प्रयोग:गोविन्द3: Difference between revisions
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यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में ! | यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में ! | ||
लुत्फ़ आता है तुझे | लुत्फ़ आता है, तुझे बारहा सुनाने में !! | ||
वो जो इक दूर से आवाज़़ आ रही थी कोई ! | वो जो इक दूर से आवाज़़ आ रही थी कोई ! |
Revision as of 14:14, 4 September 2012
यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में !
लुत्फ़ आता है, तुझे बारहा सुनाने में !!
वो जो इक दूर से आवाज़़ आ रही थी कोई !
उसे तो वक़्त है, मेरे क़रीब आने में !!
तुझे भुला न सकूँगा ये मेरी फ़ितरत है !
चैन मिलता है मुझे, ख़ुद को भूल जाने में !!
सुन के आवाज़ अपने दिल के टूट जाने की !
मैं भी हैरान हूँ, इस क़िस्म के वीराने में !!
ग़मे दौराँ की भी क़ीमत लगाई जाती है !
तन्हा जीने की भी इक, शर्त है ज़माने में !!
कोई मक़्सद ही नहीं मुझको मिला जीने का !
एक लम्हा ही जीऊँ, जब हो मौत आने में !!
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