ओलम्पिक खेल: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 64: Line 64:




===1948-2004 ओलंपिक===
दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1948 में ओलंपिक के आयोजन की ज़िम्मेदारी मिली लंदन को. युद्ध के ज़ख़्म भरे नहीं थे। आगे आने वाले कई ओलंपिक खेलों में बहिष्कार और विरोध का अपना ही अंदाज़ देखने को मिला। कई बार किसी ख़ास देशों को न्यौता नहीं मिला तो कई बार देशों ने ओलंपिक का ही बहिष्कार किया।
भले ही विश्व युद्ध ख़त्म हो गया था. लेकिन दुनिया बँटी हुई थी। शीत युद्ध चल रहा था। दुनिया दो ख़ेमे में बँटी हुई थी। ओलंपिक भी कभी-कभी राजनीति की बिसात पर एक मोहरा साबित हुआ। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में तो चरमपंथी हमले और इसराइली खिलाड़ियों की हत्या से सनसनी फ़ैल गई.
तो दूसरी ओर तमाम विवादों के बावजूद ओलंपिक खेलों का आयोजन होता रहा। खिलाड़ी मैदान पर अपनी प्रतिभा का जादू दिखाने को बेताब दिखे और ओलंपिक पदक लेने की होड़ सी लग गई। दुनिया ने ओलंपिक खेलों में कई महान खिलाड़ियों का प्रदर्शन देखा तो कई महान खिलाड़ियों की विदाई भी दी।
इस बीच प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों के ड्रग्स लेने का मामला भी सामने आया और रातों-रात स्टार बने बेन जॉनसन को अपना पदक गँवाना पड़ा। खेल की दुनिया के लिए यह बड़ा झटका था। लेकिन ओलंपिक आयोजन समिति ने अपनी ओर से इससे निपटने की कोशिश की।





Revision as of 15:08, 8 August 2012

चित्र:Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

प्राचीन काल में शांति के समय योद्धाओं के बीच प्रतिस्पर्धा के साथ खेलों का विकास हुआ। दौड़, मुक्केबाजी, कुश्ती और रथों की दौड़ सैनिक प्रशिक्षण का हिस्सा हुआ करते थे। इनमें से सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले योद्धा प्रतिस्पर्धी खेलों में अपना दमखम दिखाते थे।

समाचार एजेंसी ‘आरआईए नोवोस्ती’ के अनुसार प्राचीन ओलंपिक खेलों का आयोजन 1200 साल पूर्व योद्धा-खिलाड़ियों के बीच हुआ था। हालांकि ओलंपिक का पहला आधिकारिक आयोजन 776 ईसा पूर्व में हुआ था, जबकि आखिरी बार इसका आयोजन 394 ईस्वी में हुआ।

इसके बाद रोम के सम्राट थियोडोसिस ने इसे मूर्तिपूजा वाला उत्सव करार देकर इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

इसके बाद लगभग डेढ़ सौ सालों तक इन खेलों को भुला दिया गया। हालांकि मध्यकाल में अभिजात्य वर्गों के बीच अलग-अलग तरह की प्रतिस्पर्धाएं होती रहीं। लेकिन इन्हें खेल आयोजन का दर्जा नहीं मिल सका।

कुल मिलाकर रोम और ग्रीस जैसी प्रभुत्वादी सभ्यताओं के अभाव में इस काल में लोगों के पास खेलों के लिए समय नहीं था।

19वीं शताब्दी में यूरोप में सर्वमान्य सभ्यता के विकास के साथ पुरातन काल की इस परंपरा को फिर से जिंदा किया गया। इसका श्रेय फ्रांस के अभिजात पुरूष बैरों पियरे डी कुवर्तेन को जाता है।

कुवर्तेन ने दो लक्ष्य रखे, एक तो खेलों को अपने देश में लोकप्रिय बनाना और दूसरा, सभी देशों को एक शांतिपूर्ण प्रतिस्पर्धा के लिए एकत्रित करना। कुवर्तेन मानते थे कि खेल युद्धों को टालने के सबसे अच्छे माध्यम हो सकते हैं।

कुवर्तेन की इस परिकल्पना के आधार पर वर्ष 1896 में पहली बार आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन ग्रीस की राजधानी एथेंस में हुआ। शुरुआती दशक में ओलंपिक आंदोलन अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता रहा क्योंकि कुवर्तेन की इस परिकल्पना को किसी भी बड़ी शक्ति का साथ नहीं मिल सका था।

वर्ष 1900 तथा 1904 में पेरिस तथा सेंट लुई में हुए ओलंपिक के दो संस्करण लोकप्रिय नहीं हो सके क्योंकि इस दौरान भव्य आयोजनों की कमी रही। लंदन में अपने चौथे संस्करण के साथ ओलंपिक आंदोलन शक्ति संपन्न हुआ। इसमें 2000 एथलीटों ने शिरकत किया। यह संख्या पिछले तीन आयोजनों के योग से अधिक थी।

वर्ष 1930 के बर्लिन संस्करण के साथ तो मानों ओलंपिक आंदोलन में नई जीवन शक्ति आ गई। सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर जारी प्रतिस्पर्धा के कारण नाजियों ने इसे अपनी श्रेष्ठता साबित करने का माध्यम बना दिया।

1950 के दशक में सोवियत-अमेरिका प्रतिस्पर्धा के खेल के मैदान में आने के साथ ही ओलंपिक की ख्याति चरम पर पहुंच गई। इसके बाद तो खेल कभी भी राजनीति से अलग नहीं हुआ।

खेल केवल राजनीति का विषय नहीं रहे। ये राजनीति का अहम हिस्सा बन गए। चूंकि सोवियत संघ और अमेरिका जैसी महाशक्तियां कभी नहीं खुले तौर पर एक दूसरे के साथ युद्ध के मैदान में भिड़ नहीं सकीं। लिहाजा उन्होंने ओलंपिक को अपनी श्रेष्ठता साबित करने का माध्यम बना लिया।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी ने एक बार कहा था कि अंतरिक्ष यान और ओलंपिक स्वर्ण पदक ही किसी देश की प्रतिष्ठा का प्रतीक होते हैं।

शीत युद्ध के काल में अंतरिक्ष यान और स्वर्ण पदक महाशक्तियों का सबसे बड़ा उद्देश्य बनकर उभरे। बड़े खेल आयोजन इस शांति युद्ध का अंग बन गए और खेल के मैदान युद्धस्थलों में परिवर्तित हो गए।

सोवियत संघ ने वर्ष 1968 के मैक्सिको ओलंपिक में पदकों के होड़ में अमेरिका के हाथों मिली हार का बदला 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में चुकाया। सोवियत संघ की 50वीं वर्षगांठ पर वहां के लोग किसी भी कीमत पर अमेरिका से हारना नहीं चाहते थे।

इसी का नतीजा था कि सोवियत एथलीटों ने 50 स्वर्ण पदकों के साथ कुल 99 पदक जीते। यह संख्या अमेरिका द्वारा जीते गए पदकों से एक तिहाई ज्यादा थी।

साल 1980 में अमेरिका और उसके पश्चिम के मित्र राष्ट्रों ने 1980 के मॉस्को ओलंपिक में शिरकत करने से इनकार कर दिया। इसके बाद हिसाब चुकाने के लिए सोवियत संघ ने 1984 के लॉस एंजलिस ओलंपिक का बहिष्कार कर दिया।

साल 1988 के सियोल ओलंपिक में सोवियत संघ ने एक बार फिर अपनी श्रेष्ठता साबित की। उसने 132 पदक जीते। इसमें 55 स्वर्ण थे। अमेरिका को 34 स्वर्ण सहित 94 पदक मिले थे। अमेरिका पूर्वी जर्मनी के बाद तीसरे स्थान पर रहा।

वर्ष 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक में भी सोवियत संघ ने अपना वर्चस्व कायम रखा। हालांकि उस वक्त तक सोवियत संघ का विघटन हो चुका था। एक संयुक्त टीम ने ओलंपिक में हिस्सा लिया था। इसके बावजूद उसने 112 पदक जीते। इसमें 45 स्वर्ण थे। अमेरिका को 37 स्वर्ण के साथ 108 पदक मिले थे।

साल 1996 के अटलांटा और 2000 के सिडनी ओलंपिक में रूस (सोवियत संघ के विभाजन के बाद का नाम) गैर अधिकारिक अंक तालिका में दूसरे स्थान पर रहा। 2004 के एथेंस ओलंपिक में उसे तीसरा स्थान मिला।

बीजिंग ओलंपिक 2008 को अब तक का सबसे अच्छा आयोजन माना जा गया है। पंद्रह दिन तक चले ओलंपिक खेलों के दौरान चीन ने ना सिर्फ़ अपनी शानदार मेज़बानी से लोगों का दिल जीता बल्कि सबसे ज़्यादा स्वर्ण पदक जीत कर भी इतिहास रचा।

पहली बार पदक तालिका में चीन सबसे ऊपर रहा। जबकि अमरीका को दूसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा। भारत ने भी ओलंपिक के इतिहास में व्यक्तिगत स्पर्धाओं में पहली बार कोई स्वर्ण पदक जीता और उसे पहली बार एक साथ तीन पदक भी मिले।


1896-1936 ओलंपिक

पहले आधुनिक ओलंपिक खेल यूनान की राजधानी एथेंस में 1896 में आयोजित किए गए। लेकिन उसके बाद भी सालों तक ओलंपिक आंदोलन का स्वरूप नहीं ले पाया।

तमाम सुविधाओं की कमी, आयोजन की मेजबानी की समस्या और खिलाड़ियों की कम भागीदारी-इन सभी समस्याओं के बावजूद धीरे-धीरे ओलंपिक अपने मक़सद में क़ामयाब होता गया।

एथेंस ओलंपिक खेलों में सिर्फ़ 14 देशों के 200 लोगों ने 43 मुक़ाबलों में हिस्सा लिया। 1896 के बाद पेरिस को ओलंपिक की मेजबानी का इंतज़ार नहीं करना पड़ा और उसे 1900 में मौक़ा मिल ही गया।

पेरिस में महिला खिलाड़ियों की संख्या सिर्फ़ 20 थी। पेरिस में ओलंपिक आयोजित तो हुए लेकिन वहाँ एथेंस जैसा उत्साह देखने को नहीं मिला।

1904 के सेंट लुई ओलंपिक के बाद अमरीकी खिलाड़ियों का दबदबा ट्रैक एंड फ़ील्ड मुक़ाबलों में बढ़ता गया। शुरुआत में तो ट्रैक एंड फ़ील्ड मुक़ाबलों में सिर्फ़ अमरीकी खिलाड़ी ही भाग लेते थे।

लंदन में पहली बार ओलंपिक आयोजित हुए 1908 में. पहली बार खिलाड़ियों ने अपने देश के झंडे के साथ स्टेडियम में मार्च पास्ट किया। लेकिन इसी ओलंपिक में अमरीकी खिलाड़ियों ने जजों पर आरोप लगाया कि वे अपने देश का पक्ष ले रहे हैं।

1912 में स्टॉकहोम में ओलंपिक हुए और फिर विश्व युद्ध की छाया भी इन खेलों पर पड़ी. विश्व युद्ध के बाद एंटवर्प ओलंपिक 1920 में आयोजित हुआ।

दूसरे विश्व युद्ध के पहले बर्लिन में 1936 में ओलंपिक आयोजित हुआ था। इस समय तक ओलंपिक में हिस्सेदारी बढ़ गई थी। सम्मान बढ़ गया था। लेकिन विश्व राजनीति का असर भी खेलों पर देखने को मिला। विरोध हुए और बँटी हुई दुनिया का असर खेल के मैदान पर भी पड़ा। आइए नज़र डालते हैं 1896 से 1936 के ओलंपिक खेलों पर।


1948-2004 ओलंपिक

दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1948 में ओलंपिक के आयोजन की ज़िम्मेदारी मिली लंदन को. युद्ध के ज़ख़्म भरे नहीं थे। आगे आने वाले कई ओलंपिक खेलों में बहिष्कार और विरोध का अपना ही अंदाज़ देखने को मिला। कई बार किसी ख़ास देशों को न्यौता नहीं मिला तो कई बार देशों ने ओलंपिक का ही बहिष्कार किया।

भले ही विश्व युद्ध ख़त्म हो गया था. लेकिन दुनिया बँटी हुई थी। शीत युद्ध चल रहा था। दुनिया दो ख़ेमे में बँटी हुई थी। ओलंपिक भी कभी-कभी राजनीति की बिसात पर एक मोहरा साबित हुआ। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में तो चरमपंथी हमले और इसराइली खिलाड़ियों की हत्या से सनसनी फ़ैल गई.

तो दूसरी ओर तमाम विवादों के बावजूद ओलंपिक खेलों का आयोजन होता रहा। खिलाड़ी मैदान पर अपनी प्रतिभा का जादू दिखाने को बेताब दिखे और ओलंपिक पदक लेने की होड़ सी लग गई। दुनिया ने ओलंपिक खेलों में कई महान खिलाड़ियों का प्रदर्शन देखा तो कई महान खिलाड़ियों की विदाई भी दी।

इस बीच प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों के ड्रग्स लेने का मामला भी सामने आया और रातों-रात स्टार बने बेन जॉनसन को अपना पदक गँवाना पड़ा। खेल की दुनिया के लिए यह बड़ा झटका था। लेकिन ओलंपिक आयोजन समिति ने अपनी ओर से इससे निपटने की कोशिश की।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख