प्रीतम सिवाच: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
Sheetalsoni (talk | contribs) |
Sheetalsoni (talk | contribs) m (→==) |
||
Line 10: | Line 10: | ||
====शीर्षक उदाहरण 3==== | ====शीर्षक उदाहरण 3==== | ||
ओलंपिक खेलों के महिला वर्ग की हॉकी में देश को पदक मिले प्रीतम सिवाच ने वर्षो पहले यह सपना देखा था, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। यही वजह है कि अब इस अधूरे ख्वाब को पूरा करने के लिए प्रीतम ने राष्ट्रीय खेल हॉकी की नई पौध तैयार करनी शुरू की है। उनकी वर्षो की इस मेहनत ने रंग लाना भी शुरू कर दिया है। आज उनसे प्रशिक्षण पाने वाले खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया है। | ओलंपिक खेलों के महिला वर्ग की हॉकी में देश को पदक मिले प्रीतम सिवाच ने वर्षो पहले यह सपना देखा था, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। यही वजह है कि अब इस अधूरे ख्वाब को पूरा करने के लिए प्रीतम ने राष्ट्रीय खेल हॉकी की नई पौध तैयार करनी शुरू की है। उनकी वर्षो की इस मेहनत ने रंग लाना भी शुरू कर दिया है। आज उनसे प्रशिक्षण पाने वाले खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया है। | ||
आठ साल से दे रही हैं प्रशिक्षण | आठ साल से दे रही हैं प्रशिक्षण | ||
Line 17: | Line 17: | ||
=====उपलब्धियां===== | =====उपलब्धियां===== | ||
परिवार सहयोग | |||
परिवार | |||
प्रीतम का कहना है कि उन्हें परिवार को पूरा सहयोग मिला। उनके पिता भरत सिंह ठाकरान व अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी धीरज ठाकरान ने पूरा सहयोग दिया। वर्ष 1998 में जब वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी कुलदीप सिवाच के साथ वैवाहिक बंधन में बंधी तो उनके पति ने भी इस खेल में आगे बढ़ने की पूरी मदद की। अर्जुन अवार्ड से बदला जीवन | प्रीतम का कहना है कि उन्हें परिवार को पूरा सहयोग मिला। उनके पिता भरत सिंह ठाकरान व अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी धीरज ठाकरान ने पूरा सहयोग दिया। वर्ष 1998 में जब वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी कुलदीप सिवाच के साथ वैवाहिक बंधन में बंधी तो उनके पति ने भी इस खेल में आगे बढ़ने की पूरी मदद की। अर्जुन अवार्ड से बदला जीवन | ||
Line 27: | Line 24: | ||
प्रीतम कहती हैं कि वर्ष 1998 में उन्हें अर्जुन अवार्ड के चुना गया। 15 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद किसी महिला खिलाड़ी को अर्जुन अवार्ड मिला था। इसके बाद उनके जीवन की दिशा बदल गई। अवार्ड मिलने से उन्हें महसूस हुआ कि वे खेलों के लिए बहुत कुछ कर सकती है। उम्र पर हावी हुआ जज्बा | प्रीतम कहती हैं कि वर्ष 1998 में उन्हें अर्जुन अवार्ड के चुना गया। 15 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद किसी महिला खिलाड़ी को अर्जुन अवार्ड मिला था। इसके बाद उनके जीवन की दिशा बदल गई। अवार्ड मिलने से उन्हें महसूस हुआ कि वे खेलों के लिए बहुत कुछ कर सकती है। उम्र पर हावी हुआ जज्बा | ||
अगर जज्ब हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। | अगर जज्ब हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। शादी के बाद वर्ष 2002 में जब उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में देश के लिए स्वर्ण जीता उस समय वे एक बच्चे की मां बन चुकी थी। इसके बाद वे चोटिल हो गई और इसी बीच उन्होंने एक लड़की को जनम दिया। इसके बाद फिर से स्वयं को तैयार करते हुए उन्होंने वर्ष 2008 में देश को ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कराया, लेकिन उनकी टीम वहां कोई पदक नहीं जीत सकी। | ||
स्वर्ण जीतना था अद्भुत क्षण | स्वर्ण जीतना था अद्भुत क्षण | ||
Revision as of 07:20, 9 November 2012
thumb|प्रीतम सिवाच लिंक पर क्लिक करके चित्र अपलोड करें
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
आपको नया पन्ना बनाने के लिए यह आधार दिया गया है
==
जन्म
गुड़गांव के झाड़सा गांव में जन्मी प्रीतम सिवाच ने वर्ष 1987 में हॉकी स्टिक को हाथों में थाम था। उस समय वे सातवीं कक्षा की छात्रा थीं। वर्ष 1990 में उन्होंने पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता खेली, जिसमें उसे बेस्ट खिलाड़ी का खिताब मिला। प्रीतम ने 1992 में जूनियर एशिया कप में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लिया था। उनके पहले प्रशिक्षक व गुरु स्कूल के पीटीआइ ताराचंद थे। जिन्होंने ही उसे हाकी की बारीकियों से अवगत कराया। उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने स्वयं भी जरूरतमंद लड़कियों को हाकी का प्रशिक्षण देना शुरू किया है।
शीर्षक उदाहरण 3
ओलंपिक खेलों के महिला वर्ग की हॉकी में देश को पदक मिले प्रीतम सिवाच ने वर्षो पहले यह सपना देखा था, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। यही वजह है कि अब इस अधूरे ख्वाब को पूरा करने के लिए प्रीतम ने राष्ट्रीय खेल हॉकी की नई पौध तैयार करनी शुरू की है। उनकी वर्षो की इस मेहनत ने रंग लाना भी शुरू कर दिया है। आज उनसे प्रशिक्षण पाने वाले खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया है।
आठ साल से दे रही हैं प्रशिक्षण
प्रीतम कहती हैं कि उनकी दिली इच्छा है हॉकी के महिला वर्ग में देश को ओलंपिक पदक मिले। अपने खेल के दौरान उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका तो उन्होंने सोनीपत के औद्योगिक क्षेत्र में लड़कियों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। प्रशिक्षक के तौर पर उन्होंने साल 2004 से काम करना शुरू किया था। नए खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के इस काम में उनके पति पूर्व हॉकी खिलाड़ी कुलदीप सिवाच भी पूरी मदद कर रहे हैं। प्रशिक्षण के काम को चुनौतीपूर्ण रूप में देखने वाली प्रीतम कहती हैं कि एक खिलाड़ी को अपने भीतर खुद जज्बा पैदा करना होता है, लेकिन एक प्रशिक्षक को इस जज्बे के साथ दूसरे खिलाड़ी में खेल भावना को जागृत करनी पड़ती है।
उपलब्धियां
परिवार सहयोग
प्रीतम का कहना है कि उन्हें परिवार को पूरा सहयोग मिला। उनके पिता भरत सिंह ठाकरान व अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी धीरज ठाकरान ने पूरा सहयोग दिया। वर्ष 1998 में जब वे अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी कुलदीप सिवाच के साथ वैवाहिक बंधन में बंधी तो उनके पति ने भी इस खेल में आगे बढ़ने की पूरी मदद की। अर्जुन अवार्ड से बदला जीवन
प्रीतम कहती हैं कि वर्ष 1998 में उन्हें अर्जुन अवार्ड के चुना गया। 15 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद किसी महिला खिलाड़ी को अर्जुन अवार्ड मिला था। इसके बाद उनके जीवन की दिशा बदल गई। अवार्ड मिलने से उन्हें महसूस हुआ कि वे खेलों के लिए बहुत कुछ कर सकती है। उम्र पर हावी हुआ जज्बा
अगर जज्ब हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। शादी के बाद वर्ष 2002 में जब उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में देश के लिए स्वर्ण जीता उस समय वे एक बच्चे की मां बन चुकी थी। इसके बाद वे चोटिल हो गई और इसी बीच उन्होंने एक लड़की को जनम दिया। इसके बाद फिर से स्वयं को तैयार करते हुए उन्होंने वर्ष 2008 में देश को ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कराया, लेकिन उनकी टीम वहां कोई पदक नहीं जीत सकी। स्वर्ण जीतना था अद्भुत क्षण
प्रीतम बताती हैं कि वर्ष 2002 में मेनचेस्टर में देश के लिए स्वर्ण जीतना जीवन का अद्भुत क्षण था। राष्ट्रमण्डल खेलों में जब देश का तिरंगा फहराया गया तो उनके साथ ही पूरी टीम की आंखों से अश्रुधारा बह रही थी। देश के लिए पदक जीतने का जज्बा सबसे उत्तम होता है।
उपलब्धियां
- 1992 में पहले अंतरराष्ट्रीय मुकाबले जूनियर एशिया कप में बेस्ट प्लेयर का खिताब।
- 1998 में एशियाड में देश की कप्तानी करते हुए बैंकाक में 15 वर्ष बाद प्रतियोगिता का रजत पदक।
- 2002 में मेनचेस्टर इंग्लैंड में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक।
- 2008 के ओलंपिक खेलों में देश का प्रतिनिधित्व।
- 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय महिला हाकी टीम की प्रशिक्षक बनी।
- चाइना में एशियन गेम व अर्जेटीना में हुए वर्ल्ड कप में टीम को प्रशिक्षण दिया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख