दीवान-ए-ग़ालिब
उनकी ख़ूबसूरत शायरी का संग्रह 'दीवान-ए-ग़ालिब' के रूप में 10 भागों में प्रकाशित हुआ है। जिसका अनेक स्वदेशी तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
ग़ालिब की शायरी संग्रह 'दीवान-ए-ग़ालिब' से कुछ पंक्तियाँ[1]
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी, कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले
निकलना ख़ुल्द[2] से आदम[3] का सुनते आये थे, लेकिन
बहुत बेआबरू[4] हो कर तिरे कूचे[5] से हम निकले
हुई जिनसे तवक़्क़ो[6], ख़स्तगी[7] की दाद[8] पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्त-ए-तेग़े-सितम[9] निकले
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क़, जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते हैं, जिस काफ़िर पे दम निकले
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बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल[10] है दुनिया है मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।
होता है निहां[11] गर्द में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे।
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।
ईमां[12] मुझे रोके है, जो खींचे है मुझे कुफ़्र[13]
काबा[14] मेरे पीछे है कलीसा[15] मेरे आगे।
गो हाथ को जुम्बिश[16] नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे।
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आनन्द, कलीम दीवान-ए-ग़ालिब, तृतीय संस्करण 2009 (हिन्दी), मनोज पब्लिकेशंस, 110।
- ↑ स्वर्ग
- ↑ पहला मानव
- ↑ अपमानित
- ↑ गली
- ↑ आशा
- ↑ बिखरना
- ↑ प्रशंसा
- ↑ अत्याचार की तलवार से घायल
- ↑ बच्चों का खेल
- ↑ छिपा हुआ
- ↑ धर्म
- ↑ अधर्म
- ↑ मुस्लिम धर्म स्थल
- ↑ कलीसा
- ↑ हिलना