भागवत धर्म सार -विनोबा भाग-114: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
नवनीत कुमार (talk | contribs) ('<h4 style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">भागवत धर्म मिमांसा</h4> <h4 style="text-...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (1 अवतरण) |
(No difference)
|
Revision as of 07:03, 13 August 2015
भागवत धर्म मिमांसा
5. वर्णाश्रण-सार
(17.2) सर्वाश्रम-प्रयुक्तोऽयं नियमः कुलनंदन ।
मद्भावः सर्वभूतेषु मनो-वाक्-काय-संयम ।।[1]
हे उद्धव!(उद्धव को नाम दिया ‘कुलनंदन’) सब आश्रमों के लिए एक और समान धर्म है। भागवत का अपना एक पागलपन है, उसे दूसरा कुछ सूझता ही नहीं। वह कौन-सा? कहती है :मद्भावः सर्वभूतेषु –सर्वभूतों में भगवान् की भावना रखना। लोग भले ही कहें कि यह बहुत कठिन बात है, लेकिन भागवत को दूसरा कुछ सूझता ही नहीं। वह कहती है कि सब भक्तों में भगवान् की भावना रखें। ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, संन्यासी हो, वानप्रस्थ हो, गृहस्थ हो या बूढ़ा हो, सबका यह कर्तव्य है। एक बात और कहती है :मनो-वाक्-काय-संयमः –मन, वाणी और काया संयम। यह भी सब आश्रमों को लागू है। इस पर वे समझ में आयेगा कि वर्णाश्रम-धर्मों की जो व्यवस्था बतायी, चारों वर्णों और चारों आश्रमों का जो समान धर्म बताया है, वह यदि अमल में आ जाए तो समाज कितना सुखी होगा! मैंने कहा कि मद्भाव :सर्वभूतेषु यह भागवत का पागलपन है, लेकिन भारत के लिए वह अपनी प्रिय वस्तु है। भारत में इस वस्तु के लिए हरएक के हृदय में प्रेम है। चाहे हिन्दू को, मुसलमान हो, ईसाई हो, जैन हो, सबको अंदर से आध्यात्मिक तृष्णा रहती है। यह भारत की अपनी विशेषता है। भारत की हवा में ही यह चीज है। यह अलग बात है कि हम गलत काम करते हैं, लेकिन बाद में पछताते हैं; क्योंकि हवा में वह चीज फैली हुई है। सब भूतों में भगवद्-भावना रखें, यह बात यहाँ बिलकुल बचपन से पढ़ायी जाती है। बचपन की याद आ रही है। मेरे हाथ में एक लकड़ी थी। मैं उससे मकान के खंभे को पीट रहा था। माँ ने मुझे रोककर कहा :‘उसे क्यों पीट रहे हो? वह भगवान् की मूर्ति है। क्या जरूरत है उसे तकलीफ देने की?’ मैं रुक गया। यह जो खंभे को भी नाहक तकलीफ न देने की भावना है, वह भारत में सर्वत्र मिलेगी। भागवत का जो पागलपन है, वह भारत का अपना पागलपन है! यह बिलकुल व्यावहारिक बात है। यदि हम यह चीज नहीं सीखते, तो क्या ब्रह्मचर्य, क्या गार्हस्थ्य और क्या वानप्रस्थ कुछ सध पायेगा? कोई चीज नहीं सधेगी। इसलिए यह बुनियादी चीज है और सबको इसका पालन करना चाहिए।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11.17.35
संबंधित लेख
-