प्रयोग:गोविन्द3: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
No edit summary
Line 3: Line 3:
लुत्फ़ आता है, तुझे बारहा सुनाने में !!
लुत्फ़ आता है, तुझे बारहा सुनाने में !!


वो जो इक दूर से आवाज़़ आ रही थी कोई !
वो जो इक दूर से आवाज़ आ रही थी कोई !
उसे तो वक़्त है, मेरे क़रीब आने में !!
उसे तो वक़्त है, मेरे क़रीब आने में !!



Revision as of 14:21, 4 September 2012

यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में !
लुत्फ़ आता है, तुझे बारहा सुनाने में !!

वो जो इक दूर से आवाज़ आ रही थी कोई !
उसे तो वक़्त है, मेरे क़रीब आने में !!

तुझे भुला न सकूँगा ये मेरी फ़ितरत है !
चैन मिलता है मुझे, ख़ुद को भूल जाने में !!

सुन के आवाज़ अपने दिल के टूट जाने की !
मैं भी हैरान हूँ, इस क़िस्म के वीराने में !!
 
ग़मे दौराँ की भी क़ीमत लगाई जाती है !
तन्हा जीने की भी, इक शर्त है ज़माने में !!
 
कोई मक़्सद ही नहीं मुझको मिला जीने का !
एक लम्हा ही जीऊँ, जब हो मौत आने में !!