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| {{:यमलोक में एक निर्भय अमानत 'दामिनी' -आदित्य चौधरी}}
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| | <center>भारतकोश पर अतिथि रचनाकार<br />'श्रीमती चित्रा देसाई' की एक कविता</center>
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| <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>[[छोटी थी -चित्रा देसाई|छोटी थी]] <small>-[[छोटी थी -चित्रा देसाई|चित्रा देसाई]]</small></font></div>
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| <poem>
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| छोटी थी
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| तो ज़िद करती थी
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| फ़्रॉक के लिए,
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| मेले में जाने
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| और खिलोंनों के लिए।
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| खीर पूरी खाने के लिए
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| नानी की गोदी में सोने के लिए।
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| थोड़ी बड़ी हुई ...
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| तो स्कूल के लिए,
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| नई तख़्ती और
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| क़लम दवात के लिए।
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| थोड़ी और बड़ी हुई ...
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| तो धीरे से मेरे कानों में कहा ...
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| अब ज़िद करना छोड़ दो।
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| नानी की दुलारी थी
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| सो बात मान ली
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| ज़िद करना छोड़ दिया।
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| ... और धीरे धीरे
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| मुझे पता ही नहीं चला
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| कब मेरी ज़मीन पर
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| दूसरों के गांव बसने लगे।
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| अनजान लोगों की ज़िद मानने लगी ...
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| पर आज अचानक भीड़ देखी
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| तो उस बच्ची की ज़िद याद आई।
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| बंद संदूक से
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| अपने ज़िद्दीपन को निकाला,
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| मनुहार किया अपना ही ...
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| सुनो!
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| अपने आह्वान में ...
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| मेरा भी मन जोड़ लो।
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| आओ इतनी ज़िद करें
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| कि छत और दीवार ही नहीं
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| नींव और ज़मीन भी हिल जाऐं ...
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| बंद कोठरी से
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| सबका ज़िद्दी मन निकालें,
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| खुले मैदानों में फैल जाऐं
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| अपने आसमान के लिए
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| सुनसान सड़कों पर
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| हवा से बह जाऐं।
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| आओ ...
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| आज पूरे ज़िद्दी बन जाऐं।
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| </poem>
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| [[Category:आदित्य चौधरी की रचनाएँ]]
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