असहयोग आन्दोलन की प्रेरणा -महात्मा गाँधी: Difference between revisions

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वे  सविनय-असहयोग  आंदोलन  के  प्रवर्तक  थे,  उनका  कहना  था--- 'अन्याय  चाहे  अपनें  घर  में  होता  हो  या  बाहर,  उसका    विरोध  करने  से  नहीं  डरना  चाहिए  और  कुछ  न  कर  सको  तो  भी  बुराई  के  साथ  सहयोग  तो  करना  ही  नहीं  चाहिए  ।
वे  सविनय-असहयोग  आंदोलन  के  प्रवर्तक  थे,  उनका  कहना  था--- 'अन्याय  चाहे  अपनें  घर  में  होता  हो  या  बाहर,  उसका    विरोध  करने  से  नहीं  डरना  चाहिए  और  कुछ  न  कर  सको  तो  भी  बुराई  के  साथ  सहयोग  तो  करना  ही  नहीं  चाहिए  ।
        
        
बुराइयाँ  चाहे  राजनैतिक  हों    या  सामाजिक,  नैतिक  हों    या  धार्मिक,  जिस  देश  के  नागरिक  उनके  विरुद्ध  खड़े  हो  जाते  हैं,  सविनय  असहयोग  से  उसकी  शक्ति  कमजोर कर  देतें  हैं  वहां  अमेरिका  की  तरह  ही  सामाजिक  जीवन  में  परिवर्तन  भी  अवश्य  होते  हैं  ।
बुराइयाँ  चाहे  राजनैतिक  हों    या  सामाजिक,  नैतिक  हों    या  धार्मिक,  जिस  देश  के  नागरिक  उनके  विरुद्ध  खड़े  हो  जाते  हैं,  सविनय  असहयोग  से  उसकी  शक्ति  कमज़ोर कर  देतें  हैं  वहां  अमेरिका  की  तरह  ही  सामाजिक  जीवन  में  परिवर्तन  भी  अवश्य  होते  हैं  ।
    
    
महात्मा  गांधी  को  [[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]]  की  प्रेरणा  हेनरी  डेविड  थोरो  से  प्राप्त  हुई  ।  उनकी  प्रार्थना  को  गांधी  जी  '  प्रार्थनाओं  की  प्रार्थना  '  कहते  थे  । उनकी  [[प्रार्थना]]  थी-----  
महात्मा  गांधी  को  [[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]]  की  प्रेरणा  हेनरी  डेविड  थोरो  से  प्राप्त  हुई  ।  उनकी  प्रार्थना  को  गांधी  जी  '  प्रार्थनाओं  की  प्रार्थना  '  कहते  थे  । उनकी  [[प्रार्थना]]  थी-----  

Latest revision as of 11:36, 5 July 2017

असहयोग आन्दोलन की प्रेरणा -महात्मा गाँधी
विवरण महात्मा गाँधी
भाषा हिंदी
देश भारत
मूल शीर्षक प्रेरक प्रसंग
उप शीर्षक महात्मा गाँधी के प्रेरक प्रसंग
संकलनकर्ता अशोक कुमार शुक्ला

गांधी जी हेनरी डेविड थोरो नामक एक अमेरिकी विचारक से प्रभावित थे। थोरो का मानना था कि संसार में स्वविवेक से बड़ा कोई कानून नहीं है। ईश्वर ने मनुष्य को ये शक्ति दी है कि वो अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकता है, और इसी सोच के आधार पर उन्होंने अमेरिका में एक बार सिटी टैक्स नहीं देने के लिए लेख लिखा। उनका ऐसा लिखना कानून की निगाह में ज़ुर्म था, लिहाजा उन्होंने अपना ज़ुर्म कबूल करते हुए सजा भी पाई। सजा अपनी जगह थी, लेकिन उनका कहना था कि कोई भी कानून स्वविवेक से बढ़ कर नहीं हो सकता।
थोरो का यही सिद्धांत गांधी जी के लिए सत्याग्रह का विज्ञान बना। गांधी जी ने समझ लिया कि किसी कानून की अवज्ञा नैतिक आधार पर की जा सकती है। हेनरी थोरो ने कहा था---- " लोकतंत्र पर मेरी आस्था है, पर वोटों से चुने गये व्यक्ति स्वेच्छाचार करें मैं यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता | राजसंचालन उन व्यक्तियों के हाथ में होना चाहिए जिनमे मनुष्य मात्र के कल्याण की भावना और कर्तव्य-परायणता विद्दमान हो और जो उसकी पूर्ति के लिए त्याग भी कर सकते हों । "
 
किसी ने कहा---- यदि ऐसा न हुआ तो  ?'
उन्होंने कहा--- " तो हम ऐसी राज्य सत्ता के साथ कभी सहयोग नहीं करेंगे चाहे उसमे हमें कितना ही कष्ट क्योँ न उठाना पड़े । "

वे सविनय-असहयोग आंदोलन के प्रवर्तक थे, उनका कहना था--- 'अन्याय चाहे अपनें घर में होता हो या बाहर, उसका विरोध करने से नहीं डरना चाहिए और कुछ न कर सको तो भी बुराई के साथ सहयोग तो करना ही नहीं चाहिए ।
       
बुराइयाँ चाहे राजनैतिक हों या सामाजिक, नैतिक हों या धार्मिक, जिस देश के नागरिक उनके विरुद्ध खड़े हो जाते हैं, सविनय असहयोग से उसकी शक्ति कमज़ोर कर देतें हैं वहां अमेरिका की तरह ही सामाजिक जीवन में परिवर्तन भी अवश्य होते हैं ।
   
महात्मा गांधी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रेरणा हेनरी डेविड थोरो से प्राप्त हुई । उनकी प्रार्थना को गांधी जी ' प्रार्थनाओं की प्रार्थना ' कहते थे । उनकी प्रार्थना थी-----

" हे प्रभो ! मुझे इतनी शक्ति दे दो कि मैं अपने को अपनी करनी से कभी निराश न करूँ । मेरे हस्त, मेरी द्रढ़ता, श्रद्धा का कभी अनादर न करें । मेरा प्रेम मेरे मित्रों के प्रेम से घटिया न रहे । मेरी वाणी जितना कहे-- जीवन उससे ज्यादा करता चले । तेरी मंगलमय स्रष्टि का हर अमंगल पचा सकूँ, इतनी शक्ति मुझ में बनी रहे । "

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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