वृद्धा ने लगाई डांट -जवाहरलाल नेहरू: Difference between revisions
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Revision as of 04:18, 9 August 2014
वृद्धा ने लगाई डांट -जवाहरलाल नेहरू
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विवरण | जवाहरलाल नेहरू |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
जवाहरलाल नेहरू जब भी इलाहाबाद में होते, गंगा के दर्शन करने जरूर जाते। वहां उन्हें काफी सुकून मिलता था। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा। एक बार जब कुंभ मेला लगा तो नेहरू जी भी आए। उनके आने से लोग रोमांचित थे। अपार जनसमूह के बीच उनकी कार किसी तरह धीरे-धीरे आगे खिसक रही थी। जैसे ही लोग नेहरू जी को देखते, जोर-जोर से चिल्लाने लग जाते, 'पंडित जी आ गए, जवाहर लाल नेहरू की जय, प्रधानमंत्री जी की जय।'
तभी न जाने कहां से एक बूढ़ी महिला भीड़ को चीरती हुई उनकी कार के पास आई और हाथ उठाकर जोर-जोर से पुकारने लगी,
'अरे ओ जवाहर। रुक जा, खड़ा तो रह। तू कहता है न कि आजादी मिल गई है, लेकिन आजादी है कहां? किसको मिली है? हां, शायद तुझे मिली हो क्योंकि तू है जो मोटर में घूम रहा है। मेरे लड़के को तो एक नौकरी तक नहीं मिल रही। कहां है आजादी, बता?'
वृद्धा को देखकर नेहरू जी ने फौरन गाड़ी रुकवाई और नीचे उतरकर उस बुढ़िया के पास गए और हाथ जोड़कर कहा,
'मां जी, आप कहती हैं कि आजादी कहां है? जहां आप अपने देश के प्रधानमंत्री को 'तू' कहकर पुकार सकती हैं, उसे डांट सकती हैं, क्या यह आजादी नहीं है? क्या पहले ऐसा था? नहीं न। आप बेहिचक चली आईं हमारे पास अपनी शिकायत रखने। यही तो आजादी है। आपकी शिकायत पर ध्यान दिया जाएगा।'
- जवाहरलाल नेहरू से जुडे अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए जवाहरलाल नेहरू के प्रेरक प्रसंग पर जाएँ
टीका टिप्पणी और संदर्भबाहरी कड़ियाँसंबंधित लेख |
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