भागवत धर्म सार -विनोबा भाग-99: Difference between revisions
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भागवत धर्म मिमांसा
4. बुद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक
‘भागवत’ में कुल 12 स्कंध हैं। 11वें स्कन्ध में भगवान् ने उपदेश दिया है। दूसरे स्कन्धों में भी उपदेश तो है ही, लेकिन साथ में कथा कहानियाँ भी हैं। 11वें स्कंध में केवल उपदेश ही उपदेश है। उद्धव को उपदेश देकर प्रचार के लिए भेजा और वह भगवान् के उपदेशों का प्रचार करता हुआ घूमता रहा। रास्ते में मैत्रेय ऋषि ने उसे भगवान् के निजधाम पधारने का समाचार सुनाया। एकादश स्कन्ध में, ‘भागवत-धर्म’ बताया गया है। महाराष्ट्र के सत्पुरुष एकनाथ महाराज ने इसी 11वें स्कन्ध पर 18000 पद्यों में टीका लिखी है। बचपन में मैंने उसे पढ़ा था। तब से एकादश स्कंध के लिए मुझे आकर्षण था। उसमें कुछ बातें ऐसी हैं, जिनमें खास सार है। इसलिए मैंने उसका सार निकालकर संकलन किया है। 11वें स्कन्ध का 11वाँ अध्याय अत्यन्त सुप्रसिद्ध है। उसमें भगवान् ने ज्ञान बताया है, भक्ति बतायी है और मुक्ति का स्वरूप भी बताया है। साथ ही और भी कुछ ऐसी बातें बतायी हैं, जो अत्यंतन महत्व रखती हैं।
(11.1) बद्धो मुक्त इति व्याख्या गुणतो मे न वस्तुतः।
गुणस्य मायामूलत्वात् न मे मोक्षो न बंधनम्।।[1]
भगवान् कहते हैं : न मे मोक्षो न बंधनम्- न मुझे मोक्ष है और न बंधन। तुकाराम महाराज का एक अतिप्रसिद्ध अभंग है :
'मुक्त कासया म्हाणावे। बंधनचि नाही ठावे।।
अर्थात् जिसकी यह स्थिति है कि बंधन क्या होता है, यही मालूम नहीं, उसे ‘मुक्त कहना चाहिए। छुट्टी के दिन बच्चे आनंद का अनुभव करतेहैं।’ हैं, क्योंकि बाकी दिन वे स्कूल को बन्धन महसूस करते हैं। जहाँ बन्धन होता है, वहाँ मुक्ति नहीं आती। भगवान् कहते हैं कि मेरी दृष्टि में न बन्धन है और न मोक्ष। न मे मोक्षो न बन्धनम् का यह अर्थ करें कि ‘मुझे मोक्ष नहीं और बन्धन नहीं’ तो उसका हमें कोई लाभ न होगा। कारण, भगवान् स्वयं इन दोनों से परे हैं। इसलिए ‘मेरी दृष्टि में न बन्धन है, न मोक्ष है’ यही अर्थ हमारे लिए लाभदायी है, उपयोगी है। बद्ध मुक्त ऐसी व्याख्याएँ की जाती हैं, लेकिन वे गौण हैं; क्योंकि वे गुणों पर आधृत हैं। वस्तुतः वह कोई वस्तु ही नहीं। शंकराचार्य ने एक उपमा द्वारा बताया है कि मन ही बन्धन है और मन ही है मोक्ष। वे कहते हैं :
वायुनाऽऽनीयते मेघः पुनस्तेनैव नीयते।
अर्थात् वायु बादलों को ले आती है तो सूर्य ढँक जाता है। वही जब बादलों को हटा देती है तो सूर्य दीखने लगता है। आखिर बादलों को कौन ले आया और कौन वापस ले गया? वायु ही। बादलों के कारण सूर्य नहीं दीखता तो हम कहते हैं कि ‘सूर्य ढँक गया।’ वास्तव में सूर्य नहीं, हमारी आँखें ढँकी हैं। सूर्य को बादल क्या ढँक सकेंगे? वह स्वयं-प्रकाशक है। उसे ढँकने की सामर्थ्य किसी में नहीं। तो भी हम कहते हैं : बादलों से सूर्य ढँक गया, बँध गया। जब बादल छँट जाते हैं तो कहते हैं कि सूर्य को मुक्ति मिल गयी। ठीक इसी प्रकार मन विकार ले आया तो हम (आत्मा) बद्ध हो गये और मन ने ही विकार हटा दिये तो हम मुक्त हो गये। मन ही बन्धन में डालता है और वही मुक्त भी करता है। इसीलिए कहा है :
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11.11.1
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