युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 10: | Line 10: | ||
|संपादक = | |संपादक = | ||
|प्रकाशक = | |प्रकाशक = | ||
|प्रकाशन_तिथि = [[ | |प्रकाशन_तिथि = [[1939]] ई. | ||
|भाषा = [[हिन्दी]] | |भाषा = [[हिन्दी]] | ||
|देश = [[भारत]] | |देश = [[भारत]] | ||
Line 21: | Line 21: | ||
|ISBN = | |ISBN = | ||
|भाग = | |भाग = | ||
|विशेष = | |विशेष =संकलन में 77 प्रगीत-मुक्तक हैं। इनमें अनेक विचाराक्रांत गद्यात्मक रचनाएँ हैं, जिनमें कवि मार्क्सवाद की व्याख्या प्रस्तुत करता है या गान्धीवाद-मार्क्स की तुलनात्मक भूमिका सामने लाता है। | ||
|टिप्पणियाँ = | |टिप्पणियाँ = | ||
}} | }} | ||
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=युगवाणी|लेख का नाम=युगवाणी}} | {{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=युगवाणी|लेख का नाम=युगवाणी}} | ||
'''युगवाणी | '''युगवाणी''' का प्रकाशन 1939 ई. में हुआ। यह [[सुमित्रानन्दन पंत]] का पाँचवाँ काव्य-संकलन है। कवि ने उसे 'गीत-गद्य' कहा है और 'विज्ञापन' में स्पष्ट कर दिया है- | ||
"मैंने युग के गद्य को वाणी देने का प्रयत्न किया है। यदि युग की मनोवृत्ति का | "मैंने युग के गद्य को वाणी देने का प्रयत्न किया है। यदि युग की मनोवृत्ति का किंचित्मात्र आभास इनमें मिल सका तो मैं अपने प्रयास को विफल नहीं समझूँगा।" | ||
'दृष्टिपात' (भूमिका) में कवि ने इस संकलन की रचनाओं पर भी संक्षेप में प्रकाश डाला है। उसके अनुसार प्राकृतिक रचनाओं को | 'दृष्टिपात' (भूमिका) में कवि ने इस संकलन की रचनाओं पर भी संक्षेप में प्रकाश डाला है। उसके अनुसार प्राकृतिक रचनाओं को छोड़कर, इस संकलन में मुख्यत: पाँच प्रकार की विचारधाराएँ मिलती हैं - | ||
#भूतवाद और अध्यात्मवाद का समंवय, जिससे मनुष्य की चेतना का पथ प्रशस्त बन सके। | #भूतवाद और अध्यात्मवाद का समंवय, जिससे मनुष्य की चेतना का पथ प्रशस्त बन सके। | ||
#समाज में प्रचलित जीवन की मान्यताओं का पर्यावलोचन एवं नवीन [[संस्कृति]] के उपकरणों का संग्रह्। | #समाज में प्रचलित जीवन की मान्यताओं का पर्यावलोचन एवं नवीन [[संस्कृति]] के उपकरणों का संग्रह्। | ||
#पिछले युगों के उन मृत आदर्शों और जीर्ण रूढ़ि रीतियों की तीव्र भर्त्सना, जो आज मानवता के विकास में बाधक बन रही है। | #पिछले युगों के उन मृत आदर्शों और जीर्ण रूढ़ि रीतियों की तीव्र भर्त्सना, जो आज मानवता के विकास में बाधक बन रही है। | ||
#मार्क्सवाद तथा फ्रायड के प्राणिशास्त्रीय मनोदएशन का युग की विचारधारा पर प्रभाव जन समाज का पुन: संगठन एवं दलित लोक समुदाय का | #मार्क्सवाद तथा फ्रायड के प्राणिशास्त्रीय मनोदएशन का युग की विचारधारा पर प्रभाव जन समाज का पुन: संगठन एवं दलित लोक समुदाय का जीर्णोद्धार। | ||
#बहिर्जीवन के साथ अंतर्जीवन के संगठन की आवश्यकता रागभावना का विकास और नारी जागरण। | #बहिर्जीवन के साथ अंतर्जीवन के संगठन की आवश्यकता रागभावना का विकास और नारी जागरण। | ||
==गान्धीवादी विचारधारा== | |||
इन सूत्रों के सहारे हम 'युगवाणी' के विचार-पक्ष का स्वतंत्र रूप से अध्ययन कर सकते हैं। वास्तविकता यह है कि 'युगवाणी' पंत के जीवन और काव्य के एक निश्चित मोड़ की सूचना देती है, जो उसके आलोचकों के लिए वाद-विवाद तथा स्वीकार-अस्वीकार का प्रश्न रहा है। 'युगवाणी' में कवि गान्धीवादी विचारधारा के साथ<ref> और कुछ अंशों में उसे छोड़कर भी</ref>मार्क्स की द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी विचारधारा को अपनाता है और जनशक्ति की नवीन कल्पना के साथ समाज-चेतना का अग्रदूत बनकर उपस्थित होता है। उसकी रचनाओं पर बौद्धिकता और अध्ययन की छाप गहन होती जाती है और काव्य के तत्वों का ह्रास होता है। जिन लोगों ने पंत को भावुक और कल्पनाप्रवण कवि के रूप में सौन्दर्य, प्रेम, प्रकृति और मानव के गीत गाते देखा था, वे इस अप्रत्याशित परिवर्त्तन के लिए तैयार नहीं थे। संक्षेप में 'युगवाणी' कवि की उस नयी भावभूमि की उपज है, जो प्रगतिवादी काव्य-धारा के रूप में विकसित हुई है। | इन सूत्रों के सहारे हम 'युगवाणी' के विचार-पक्ष का स्वतंत्र रूप से अध्ययन कर सकते हैं। वास्तविकता यह है कि 'युगवाणी' पंत के जीवन और काव्य के एक निश्चित मोड़ की सूचना देती है, जो उसके आलोचकों के लिए वाद-विवाद तथा स्वीकार-अस्वीकार का प्रश्न रहा है। 'युगवाणी' में कवि गान्धीवादी विचारधारा के साथ<ref> और कुछ अंशों में उसे छोड़कर भी</ref>मार्क्स की द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी विचारधारा को अपनाता है और जनशक्ति की नवीन कल्पना के साथ समाज-चेतना का अग्रदूत बनकर उपस्थित होता है। उसकी रचनाओं पर बौद्धिकता और अध्ययन की छाप गहन होती जाती है और काव्य के तत्वों का ह्रास होता है। जिन लोगों ने पंत को भावुक और कल्पनाप्रवण कवि के रूप में सौन्दर्य, प्रेम, प्रकृति और मानव के गीत गाते देखा था, वे इस अप्रत्याशित परिवर्त्तन के लिए तैयार नहीं थे। संक्षेप में 'युगवाणी' कवि की उस नयी भावभूमि की उपज है, जो प्रगतिवादी काव्य-धारा के रूप में विकसित हुई है। | ||
==गद्यात्मक रचनाएँ== | |||
संकलन | संकलन में 77 प्रगीत-मुक्तक हैं। इनमें अनेक विचाराक्रांत गद्यात्मक रचनाएँ हैं, जिनमें कवि मार्क्सवाद की व्याख्या प्रस्तुत करता है या गान्धीवाद-मार्क्स की तुलनात्मक भूमिका सामने लाता है। 'मार्क्स के प्रति', 'भूतदर्शन','साम्राज्यवाद', 'समाजवाद-गान्धीवाद', 'धनपति', 'मध्यवर्ग', 'कृषक', श्रमजीवी', प्रभृति एवं दर्जन रचनाएँ कवि की बुद्धिवादी विश्लेषणात्मक प्रवृत्ति की देन हैं। इन पर उसके समाजवादी अध्ययन और नयी दीक्षा की छाप है। इनमें हमें मार्क्सवादी जीवन की ऊहात्मक अभिव्यक्ति तथा-कथन के रूप में मिलेगी। परंतु ऐसी रचनाएँ अधिक नहीं हैं और उनके आधार पर पंत के परवर्ती काव्य को काव्यगुणों से एकदम हीन नहीं कहा जा सकता। दूसरी कोटि की रचनाएँ इस विचारणी का भावपक्ष कही जा सकती हैं, जिनमें कवि जन-जीवन, धरती के जीवन, नर-नारी के नये मान तथा नवजागरण के बौद्धिक पक्ष को अपनी कविता का विषय बनाता है। उसकी नयी कर्म जिज्ञासा 'चींटी' और 'घननाद' जैसी रचनाओं में मिलती हैं, जो साम्य पर आधारित जीवन-तंत्र और श्रम को नये मूल्य के रूप में उपस्थित करती है। | ||
;नयी जीवनदृष्टि | ;नयी जीवनदृष्टि | ||
'मानव' 'युग-उपकरण' और 'नवसंस्कृति' रचनाओं में कवि की नयी जीवनदृष्टि पल्लवित हुई है। मार्क्सवाद, भौतिकवाद और श्रम पर आधारित नये वस्तु-दर्शन को कवि नये भू-दर्शन का रूप देता है। 'पुण्यप्रस्' शीर्षक कविता में वह आदर्शोन्मुखी जीवन-चेतना की धरती की ओर लौटने का निमंत्रण देता है। | 'मानव' 'युग-उपकरण' और 'नवसंस्कृति' रचनाओं में कवि की नयी जीवनदृष्टि पल्लवित हुई है। मार्क्सवाद, भौतिकवाद और श्रम पर आधारित नये वस्तु-दर्शन को कवि नये भू-दर्शन का रूप देता है। 'पुण्यप्रस्' शीर्षक कविता में वह आदर्शोन्मुखी जीवन-चेतना की धरती की ओर लौटने का निमंत्रण देता है। |
Revision as of 10:52, 13 September 2013
युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत
| |
कवि | सुमित्रानन्दन पंत |
प्रकाशन तिथि | 1939 ई. |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
प्रकार | काव्य संकलन |
विशेष | संकलन में 77 प्रगीत-मुक्तक हैं। इनमें अनेक विचाराक्रांत गद्यात्मक रचनाएँ हैं, जिनमें कवि मार्क्सवाद की व्याख्या प्रस्तुत करता है या गान्धीवाद-मार्क्स की तुलनात्मक भूमिका सामने लाता है। |
चित्र:Disamb2.jpg युगवाणी | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- युगवाणी |
युगवाणी का प्रकाशन 1939 ई. में हुआ। यह सुमित्रानन्दन पंत का पाँचवाँ काव्य-संकलन है। कवि ने उसे 'गीत-गद्य' कहा है और 'विज्ञापन' में स्पष्ट कर दिया है- "मैंने युग के गद्य को वाणी देने का प्रयत्न किया है। यदि युग की मनोवृत्ति का किंचित्मात्र आभास इनमें मिल सका तो मैं अपने प्रयास को विफल नहीं समझूँगा।" 'दृष्टिपात' (भूमिका) में कवि ने इस संकलन की रचनाओं पर भी संक्षेप में प्रकाश डाला है। उसके अनुसार प्राकृतिक रचनाओं को छोड़कर, इस संकलन में मुख्यत: पाँच प्रकार की विचारधाराएँ मिलती हैं -
- भूतवाद और अध्यात्मवाद का समंवय, जिससे मनुष्य की चेतना का पथ प्रशस्त बन सके।
- समाज में प्रचलित जीवन की मान्यताओं का पर्यावलोचन एवं नवीन संस्कृति के उपकरणों का संग्रह्।
- पिछले युगों के उन मृत आदर्शों और जीर्ण रूढ़ि रीतियों की तीव्र भर्त्सना, जो आज मानवता के विकास में बाधक बन रही है।
- मार्क्सवाद तथा फ्रायड के प्राणिशास्त्रीय मनोदएशन का युग की विचारधारा पर प्रभाव जन समाज का पुन: संगठन एवं दलित लोक समुदाय का जीर्णोद्धार।
- बहिर्जीवन के साथ अंतर्जीवन के संगठन की आवश्यकता रागभावना का विकास और नारी जागरण।
गान्धीवादी विचारधारा
इन सूत्रों के सहारे हम 'युगवाणी' के विचार-पक्ष का स्वतंत्र रूप से अध्ययन कर सकते हैं। वास्तविकता यह है कि 'युगवाणी' पंत के जीवन और काव्य के एक निश्चित मोड़ की सूचना देती है, जो उसके आलोचकों के लिए वाद-विवाद तथा स्वीकार-अस्वीकार का प्रश्न रहा है। 'युगवाणी' में कवि गान्धीवादी विचारधारा के साथ[1]मार्क्स की द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी विचारधारा को अपनाता है और जनशक्ति की नवीन कल्पना के साथ समाज-चेतना का अग्रदूत बनकर उपस्थित होता है। उसकी रचनाओं पर बौद्धिकता और अध्ययन की छाप गहन होती जाती है और काव्य के तत्वों का ह्रास होता है। जिन लोगों ने पंत को भावुक और कल्पनाप्रवण कवि के रूप में सौन्दर्य, प्रेम, प्रकृति और मानव के गीत गाते देखा था, वे इस अप्रत्याशित परिवर्त्तन के लिए तैयार नहीं थे। संक्षेप में 'युगवाणी' कवि की उस नयी भावभूमि की उपज है, जो प्रगतिवादी काव्य-धारा के रूप में विकसित हुई है।
गद्यात्मक रचनाएँ
संकलन में 77 प्रगीत-मुक्तक हैं। इनमें अनेक विचाराक्रांत गद्यात्मक रचनाएँ हैं, जिनमें कवि मार्क्सवाद की व्याख्या प्रस्तुत करता है या गान्धीवाद-मार्क्स की तुलनात्मक भूमिका सामने लाता है। 'मार्क्स के प्रति', 'भूतदर्शन','साम्राज्यवाद', 'समाजवाद-गान्धीवाद', 'धनपति', 'मध्यवर्ग', 'कृषक', श्रमजीवी', प्रभृति एवं दर्जन रचनाएँ कवि की बुद्धिवादी विश्लेषणात्मक प्रवृत्ति की देन हैं। इन पर उसके समाजवादी अध्ययन और नयी दीक्षा की छाप है। इनमें हमें मार्क्सवादी जीवन की ऊहात्मक अभिव्यक्ति तथा-कथन के रूप में मिलेगी। परंतु ऐसी रचनाएँ अधिक नहीं हैं और उनके आधार पर पंत के परवर्ती काव्य को काव्यगुणों से एकदम हीन नहीं कहा जा सकता। दूसरी कोटि की रचनाएँ इस विचारणी का भावपक्ष कही जा सकती हैं, जिनमें कवि जन-जीवन, धरती के जीवन, नर-नारी के नये मान तथा नवजागरण के बौद्धिक पक्ष को अपनी कविता का विषय बनाता है। उसकी नयी कर्म जिज्ञासा 'चींटी' और 'घननाद' जैसी रचनाओं में मिलती हैं, जो साम्य पर आधारित जीवन-तंत्र और श्रम को नये मूल्य के रूप में उपस्थित करती है।
- नयी जीवनदृष्टि
'मानव' 'युग-उपकरण' और 'नवसंस्कृति' रचनाओं में कवि की नयी जीवनदृष्टि पल्लवित हुई है। मार्क्सवाद, भौतिकवाद और श्रम पर आधारित नये वस्तु-दर्शन को कवि नये भू-दर्शन का रूप देता है। 'पुण्यप्रस्' शीर्षक कविता में वह आदर्शोन्मुखी जीवन-चेतना की धरती की ओर लौटने का निमंत्रण देता है।
- फ्रायड का दर्शन
छोटे-छोटे अनेक प्रगीतों में कवि दलित-पतित मानवता को नये जीवन के प्रति उन्मुख करता है और उसके भावपूर्ण उद्बोधन नवनिर्माण के मंत्र से अभिषिक्त दिखलाई देते हैं। कवि मार्क्स के अर्थशास्त्र से ही प्रभावित नहीं है, वह फ्रायड के कामदर्शन को भी मान्यता देता है और उसे भी अपने नवतंत्र का अंग बनाता है। अतीन्द्रिय प्रेम के प्रति दुराग्रह और कामवर्जना को वह अतिवाद मानता है। इसीलिए नर-नारी के यौन संबंध की नैसर्गिकता एवं अनिवार्यता पर उसकी दृष्टि जाती है। 'मानव-पशु', 'नारी' और 'नर की छाया' रचनाएँ नारी-मुक्ति और काममुक्ति के नये सन्देश से ओतप्रोत हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि संकलन को 'बापू' रचना से आरम्भ करता हुआ भी कवि गान्धीदर्शन से धीरे-धीरे दूर हटता जाता है और वस्तु-जगत् ही उसकी चिंतना एवं भावना का विषय बन जाता है।
- नयी क्रांतिचेतना का प्रतीक
कुछ रचनाओं में जैसे 'पलाश', 'पलाश के प्रति' और 'मधु के स्वप्न' में पंत ने रक्तपलाश को अपनी नयी क्रांतिचेतना का प्रतीक मान कर भावपूर्ण प्रकृति-काव्य प्रस्तुत किया है। धरती के प्रति कवि का आकर्षण 'हरीतिमा' शीषर्क कविता में मिलता है, जहाँ कवि हरितवसना धरा के प्रति हमारी सृजन-शक्तियों को प्रेरित करता है परंतु प्रकृति के प्रति उसका दृष्टिकोण मार्क्सवादी ही है क्योंकि उसके विचार में निरुपम मानव की रचना कर प्रकृति हार गयी है और अपनी इस नवीन कृति में उसने पूर्णता प्राप्त कर ली है। फलतः प्रकृति मानव के लिए है, मानव प्रकृति के लिए नहीं। यह स्पष्ट है कि यह नया जीवन-दर्शन कवि के स्वर में नया मार्दव भरता है और उसमें यौवनोचित दृढ़ता तथा गम्भीरता का प्रसार करता है। तरुण जीवन की कर्मण्यता, साहस तथा नवनिर्माण की आकांक्षा द्वन्द्वात्मक जीवन-बोध के माध्यम से 'युगवाणी' की रचनाओं में स्पष्ट रूप से अभिव्यंजना पा सकी है।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ और कुछ अंशों में उसे छोड़कर भी
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 464-465।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख