने के लिए निमंत्रित किया। उस दिन के बाद से उन्होंने अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन किया और उसके बाद उनकी प्रसिद्धि आसमान छूने लगी। | तीजनबाई ने अपना जीवन का पहला कार्यक्रम सिर्फ 13 साल की उम्र में [[दुर्ग ज़िला|दुर्ग ज़िले]] के चंदखुरी गाँव में किया था। बचपन में तीजनबाई अपने नाना ब्रजलाल को [[महाभारत]] की कहानियाँ गाते हुए सुनती और देखतीं थी और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने तीजनबाई को अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया, बाद में उनका परिचय हबीब तनवीर से हुआ। प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और उन्हें तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[इंदिरा गाँधी]] के सामने प्रदर्शन करने के लिए निमंत्रित किया। उस दिन के बाद से उन्होंने अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन किया और उसके बाद उनकी प्रसिद्धि आसमान छूने लगी। | ||
अनेक पुरस्कारों द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित करने वाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। नाट्य का प्रारम्भ होते ही पात्र के अनुसार उनका सज्जित तानपूरा भिन्न भिन्न रूपों का अवतार ले लेता है। उनका तानपूरा कभी महाभारत के पात्र दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा और कभी द्रौपदी के बालों का रूप धरकर दर्शकों को इतिहास के उस काल में पहुँचा देता है और दर्शक तीजनबाई के साथ पात्र के मनोभावों और ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं की संवेदना को जीवंतता के साथ अनुभव करते हैं। तीजनबाई की विशेष प्रभावशाली लोकनाट्य के अनुरूप आवाज़, अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं। | अनेक पुरस्कारों द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित करने वाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। नाट्य का प्रारम्भ होते ही पात्र के अनुसार उनका सज्जित तानपूरा भिन्न भिन्न रूपों का अवतार ले लेता है। उनका तानपूरा कभी महाभारत के पात्र दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा और कभी द्रौपदी के बालों का रूप धरकर दर्शकों को इतिहास के उस काल में पहुँचा देता है और दर्शक तीजनबाई के साथ पात्र के मनोभावों और ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं की संवेदना को जीवंतता के साथ अनुभव करते हैं। तीजनबाई की विशेष प्रभावशाली लोकनाट्य के अनुरूप आवाज़, अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं। | ||
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सन् 1980 में उन्होंने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में [[इंग्लैंड]], [[फ्रांस]], स्विट्ज़रलैंड, [[जर्मनी]], टर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया और मारिशस की यात्रा की और वहाँ पर प्रस्तुतियाँ दीं। | सन् [[1980]] में उन्होंने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में [[इंग्लैंड]], [[फ्रांस]], स्विट्ज़रलैंड, [[जर्मनी]], टर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया और मारिशस की यात्रा की और वहाँ पर प्रस्तुतियाँ दीं। | ||
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*[[1988]] [[पद्मश्री]] | *[[1988]] [[पद्मश्री]] |
Revision as of 06:38, 14 March 2012
प्रीति चौधरी/अभ्यास पन्ना2
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पूरा नाम | तीजनबाई |
प्रसिद्ध नाम | तीजनबाई |
जन्म | 24 अप्रैल, 1956 |
जन्म भूमि | छत्तीसगढ़ |
पति/पत्नी | तुक्का राम |
कर्म भूमि | छत्तीसगढ़ |
कर्म-क्षेत्र | पण्डवानी गायिका |
पुरस्कार-उपाधि | 1988 पद्मश्री, 1995 संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2003 पद्म भूषण |
प्रसिद्धि | तीजनबाई छत्तीसगढ़ राज्य की पहली महिला कलाकार हैं जो पण्डवानी की कापालिक शैली की गायिका है। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | तीजनबाई ने अपना जीवन का पहला कार्यक्रम सिर्फ 13 साल की उम्र में दुर्ग ज़िले के चंदखुरी गाँव में किया था। |
तीजनबाई ((अंग्रेजी:teejan bai) जन्म: 24 अप्रैल, 1956) छत्तीसगढ़ राज्य की पहली महिला कलाकार हैं जो पण्डवानी की कापालिक शैली की गायिका है। तीजनबाई नें अपनी कला का प्रदर्शन अपने देश में ही बल्कि विदेश में भी किया है, जिसके के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण और पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया गया है।
परिचय
तीजनबाई का जन्म 24 अप्रैल, 1956 में छत्तीसगढ़ राज्य के भिलाई ज़िले के गिनियार गाँव में हुआ था। बृजलाल पारधी तीजनबाई के नाना थे, जो खुद भी एक अच्छे पाण्डवनी गायक थे और तीजनबाई का पालन पोषण भी बृजलाल पारधी ने ही किया था। तीजनबाई के पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था। तीजनबाई का बचपन बहुत संघर्षों से भरा हुआ था।
विवाह
तीजनबाई का विवाह 12 साल की उम्र में हो गया था। उसके बाद तीजनबाई ने तीन विवाह और किए, अब वह अपने चौथे पति तुक्का राम के साथ जीवन व्यतीत कर रही हैं। तीजनबाई का अपना पहला विवाह प्राधि जनजाति में हुआ था जहाँ पर महिलाओं को पण्डवानी गाने की अनुमति दी जाती थी और तीजनबाई जिस जनजाति की थी उसमें में सिर्फ पुरुष पण्डवानी गाते थे और महिलाएँ सुनती थी।
प्रथम प्रस्तुति
तीजनबाई ने अपना जीवन का पहला कार्यक्रम सिर्फ 13 साल की उम्र में दुर्ग ज़िले के चंदखुरी गाँव में किया था। बचपन में तीजनबाई अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियाँ गाते हुए सुनती और देखतीं थी और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं। उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने तीजनबाई को अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया, बाद में उनका परिचय हबीब तनवीर से हुआ। प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के सामने प्रदर्शन करने के लिए निमंत्रित किया। उस दिन के बाद से उन्होंने अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन किया और उसके बाद उनकी प्रसिद्धि आसमान छूने लगी।
अनेक पुरस्कारों द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित करने वाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। नाट्य का प्रारम्भ होते ही पात्र के अनुसार उनका सज्जित तानपूरा भिन्न भिन्न रूपों का अवतार ले लेता है। उनका तानपूरा कभी महाभारत के पात्र दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा और कभी द्रौपदी के बालों का रूप धरकर दर्शकों को इतिहास के उस काल में पहुँचा देता है और दर्शक तीजनबाई के साथ पात्र के मनोभावों और ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं की संवेदना को जीवंतता के साथ अनुभव करते हैं। तीजनबाई की विशेष प्रभावशाली लोकनाट्य के अनुरूप आवाज़, अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं।
विदेश यात्राएँ
सन् 1980 में उन्होंने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, टर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया और मारिशस की यात्रा की और वहाँ पर प्रस्तुतियाँ दीं।
पुरस्कार
- 1988 पद्मश्री
- 1995 संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
- 2003 बिलासपुर विश्वविद्यालय के द्वारा डी. लिट. की मानद उपाधि
- 2003 पद्म भूषण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ