Talk:मन रोदन -दिनेश सिंह
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खग गीत --------------दिनेश सिंह
उड़ रे पंछी पंख फैलाकर नील गगन में तू ही स्वतन्त्र एक इस जग में कभी इस तरु पर कभी उस तरु पर चाहे_डाल कही पर डेरा_या कर ले कहीं बसेरा नहीं किसी का भय तुझको_नहीं किसी के बंधन में
गूंजे ध्वनि-हो जग विपिन मनोरम बहे मरुत मधुरम मधुरम ले गीत गन्ध चहुर्दिक उत्तम गा पिक मधुर गान पञ्चम स्वर में
उड़ रे पंछी पंख फैलाकर नील गगन में
कर नृत्य मुग्ध हो नर्तकप्रिय बरस उठे बन जल बादल बहे ह्रदय का अन्धकार नव प्रभात हो फिर जग में
जागे जग फिर एक बार हो हरित नवल मसल का संचार हो स्वप्न सजल सुखोन्माद फिर हँसे दिशि_अखिल के कण्ठ से_उठे ध्वनि आनन्द में
उड़ रे पंछी पंख फैलाकर नील गगन में "