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| |+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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| [[चित्र:Shiv-shanker.jpg|border|right|130px|link=भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|मानसून का शंख]]
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| "आपको कुछ पता भी है कि दुनिया में क्या हो रहा है, अरे! दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी और एक हमारे ये हैं... भोले भंडारी... अरे महाराज समाधि लगाये ही बैठे रहोगे या कुछ मेरी भी सुनोगे ?" [[कैलास पर्वत]] पर [[पार्वती देवी|पार्वती मैया]] ग़ुस्से से भन्ना रही थीं। [[शिव|शंकर जी]] ने ध्यान भंग करना ही सही समझा और बोले-
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| "तुम्हारी ही तो सुनता हूँ भागवान... दूसरे देवता तो चार-चार... छह-छह ब्याह करके बैठे हैं और मैं तो सिर्फ़ तुम्हारी ही माला जपता रहता हूँ... अब हुआ क्या जो [[नंदी]] की तरह सींग समेत लड़ रही हो ?" [[भारतकोश सम्पादकीय 8 जुलाई 2012|पूरा पढ़ें]]
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] →
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय 1 जुलाई 2012|कहता है जुगाड़ सारा ज़माना]] ·
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| | [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जून 2012|विज्ञापन लोक]]
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| |}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
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