भक्तिमार्ग: Difference between revisions

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इन मार्गों में भगवद[[गीता]] भक्तिमार्ग को सर्वोत्त्म कहती है। इसका सरल अर्थ यह है कि सच्चे [[ह्रदय]] से संपादित भगवान की भक्ति पुनर्जन्म से उसी प्रकार मोक्ष दिलाती है, जैसे दार्शनिक ज्ञान एवं निष्काम योग दिलाते हैं। गीता <ref>गीता 12.6-7</ref> में [[श्रीकृष्ण]] का कथन है-"मुझ पर आश्रित होकर जो लोग सम्पूर्ण कर्मों को मेरे अर्पण करते हुए मुझ '''परमेश्वर''' को ही अनन्य भाव के साथ ध्यानयोग से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं, मुझमें चित्त लगाने वाले ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार [[सागर]] से उद्धार कर देता हूँ।"
इन मार्गों में भगवद[[गीता]] भक्तिमार्ग को सर्वोत्त्म कहती है। इसका सरल अर्थ यह है कि सच्चे [[ह्रदय]] से संपादित भगवान की भक्ति पुनर्जन्म से उसी प्रकार मोक्ष दिलाती है, जैसे दार्शनिक ज्ञान एवं निष्काम योग दिलाते हैं। गीता <ref>गीता 12.6-7</ref> में [[श्रीकृष्ण]] का कथन है-"मुझ पर आश्रित होकर जो लोग सम्पूर्ण कर्मों को मेरे अर्पण करते हुए मुझ '''परमेश्वर''' को ही अनन्य भाव के साथ ध्यानयोग से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं, मुझमें चित्त लगाने वाले ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार [[सागर]] से उद्धार कर देता हूँ।"


बहुत से अनन्य प्रेमी '''भक्तिमार्गी''' शुष्क मोक्ष चाहते ही नहीं। वे भक्ति करते रहने को मोक्ष से बढ़कर मानते हैं। उनके अनुसार परम मोक्ष के समान परा भक्ति स्वयं फलरूपा है, वह किसी दूसरे [[भारत के फल|फल]] का साधन नहीं करती है।  
बहुत से अनन्य प्रेमी '''भक्तिमार्गी''' शुष्क मोक्ष चाहते ही नहीं। वे भक्ति करते रहने को मोक्ष से बढ़कर मानते हैं। उनके अनुसार परम मोक्ष के समान परा भक्ति स्वयं फलरूपा है, वह किसी दूसरे [[फल (परिणाम)|फल]] का साधन नहीं करती है।  


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Revision as of 04:46, 29 November 2010

भक्तिमार्ग सगुण-साकार रूप में भगवान का भजन-पूजन करना होता है। मोक्ष के तीन साधन हैं-

  1. ज्ञानमार्ग
  2. कर्ममार्ग
  3. भक्तिमार्ग।

इन मार्गों में भगवदगीता भक्तिमार्ग को सर्वोत्त्म कहती है। इसका सरल अर्थ यह है कि सच्चे ह्रदय से संपादित भगवान की भक्ति पुनर्जन्म से उसी प्रकार मोक्ष दिलाती है, जैसे दार्शनिक ज्ञान एवं निष्काम योग दिलाते हैं। गीता [1] में श्रीकृष्ण का कथन है-"मुझ पर आश्रित होकर जो लोग सम्पूर्ण कर्मों को मेरे अर्पण करते हुए मुझ परमेश्वर को ही अनन्य भाव के साथ ध्यानयोग से निरन्तर चिन्तन करते हुए भजते हैं, मुझमें चित्त लगाने वाले ऐसे भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार सागर से उद्धार कर देता हूँ।"

बहुत से अनन्य प्रेमी भक्तिमार्गी शुष्क मोक्ष चाहते ही नहीं। वे भक्ति करते रहने को मोक्ष से बढ़कर मानते हैं। उनके अनुसार परम मोक्ष के समान परा भक्ति स्वयं फलरूपा है, वह किसी दूसरे फल का साधन नहीं करती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गीता 12.6-7