कालिदास की रस संयोजना: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "अविभावक" to "अभिभावक")
m (Text replacement - "ह्रदय" to "हृदय")
Line 44: Line 44:
<poem>आलिङ्ग्यंते गुणवति मया ते तुषाराद्रिवाता:।
<poem>आलिङ्ग्यंते गुणवति मया ते तुषाराद्रिवाता:।
पूर्वस्पृष्टं यदि किल भवेदङ्गमेभिस्तवेति॥<ref>2.50, मेघदूत</ref></poem>
पूर्वस्पृष्टं यदि किल भवेदङ्गमेभिस्तवेति॥<ref>2.50, मेघदूत</ref></poem>
*कालिदास ने [[कुमारसम्भव]] में रति-विलाप तथा [[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] में [[अज]] - विलाप के प्रसंग में [[करुण रस]] का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है। [[कामदेव]] के जल जाने पर रति रोती हुई कहती है - प्रिय! आज तक तुम्हारे जिस कांतिमान शरीर से विलासियों के शरीर की उपमा दी जाती थी, उसे इस दशा में देखकर भी मेरी छाती फट नहीं रही है, सचमुच स्त्रियों का ह्रदय कठोर होता है-
*कालिदास ने [[कुमारसम्भव]] में रति-विलाप तथा [[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] में [[अज]] - विलाप के प्रसंग में [[करुण रस]] का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है। [[कामदेव]] के जल जाने पर रति रोती हुई कहती है - प्रिय! आज तक तुम्हारे जिस कांतिमान शरीर से विलासियों के शरीर की उपमा दी जाती थी, उसे इस दशा में देखकर भी मेरी छाती फट नहीं रही है, सचमुच स्त्रियों का हृदय कठोर होता है-
<poem>उपमानमभूद्विलासिनां करणं यत्तव कांतिमत्तया।
<poem>उपमानमभूद्विलासिनां करणं यत्तव कांतिमत्तया।
तदिद गतमीदृशीं दशां न विदीर्ये कठिना: खलु स्त्रिय:॥<ref>4.5, कुमारसम्भव</ref></poem>
तदिद गतमीदृशीं दशां न विदीर्ये कठिना: खलु स्त्रिय:॥<ref>4.5, कुमारसम्भव</ref></poem>

Revision as of 09:54, 24 February 2017

कालिदास विषय सूची
कालिदास की रस संयोजना
पूरा नाम महाकवि कालिदास
जन्म 150 वर्ष ईसा पूर्व से 450 ईसवी के मध्य
जन्म भूमि उत्तर प्रदेश
पति/पत्नी विद्योत्तमा
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र संस्कृत कवि
मुख्य रचनाएँ नाटक- अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्रम्; महाकाव्य- रघुवंशम् और कुमारसंभवम्, खण्डकाव्य- मेघदूतम् और ऋतुसंहार
भाषा संस्कृत
पुरस्कार-उपाधि महाकवि
संबंधित लेख कालिदास के काव्य में प्रकृति चित्रण, कालिदास के चरित्र-चित्रण, कालिदास की अलंकार-योजना, कालिदास का छन्द विधान, कालिदास का सौन्दर्य और प्रेम, कालिदास लोकाचार और लोकतत्त्व
अन्य जानकारी कालिदास शक्लो-सूरत से सुंदर थे और विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में एक थे। लेकिन कहा जाता है कि प्रारंभिक जीवन में कालिदास अनपढ़ और मूर्ख थे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

कालिदास ह्र्दयपक्ष अथवा भावपक्ष के कवि हैं। इसीलिये उनकी कविता द्राक्षापाक है। वे व्यंजनावादी हैं। रसोदबोध में अत्यंत सक्षम हैं। रसों में भी कोमल रसों के संयोजन में वे सिद्धहस्त हैं। यद्यपि उन्होंने वीर, भयानक आदि रसों का भी चित्रण किया है किंतु शृंगार, करुण एवं शांत प्रभृत्ति सुकुमार रसों की अनुभूति कराने में वे जितने प्रवीण हैं, उतने प्रौढ़ रसों की अनुभूति में नहीं।

विशेषताएँ

  • शृंगार के वर्णन में तो कालिदास अनुपम हैं। वस्तुत: वे शृंगार के कवि हैं। उन्होंने शृंगार के उभय पक्ष - सम्भोग एवं विप्रलम्भ का चित्रण किया है। किंतु उनका विप्रलम्भ शृंगार रस अद्वितीय है। मेघदूत में तो सम्भोग शृंगार विप्रलम्भ का पोषक बन गया है।
  • कालिदास के समस्त काव्यों में शृंगार रस की अभिव्यक्ति हुई है। ऋतुसंहार, मेघदूत आदि ग्रंथों में सम्भोग शृंगार का भरपूर चित्रण है, किंतु कुमारसम्भव में शिव - पार्वती के सम्भोग वर्णन में सम्भोग शृंगार की अभिव्यक्ति अत्युत्कृष्ट है।
  • मेघदूत में भी सम्भोग शृंगार का खुलकर चित्रण हुआ है-

नीवीबन्धोच्छ्वसितशिथिलं यत्र बिम्बाधराणां
क्षौमं रागादनिभृतकरेष्वाक्षिपत्सु प्रियेषु
अर्चितस्तुङ्गानभिमुखमपि प्राप्य रत्नप्रदीपान
ह्वीमूढानां भवति विफलप्रेरणा चूर्णमुष्टि:॥[1]

  • अलका नगरी में रागाधिक्यवश प्रेमिकाओं के अधोवस्त्रों के बन्ध ढीले पड़ जाते हैं और प्रेमियों के चंचल हाथ जब उनके रेशमी वस्त्रों को खींच लेते हैं तब लज्जित हुई प्रेमिकायें ऊँचे प्रज्ज्वलित रत्नदीपों को बुझाने के लिये उन पर मुठ्टी भर केसर की धूल फेंकती हैं, किंतु उनका प्रयास विफल ही होता है।
  • मेघदूत विप्रलम्भ शृंगार प्रधान काव्य है। यहाँ सम्भोग शृंगार भी विप्रलम्भ का पोषक है। कालिदास मेघदूत में विप्रलम्भ की तीव्रतम अनुभूति कराने में सफल हुए हैं। यक्ष प्रिया-मिलन के लिये इतना व्याकुल है कि उत्तर की ओर से आने वाली हवाओं का आलिंगन करता है, सम्भव है ये हवायें उसकी प्रिया के शरीर का स्पर्श कर के आ रही हों-

आलिङ्ग्यंते गुणवति मया ते तुषाराद्रिवाता:।
पूर्वस्पृष्टं यदि किल भवेदङ्गमेभिस्तवेति॥[2]

  • कालिदास ने कुमारसम्भव में रति-विलाप तथा रघुवंश में अज - विलाप के प्रसंग में करुण रस का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है। कामदेव के जल जाने पर रति रोती हुई कहती है - प्रिय! आज तक तुम्हारे जिस कांतिमान शरीर से विलासियों के शरीर की उपमा दी जाती थी, उसे इस दशा में देखकर भी मेरी छाती फट नहीं रही है, सचमुच स्त्रियों का हृदय कठोर होता है-

उपमानमभूद्विलासिनां करणं यत्तव कांतिमत्तया।
तदिद गतमीदृशीं दशां न विदीर्ये कठिना: खलु स्त्रिय:॥[3]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 2.7, मेघदूत
  2. 2.50, मेघदूत
  3. 4.5, कुमारसम्भव

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख