गांधीजी का मंदिर -महात्मा गाँधी: Difference between revisions
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गांधीजी का मंदिर -महात्मा गाँधी
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मूल शीर्षक | महात्मा गाँधी |
प्रकाशक | भारतकोश प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि | 2014 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 80 |
भाषा | हिन्दी |
शैली | प्रेरक प्रसंग |
मुखपृष्ठ रचना | प्रेरक प्रसंग-भारतकोश |
एक बार गांधीजी को एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि शहर में गांधी मंदिर की स्थापना की गई है, जिसमें रोज उनकी मूर्ति की पूजा-अर्चना की जाती है। यह जानकर गांधीजी परेशान हो उठे। उन्होंने लोगों को बुलाया और अपनी मूर्ति की पूजा करने के लिए उनकी निंदा की। इस पर उनका एक समर्थक बोला,
'बापूजी, यदि कोई व्यक्ति अच्छे कार्य करे तो उसकी पूजा करने में कोई बुराई नहीं है।'
उस व्यक्ति की बात सुनकर गांधीजी बोले,
'भैया, तुम कैसी बातें कर रहे हो? जीवित व्यक्ति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करना बेढंगा कार्य है।'
इस पर वहां मौजूद लोगों ने कहा, 'बापूजी हम आपके कार्यों से बहुत प्रभावित हैं। इसलिए यदि आपको यह सम्मान दिया जा रहा है तो इसमें गलत क्या है।'
गांधीजी ने पूछा, 'आप मेरे किस कार्य से प्रभावित हैं?'
यह सुनकर सामने खड़ा एक युवक बोला, 'बापू, आप हर कार्य पहले स्वयं करते हैं, हर जिम्मेदारी को अपने ऊपर लेते हैं और अहिंसक नीति से शत्रु को भी प्रभावित कर देते हैं। आपके इन्हीं सद्गुणों से हम बहुत प्रभावित हैं।'
गांधीजी ने कहा, 'यदि आप मेरे कार्यों और सद्गुणों से प्रभावित हैं तो उन सद्गुणों को आप लोग भी अपने जीवन में अपनाइए। तोते की तरह गीता-रामायण का पाठ करने के बदले उनमें वर्णित शिक्षाओं का अनुकरण ही सच्ची पूजा-उपासना है।'
इसके बाद उन्होंने मंदिर की स्थापना करने वाले लोगों को संदेश भिजवाते हुए लिखा कि आपने मेरा मंदिर बनाकर अपने धन का दुरुपयोग किया है । इस धन को आवश्यक कार्य के लिए प्रयोग किया जा सकता था। इस तरह उन्होंने अपनी पूजा रुकवाई।
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