चाय उद्यान दार्जिलिंग

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  • एक समय दार्जिलिंग अपने मसालों के लिए प्रसिद्ध था और अब चाय के लिए ही दार्जिलिंग विश्‍व स्‍तर पर जाना जाता है।
  • प्रत्‍येक चाय उद्यान का अपना-अपना इतिहास है। इसी तरह प्रत्‍येक चाय उद्यान के चाय की किस्‍म अलग-अलग होती है।
  • दूर-दूर तक फैले हरी चाय के खेत मानो जमीन पर हरी चादर फैली हो। दार्जिलिंग की पहाड़ी वादियों की स्वच्छ हवा और निर्मल आसमान बरबस ही दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र की मनोरम छटा को देखकर सैलानी एक बार आह भरे बिना नहीं रह सकते।
  • यहाँ जब रोडोडेन्ड्रन (स्यानिच नाम गुरांस) और मेग्नोलिया (चॉप) के फूल खिलते हैं तब यहाँ के प्राकृतिक दृश्य में चार चाँद लग जाते हैं और पर्यटकों का ध्यान बरबस अपनी ओर खींच लेता है।
  • कार्ट रोड के निर्माण के बाद लगभग सन 1841 में ब्रिटिश सेना के एक अधिकारी डाक्टर क्याम्पवेल दार्जिलिंग आए और उन्होंने ही यहाँ परीक्षण के तौर पर चाय की खेती शुरू की थी।
  • लगभग सन 1869 से ही इस क्षेत्र में सिन्कोना की खेती शुरू हुई जिससे कुनाइन औषधि तैयार की जाने लगी।
  • 1878 में दार्जीलिंग में लायड वोटानिकल गार्डन स्थापित हुआ और बर्च हिल पार्क 1879 में स्थापित किया गया।
  • वर्तमान में डार्जिलिंग में तथा इसके आसपास लगभग 87 चाय उद्यान हैं। इन उद्यानों में लगभग 50000 लोगों को काम मिला हुआ है।

चाय कि खेती

दार्जिलिंग के चाय बागान इस क्षेत्र की प्रमुख फ़सल हैं। दार्जिलिंग की चाय तो संसारभर में प्रसिद्ध है। इस समय भारत में करीब सात सौ चाय-कम्‍पनियाँ हैं जिनमें उत्‍पन्‍न होने वाली विभिन्‍न किस्‍मों की चाय 15 रुपये से 200 रुपये किलो तक बिकती है। पहाड़ी ढलानों पर सीढि़यों वाले खेतों में चाय की खेती होती है। चाय की पत्तियाँ चुने जाने की सुविधा के लिए चाय के पौधों को डेढ़ मीटर से अधिक नहीं बढ़ने दिया जाता। आठ-दस दिनों के अंतर पर पत्तियों को तोड़ लिया जाता है। चाय की कच्‍ची पत्तियों से लेकर पेय तैयार करने तक जिनती विधियां पूरी की जाती हैं, हमने उन्‍हें दार्जिलिंग के चाय बागानों में देखा। चाय चुनने का काम स्त्रियां ही करती हैं।


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