संत ज्ञानेश्वर: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
प्राचीन [[भागवत]] सम्प्रदाय का अवशेष आज भी [[भारत]] के दक्षिण प्रवेश में विद्यमान है। [[महाराष्ट्र]] में इस सम्प्रदाय के पूर्वाचार्य संत ज्ञानेश्वर नाथसम्प्रदाय के अंतर्गत योगमार्ग के पुरस्कर्ता माने जाते हैं, उसी प्रकार [[भक्तिमार्ग]] में वे विष्णुस्वामी संप्रदाय के पुरस्कर्ता माने जाते हैं। फिर भी योगी ज्ञानेश्वर ने मराठो में 'अमृतानुभव' लिखा जो अद्वैतवादी शैव परम्परा में आता है। निदान, ज्ञानेश्वर सच्चे भागवत थे, क्योंकि भागवत धर्म की यही विशेषता है कि वह [[शिव]] और [[विष्णु]] में अभेद बुद्धि रखता है। | प्राचीन [[भागवत]] सम्प्रदाय का अवशेष आज भी [[भारत]] के दक्षिण प्रवेश में विद्यमान है। [[महाराष्ट्र]] में इस सम्प्रदाय के पूर्वाचार्य संत ज्ञानेश्वर नाथसम्प्रदाय के अंतर्गत योगमार्ग के पुरस्कर्ता माने जाते हैं, उसी प्रकार [[भक्तिमार्ग]] में वे विष्णुस्वामी संप्रदाय के पुरस्कर्ता माने जाते हैं। फिर भी योगी ज्ञानेश्वर ने मराठो में 'अमृतानुभव' लिखा जो अद्वैतवादी शैव परम्परा में आता है। निदान, ज्ञानेश्वर सच्चे भागवत थे, क्योंकि भागवत धर्म की यही विशेषता है कि वह [[शिव]] और [[विष्णु]] में अभेद बुद्धि रखता है। | ||
ज्ञानेश्वर ने भगवदगीता के ऊपर मराठी भाषा मे एक 'ज्ञानेश्वर' नामक 10,000 पद्यों का ग्रंथ लिखा है। इसका समय 1347 वि. कहा जाता है। यह भी अद्वैत- वादी रचना है किंतु यह योग पर भी बल देती है। 28 अभंगों (छंदों) की इन्होंने 'हरिपाठ' नामक एक पुस्तिका लिखी है जिस पर भागवतमत का प्रभाव है। भक्ति का उदगार इससे अत्यधिक है। मराठी संतों में ये प्रमुख समझे जाते है। इनकी कविता दार्शनिक तथ्यों से पूर्ण है तथा शिक्षित जनता पर अपना गहरा प्रभाव डालती है। | ज्ञानेश्वर ने भगवदगीता के ऊपर मराठी भाषा मे एक 'ज्ञानेश्वर' नामक 10,000 पद्यों का ग्रंथ लिखा है। इसका समय 1347 वि. कहा जाता है। यह भी अद्वैत- वादी रचना है किंतु यह योग पर भी बल देती है। 28 अभंगों (छंदों) की इन्होंने 'हरिपाठ' नामक एक पुस्तिका लिखी है जिस पर भागवतमत का प्रभाव है। भक्ति का उदगार इससे अत्यधिक है। मराठी संतों में ये प्रमुख समझे जाते है। इनकी कविता दार्शनिक तथ्यों से पूर्ण है तथा शिक्षित जनता पर अपना गहरा प्रभाव डालती है। | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= | ||
|प्रारम्भिक= | |प्रारम्भिक=|प्रारम्भिक1 | ||
|माध्यमिक= | |माध्यमिक= | ||
|पूर्णता= | |पूर्णता= |
Revision as of 10:58, 15 December 2010
प्राचीन भागवत सम्प्रदाय का अवशेष आज भी भारत के दक्षिण प्रवेश में विद्यमान है। महाराष्ट्र में इस सम्प्रदाय के पूर्वाचार्य संत ज्ञानेश्वर नाथसम्प्रदाय के अंतर्गत योगमार्ग के पुरस्कर्ता माने जाते हैं, उसी प्रकार भक्तिमार्ग में वे विष्णुस्वामी संप्रदाय के पुरस्कर्ता माने जाते हैं। फिर भी योगी ज्ञानेश्वर ने मराठो में 'अमृतानुभव' लिखा जो अद्वैतवादी शैव परम्परा में आता है। निदान, ज्ञानेश्वर सच्चे भागवत थे, क्योंकि भागवत धर्म की यही विशेषता है कि वह शिव और विष्णु में अभेद बुद्धि रखता है। ज्ञानेश्वर ने भगवदगीता के ऊपर मराठी भाषा मे एक 'ज्ञानेश्वर' नामक 10,000 पद्यों का ग्रंथ लिखा है। इसका समय 1347 वि. कहा जाता है। यह भी अद्वैत- वादी रचना है किंतु यह योग पर भी बल देती है। 28 अभंगों (छंदों) की इन्होंने 'हरिपाठ' नामक एक पुस्तिका लिखी है जिस पर भागवतमत का प्रभाव है। भक्ति का उदगार इससे अत्यधिक है। मराठी संतों में ये प्रमुख समझे जाते है। इनकी कविता दार्शनिक तथ्यों से पूर्ण है तथा शिक्षित जनता पर अपना गहरा प्रभाव डालती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ