बहरुपिया गधा: Difference between revisions
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हर रात धोबी उसे खाल ओढाकर छोड देता। गधा सीधे खेतों में पहुंच जाता और मनपसन्द फसल खाने लगता। गधे को बाघ समझकर सब अपने घरों में दुबककर बैठे रहते। फसलें चर-चरकर गधा मोटा होने लगा। अब वह दुगना भार लेकर चलता। धोबी भी खुश हो गया। | हर रात धोबी उसे खाल ओढाकर छोड देता। गधा सीधे खेतों में पहुंच जाता और मनपसन्द फसल खाने लगता। गधे को बाघ समझकर सब अपने घरों में दुबककर बैठे रहते। फसलें चर-चरकर गधा मोटा होने लगा। अब वह दुगना भार लेकर चलता। धोबी भी खुश हो गया। | ||
मोटा-ताजा होने के साथ-साथ गधे के दिल का भय भी मिटने लगाउसका जन्मजात स्वभाव ज़ोर मारने लगा। एक दिन भरपेट खाने के बाद गधे की तबीयत मस्त होने लगी। वह भी लगा लोट लगाने। खूब लोटा वह गधा। बाघ की खाल तो एक ओर गिर गई। वह अब खालिस गधा बनकर उठ खडा हुआ और डोलता हुआ खेटह् से बाहर निकला। गधे के लोट लगाने के समय पौधों के रौंदे जाने और चटकने की | मोटा-ताजा होने के साथ-साथ गधे के दिल का भय भी मिटने लगाउसका जन्मजात स्वभाव ज़ोर मारने लगा। एक दिन भरपेट खाने के बाद गधे की तबीयत मस्त होने लगी। वह भी लगा लोट लगाने। खूब लोटा वह गधा। बाघ की खाल तो एक ओर गिर गई। वह अब खालिस गधा बनकर उठ खडा हुआ और डोलता हुआ खेटह् से बाहर निकला। गधे के लोट लगाने के समय पौधों के रौंदे जाने और चटकने की आवाज़ फैली। एक रखवाला चुपचाप बाहर निकला। खेत में झांका तो उसे एक ओर गिरी बाघ की खाल नजर आई और दिखाई दिया खेत से बाहर आता एक गधा। वह चिल्लाया 'अरे, यह तो गधा हैं। | ||
उसकी | उसकी आवाज़ औरों ने भी सुनी। सब डंसे लेकर दौसे। गधे का कार्यक्रम खेत से बाहर आकर रेंकने का था। उसने मुंह खोला ही था कि उस पर डंडे बरसने लगे। क्रोध से भरे रखवालों ने उसे वहीं ढेर कर दिया। उसकी सारी पोल खुल चुकी थी। धोबी को भी वह नगर छोडकर कहीं और जाना पडा। | ||
'''सीखः''' -- पहनावा बदलकर दूसरों को कुछ ही दिन धोखा दिया जा सकता हैं। अंत में असली रुप सामने आ ही जाता हैं। | '''सीखः''' -- पहनावा बदलकर दूसरों को कुछ ही दिन धोखा दिया जा सकता हैं। अंत में असली रुप सामने आ ही जाता हैं। |
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- बहरुपिया गधा
एक नगर में धोबी था। उसके पास एक गधा था, जिस पर वह कपडे लादकर नदी तट पर ले जाता और धुले कपडे लादकर लौटता। धोबी का परिवार बडा था। सारी कमाई आटे-दाल व चावल में खप जाती। गधे के लिए चार खरीदने के लिए कुछ न बचता। गांव की चरागाह पर गाय-भैंसें चरती। अगर गधा उधर जाता तो चरवाहे डंडों से पीटकर उसे भगा देते। ठीक से चारा न मिलने के कारण गधा बहुत दुर्बल होने लगा। धोबी को भी चिन्ता होने लगी, क्योंकि कमज़ोरी के कारण उसकी चाल इतनी धीमी हो गई थी कि नदी तक पहुंचने में पहले से दुगना समय लगने लगा था।
एक दिन नदी किनारे जब धोबी ने कपडे सूखने के लिए बिछा रखे थे तो आंधी आई। कपडे इधर-उधर हवा में उड गए। आंधी थमने पर उसे दूर-दूर तक जाकर कपडे उठाकर लाने पडे। अपने कपडे ढूंढता हुआ वह सरकंडो के बीच घुसा। सरकंडो के बीच उसे एक मरा बाघ नजर आया।
धोबी कपडे लेकर लौटा और गट्ठर बन्धे पर लादने लगा गधा लडखडाया। धोबी ने देखा कि उसका गधा इतना कमज़ोर हो गया हैं कि एक दो दिन बाद बिल्कुल ही बैठ जाएगा। तभी धोबी को एक उपाय सूझा। वह सोचने लगा 'अगर मैं उस बाघ की खाल उतारकर ले आऊं और रात को इस गधे को वह खाल ओढाकर खेतों की ओर भेजूं तो लोग इसे बाघ समझकर डरेंगे। कोई निकट नहीं फटकेगा। गधा खेत चर लिया करेगा।'
धोबी ने ऐसा ही किया। दूसरे दिन नदी तट पर कपडे जल्दी धोकर सूखने डाल दिए और फिर वह सरकंडो के बीच जाकर बाघ की खाल उतारने लगा। शाम को लौटते समय वह खाल को कपडों के बीच छिपाकर घर ले आया।
रात को जब सब सो गए तो उसने बाघ की खाल गधे को ओढाई। गधा दूर से देखने पर बाघ जैसा ही नजर आने लगा। धोबी संतुष्ट हुआ। फिर उसने गधे को खेतों की ओर खदेड दिया। गधे ने एक खेत में जाकर फसल खाना शुरू किया। रात को खेतों की रखवाली करने वालों ने खेत में बाघ देखा तो वे डरकर भाग खडे हुए। गधे ने भरपेट फसल खाई और रात अंधेरे में ही घर लौट आया। धोबी ने तुरंत खाल उतारकर छिपा ली। अब गधे के मजे आ गए।
हर रात धोबी उसे खाल ओढाकर छोड देता। गधा सीधे खेतों में पहुंच जाता और मनपसन्द फसल खाने लगता। गधे को बाघ समझकर सब अपने घरों में दुबककर बैठे रहते। फसलें चर-चरकर गधा मोटा होने लगा। अब वह दुगना भार लेकर चलता। धोबी भी खुश हो गया।
मोटा-ताजा होने के साथ-साथ गधे के दिल का भय भी मिटने लगाउसका जन्मजात स्वभाव ज़ोर मारने लगा। एक दिन भरपेट खाने के बाद गधे की तबीयत मस्त होने लगी। वह भी लगा लोट लगाने। खूब लोटा वह गधा। बाघ की खाल तो एक ओर गिर गई। वह अब खालिस गधा बनकर उठ खडा हुआ और डोलता हुआ खेटह् से बाहर निकला। गधे के लोट लगाने के समय पौधों के रौंदे जाने और चटकने की आवाज़ फैली। एक रखवाला चुपचाप बाहर निकला। खेत में झांका तो उसे एक ओर गिरी बाघ की खाल नजर आई और दिखाई दिया खेत से बाहर आता एक गधा। वह चिल्लाया 'अरे, यह तो गधा हैं।
उसकी आवाज़ औरों ने भी सुनी। सब डंसे लेकर दौसे। गधे का कार्यक्रम खेत से बाहर आकर रेंकने का था। उसने मुंह खोला ही था कि उस पर डंडे बरसने लगे। क्रोध से भरे रखवालों ने उसे वहीं ढेर कर दिया। उसकी सारी पोल खुल चुकी थी। धोबी को भी वह नगर छोडकर कहीं और जाना पडा।
सीखः -- पहनावा बदलकर दूसरों को कुछ ही दिन धोखा दिया जा सकता हैं। अंत में असली रुप सामने आ ही जाता हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ