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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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<center>[[भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016|शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र]]</center>
<center>[[कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी|कुछ तो कह जाते]]</center>
[[चित्र:Mukul-Dvawedi.jpg|right|100px|border|link=भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016]]
[[चित्र:Microphone01.jpg|right|border|100px|link=कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी]]
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        हमारे देश में किसी भी सेना या बल के जवान की जान की क़ीमत कितनी कम है इसका अंदाज़ा तुमको बख़ूबी होगा। हमारे जवान, सन् 62 की चीन की लड़ाई में बिना रसद और हथियारों के लड़ते रहे, कुछ वर्ष पहले मिग-21 जैसे कबाड़ा विमानों में एयरफ़ोर्स के पायलट बेमौत मरते रहे, पड़ोसी देश के दरिंदे हमारे सिपाहियों के सर काटकर ले जाते रहे, कश्मीर के साथ न्याय करने के बहाने भयानक अन्याय को सहते रहे, घटिया स्तर के नेताओं की जान बचाने के लिए अपनी जानें क़ुर्बान करते रहे, इन जवानों की शहादत इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण था कि हमारी सरकारें देश के नौनिहालों को लेकर किस क़दर लापरवाह है। [[भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016|पूरा पढ़ें]]
      सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनिया में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। [[कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी|पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले सभी लेख]] →
| [[भारतकोश सम्पादकीय 17 मार्च 2016|हिन्दी के ई-संसार का संचार]]  ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 4 जून 2016|शहीद मुकुल द्विवेदी के नाम पत्र]] 
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 5 अक्टूबर 2015|ये तेरा घर ये मेरा घर]]   
| [[भारतकोश सम्पादकीय 5 अक्टूबर 2015|ये तेरा घर ये मेरा घर]]   
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Revision as of 07:58, 23 August 2016

भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी
कुछ तो कह जाते

right|border|100px|link=कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी

      सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनिया में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। पूरा पढ़ें

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