हिरण्मय

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‘दक्षिणेन तु नीलस्यः निषधस्योत्तरेणतु, वर्ष हिरण्मयं यब हैरण्वती नदी।
यत्र चायं महाराज पक्षिराट् पतगोत्तमः, यक्षानुगा धनिनः प्रियदर्शनाः।
महाबलास्तत्र जना राजन् मुदितमानसा, एकादशसहस्त्राणि वर्षाणां ते जनाधिप, आयु: प्रमाणं जीवन्ति शतानि दश पंच च, श्रृंगाणि च विचित्राणि त्रीण्येव मनुजाधिप।
एकं मणिमयं तत्र तथैकं रौक्ममद्भुतम् सर्वरत्ममयं चैकं भवनैरूपशोभितम्, तत्र स्वयं प्रभादेवी नित्यं वसति शांडिली’।[1]

  • विष्णुपुराण[2] में हिरण्य को रम्यक के उत्तर ओर उत्तरकुरू के दक्षिण में बताया गया है-

‘रम्यकंचोत्तरं वर्ष तस्यैवानु हिरण्मयम्,
उत्तराः कुरवःश्चैव तथा वै भारत तथा’।

  • इस प्रकार इसकी स्थिति साइबेरिया के दक्षिण भाग मंगोलिया के परिवर्ती प्रदेश में मानी जा सकती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, भीष्मपर्व महाभारत 9, 5-6-7-8-9-10
  2. विष्णुपुराण 2, 3, 13

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