पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो: Difference between revisions

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पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (अंग्रेज़ी: Bureau of Police Research and Development or BPR&D) की स्थापना पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के बारे में भारत सरकार के उद्देश्य को पूरा करने के लिए 28 अगस्त, 1970 को की गई थी। यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करती है। यह बहुआयामी एवं परामर्शदाता संगठन है और इसके चार प्रभाग हैं। मूल रूप से संस्थान में दो प्रभाग होते थे- अनुसंधान एवं विकास प्रभाग। बाद में 1963 में प्रशिक्षण प्रभाग जोड़ा गया। इसके बाद 1983 में फॉरेन्सिक विज्ञान प्रभाग और 1995 में दिष-सुधार प्रशासन प्रभाग जुड़े। इसके साथ-साथ कुछ अन्य विभागों ने संस्थान के कुछ कार्य संभाले, जैसे वर्ष 1976 में अपराध विज्ञान एवं फॉरेन्सिक विज्ञान ने कुछ संबंधित कार्य संभाला। मौजूदा समय में इसके चार प्रभाग- अनुसंधान प्रभाग, विकास प्रभाग, प्रशिक्षण प्रभाग और दोष-सुधार प्रशासन प्रभाग हैं। इन सभी प्रभागों के अलग-अलग काम हैं।[1]

गठन

भारत सरकार के 28 अगस्त, 1970 के संकल्प सं.8/136/68-पी[2] के अंतर्गत गृह मंत्रालय के अधीन 'पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो'[3] की औपचारिक रूप से स्थापना हुई। इसमें विद्यमान पुलिस अनुसंधान एवं परामर्श समिति को निम्नलिखित कारणों के साथ पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के प्रमुख उद्देश्यों के लिए एक नया स्वरूप प्रदान किया जाए[4]-

  1. जो इन मुद्दों पर सीधे व प्रभावी रूप से ध्यान दे।
  2. जो पुलिस की समस्याओं के गतिशील तथा सुव्यवस्थित एवं सार्थक अध्ययन को प्रोत्साहित करे।
  3. देश में पुलिस की कार्य पद्धति में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रयोग कराए।


इसके अतरिव्त संकल्प में ब्यूरो को दूसरे कार्यों के रूप में परामर्शदाता की भूमिका भी दी गई।

  • प्रारंभ में निम्नलिखित दो प्रभागों के कार्यों के उचित निष्पादन हेतु ब्यूरो की स्थापना की गई-
  1. अनुसंधान, सांख्यकीय तथा प्रकाशन
  2. विकास
  • देश में पुलिस बलों की कार्य क्षमता में वृद्धि लाने के लिए उन्नत प्रशिक्षण बहुत ही अपेक्षित है। भारत सरकार द्वारा प्रशिक्षण के विभिन्न पहलुओं के अध्ययन के लिए गोरे समिति (1971) का गठन किया था, जिसने इस विषय पर अपनी कई अनुसंशाएं दीं। इन्हीं अनुसंशाओं के आधार पर भारत सरकार ने वर्ष 1973 में ब्यूरो में विद्यमान दो प्रभागों के साथ प्रशिक्षण प्रभाग को जोड़ा, जो ब्यूरो के अधीन कार्य करेगा।
  • वर्ष 1983 में न्यायालयिक विज्ञान सेवाएं जो के.न्या.वि. प्रयोगशाला व सरकारी परीक्षक प्रश्नास्पदप्रलेख के रूप में काफी समय से विकास प्रभाग के अतंर्गत कार्य कर रहा था, को ब्यूरो के अधीन एक अलग से न्यायालयिक विज्ञान निदेशालय के रूप में बना दिया।
  • इससे आगे वर्ष 1995 में भारत सरकार ने ब्यूरो के अधीन सुधारात्मक प्रशासन से संबंधित कार्यों को सौंपने का निर्णय लिया, जिसमें कारागार तथा कारागार सुधार से संबंधित कार्यों के क्रियान्वयन के कार्य ब्यूरो द्वारा किए गए। इसका संचालन ब्यूरो के विद्यमान स्रोतों के द्वारा ही किया जा रहा है।
  • वर्ष 2008 के दौरान भारत सरकार ने पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के प्रशासनिक नियंत्रण में नेशनल पुलिस मिशन बनाने का निर्णय इस उद्देश्य से किया कि देश के पुलिस बलों में भविष्य के चुनौतियों तथा आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था से निपटने के लिए आवश्यक सामग्री, बुद्धिजीवी व संगठनात्मक स्रोतों के साथ प्रभावी तंत्र के रूप में कार्य कर सके।

विभाजन

  • यद्यपि आपराधिक एंव न्यायालयिक विज्ञान संस्थान (आईसीएफएसड़ पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के अंतर्गत इसी प्रकार के समान कार्यों के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन वर्ष 1976 में इसे अलग से कार्य करने वाली ईकाई बना दिया गया। इसको स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य आपराध विज्ञान व न्यायालियक विज्ञान के विस्तृत अध्ययन के लिए पूर्ण रूप से अकादमिक संस्थान को विकसित करना था। वर्ष 1991 में इसे फिर से नया नाम दिया गया, जो वर्ष 1982 से एलएनजेपी लोकनायक जयप्रकाश नारायण राष्ट्रीय अपराध शास्त्र तथा न्यायालयिक विज्ञान संस्थान के रूप में कार्य कर रहा है। यह संस्थान आपराधिक न्यायिक प्रणाली से संबंधित अधिकारियों को दो विषयों जो अपराध शास्त्र व न्यायालयिक विज्ञान है, में प्रशिक्षण उपलब्ध कराने के साथ अनुसंधान का कार्य भी कराता है।
  • विकास की गतिशीलता के कारण यह आवश्यक हो गया है कि प्रत्येक क्षेत्र में विशेषज्ञ हो। राष्ट्रीय पुलिस मिशन (1977) ने भी कई अनुशंसाएं दी हैं, जिसमें अपराध नियंत्रण और अपराधों का पता लगाने के लिए नए प्रकार के मापदंडों के साथ नई तकनीकों के उपयोग का समर्थन किया है, जिसमें विशेषकर कंप्यूटर के उपयोग भी हैं, जिसमें सांख्यकीय डाटा रखने तथा समय पर उनके विश्लेषण की आवश्यकता को पूरा किया जा सके। अतः भारत सरकार ने इसके लिए वर्ष 1986 में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की स्थापना की। एक नए संकल्प के अंतर्गत उनको अनुसंधान प्रभाग के सांख्यिकीय व प्रकाशन के कार्य के साथ उसके कंप्यूटरीकरण करने की योजना भी शामिल थी।
  • विकास की गतिशीलता की मजबूरी के अंतर्गत भारत सरकार ने न्यायालयिक विज्ञान प्रभाग को विभाजित करके एक स्वतंत्र ईकाई रूप में गृह मंत्रालय के सीधे नियंत्रण में न्यायालयिक विज्ञान निदेशालय की स्थापना कर दी।

प्रभाग

वर्तमान में इस संस्थान के चार प्रभाग हैं-

अनुसंधान प्रभाग

अनुसंधान प्रभाग देश की पुलिस सेवाओं की आवश्यकताओं और समस्याओं का पता लगाकर विभिन्न शैक्षिक व पेशेवर संस्थाओं के सहयोग से इस क्षेत्र में अनुसंधान करता है। साथ ही साथ वह इस अनुसंधान के लिए प्रोत्साहन और मार्गदर्शन भी प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त वह देश के पुलिस बलों से संबंधित विभिन्न विषयों पर संगोष्ठियां परिसंवाद कार्यशालाएं व सम्मेलन आयोजित करता है ताकि तत्संबंध में राष्ट्रीय सर्वसम्मति कायम की जा सके और व्यावहारिक समाधान निकाला जा सके। केन्द्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में गठित एक स्थायी समिति को अनुसंधान के लिए उपयुक्त विषय चुनने व ये विषय व्यक्तियों या संस्थाओं के लिए निर्दिष्ट करने के कार्य में इस ब्यूरो को मार्गदर्शन प्रदान करने प्रौद्योगिकी विकास के संबंध में सिफारिश करने और पुलिस कार्य के बारे में प्रभावी योजनाएं व नीतियां निर्धारित करने का दायित्व सौंपा गया है।

समाज के विभिन्न वर्गों से प्राप्त अनुसंधान अध्ययन प्रस्तावों पर विचार किया जाता है और सुझाव सहमति प्राप्त करने के लिए ये प्रस्ताव स्थायी समिति के सदस्यों को प्रस्तुत किए जाते हैं। स्थायी समिति के सदस्यों की सहमति प्राप्त करने के बाद प्रायोजकता के लिए चयनित अनुसंधान विषयों के बारे में मानकों के अनुसार तीन समान किस्तों में धनराशि (बजट) आबंटित की जाती है। किए जा रहे अनुसंधान अध्ययनों के पर्यवेक्षण का दायित्व अनुसंधान प्रभाग के अनुभागों का है जो अध्ययन के विषय निर्दिष्ट करते हैं।

विकास प्रभाग

इस प्रभाग में भारत और अन्य देशों में पुलिस कार्य के लिए प्रयुक्त की जा रही विज्ञान और प्रौद्योगिकी की तकनीकों के क्षेत्र में हो रहे विकास संबंधी जानकारी रखी जाती है। इसके अतिरिक्त यह नई कार्य पध्दतियों का भी अध्ययन करता है ताकि उपयुक्त उपकरण व तकनीकें अपनाई जा सकें। यह निरंतर ही नई प्रौद्योगिकी व वैज्ञानिक उत्पाद की जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है और उन्हें देश में अपनाए जाने की उपयुक्तता पर विचार करता है। यह बॉडी आर्मर, बुलेटप्रूफ वाहनों, शस्त्रों, मोटर वाहनों, इत्यादि जैसे उपकरणों साधनों के प्रयोग के बारे में भी मानक तय करता है। जब से राज्यों ने अपने शस्त्रों उपकरणों को उन्नत करने की योजना बनाई है। इस प्रभाग की प्रासंगिकता पहले की तुलना में काफी अधिक बढ ग़ई है।

प्रशिक्षण प्रभाग

पुलिस प्रशिक्षण के बारे में गठित समिति की सिफारिश के आधार पर प्रशिक्षण प्रभाग की स्थापना सितंबर 1973 को की गई। इसकी स्थपना देश के पुलिस बलों की प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए केन्द्रीय पुलिस प्रशिक्षण निदेशालय के रूप में की गई। प्रशिक्षण प्रभाग के नियंत्रण में चंडीगढ क़ोलकाता और हैदराबाद स्थित तीन केन्द्रीय गुप्तचर प्रशिक्षण स्कूल भी हैं जो वैज्ञानिक अंवेषण के विषय में राज्य पुलिस अधिकारियों के लिए पाठयक्रम संचालित करते हैं। यह पुलिस प्रशिक्षण की भावी आवश्यकताओं का आकलन करके समूचे देश के प्रशिक्षण संगठनों के विद्यमान कार्यक्रमों का मूल्यांकन और उनके लिए प्रशिक्षण नीति एवं कार्यप्रणाली की भी रूपरेखा तैयार करता है। यह प्रभाग राज्य पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों और अन्य शैक्षिक निकायों से संपर्क बनाए रखता है तथा विभिन्न विशिष्ट पाठयक्रमों का पाठय विवरण व प्रशिक्षण सामग्री तैयार एवं परिचालित करने में सहायता करता है ताकि उन्हें अपग्रेड करने में कोई कठिनाई न आ सके। प्रशिक्षण प्रभाग मित्र देशों के पुलिस अधिकारियों को भारत में प्रशिक्षण देने और भारतीय पुलिस अधिकारियों के लिए भारत व विदेश दोनों ही स्थानों में विदेशी प्रशिक्षकों की सहायता से विशिष्ट पाठयक्रम आयोजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रशिक्षण प्रभाग भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों और अधीनस्थ अधिकारियों के लिए देश में प्रशिक्षण पाठयक्रम आयोजित कर रहा है।

दोष-सुधार प्रशासन प्रभाग

गृह मंत्रालय ने पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो में दोष सुधार प्रशासन प्रभाग की स्थापना की। इस संबंध में उनके 16 नवम्बर, 1995 के पत्र 110181492-जीपीए का अवलोकन किया जा सकता है। स्थपना विनिर्दिष्ट कार्यों के लिए की गई जिनमें कारागार प्रशासन को प्रभावित करने वाली समस्याओं का अध्ययन करना और इस विषय में अनुसंधान एवं प्रशिक्षण को बढावा देने का कार्य भी शामिल है। इस दायित्वों को पूरा करने के लिए प्रभाग न केवल अनुसंधान व प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रायोजित कर रहा है बल्कि लोक नीति की दृष्टि से जिन मुद्दों पर प्राथमिकता से ध्यान दिया जाना अपेक्षित है उनके संबंध में स्वयं अपनी भी परियोजनाएं संचालित कर रहा है। इस बारे में प्राथमिकता का निर्धारण विभिन्न मंचों जैसे कारागार सुधार संबंधी सलाहकार समिति राज्यों के कारागार विभाग के प्रमुखों की क्षेत्रीय बैठकों व कारागार अधिकारियों के गठन संपर्क पाठयक्रमों और सभी राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों के कारागार महानिदेशकों/महानिरीक्षकों व सचिव (कारागार) के अखिल भारतीय सम्मेलन में कायम की गई राष्ट्रीय सर्वसम्मति के आधार पर किया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (हिंदी) rakshaknews.com। अभिगमन तिथि: 16 जनवरी, 2018।
  2. पर्स-1
  3. पु.अनु.वि.ब्यूरो
  4. पु.अनु.वि.ब्यूरो की उत्पत्ति (हिंदी) rakshaknews.com। अभिगमन तिथि: 16 जनवरी, 2018।

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