दिलवाड़ा जैन मंदिर

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समुद्र तल से लगभग साढ़े पाँच हजार फुट ऊंचाई पर स्थित राजस्थान की मरूधरा के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू पर जाने वाले पर्यटकों, विशेषकर स्थापत्य शिल्पकला में रुचि रखने वाले सैलानियों के लिए इस पर्वतीय पर्यटन स्थल पर सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र वहाँ मौजूद देलवाड़ा के प्राचीन जैन मंदिर है।

इतिहास

पूरे देश में विख्यात ये मंदिर 11वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान चालुक्य राजाओं वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा 1231 ई.में बनवाया गया था। जैन वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप दो प्रसिद्ध संगमरमर के बने मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाते हैं इस पर्वतीय नगर के जगत् प्रसिद्ध स्मारक हैं। विमलसाह ने पहले कुंभेरिया में पार्श्वनाथ के 360 मंदिर बनवाए थे किंतु उनकी इष्टदेवी अंबा जी ने किसी बात पर रुष्ट होकर पाँच मंदिरों को छोड़ अवशिष्ट सारे मंदिर नष्ट कर दिए और स्वप्न में उन्हें दिलवाड़ा में आदिनाथ का मंदिर बनाने का आदेश दिया। दिलवाड़ा जैन मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। पूरे देश में विख्यात ये मंदिर 11वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान चालुक्य राजाओं के संरक्षण में बने थे। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं।

आकर्षणों का केंद्र

जैन मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने है। पाँच मंदिरों के इस समूह में विमल वासाही टेंपल सबसे पुराना है। इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है। अपने ऐतिहासिक महत्व और संगमरमर पत्थर पर बारीक नक्काशी की जादूगरी के लिए पहचाने जाने वाले राज्य के सिरोही जिले के इन विश्वविख्यात मंदिरों में शिल्प-सौंदर्य का ऐसा बेजोड़ खजाना है, जिसे दुनिया में अन्यत्र और कहीं नहीं देखा जा सकता। यहाँ पाँच मंदिरों का एक समूह है, जो बाहर से देखने में साधारण से प्रतीत होते हैं। फूल-पत्तियों व अन्य मोहक डिजाइनों से अलंकृत, नक्काशीदार छतें, पशु-पक्षियों की शानदार संगमरमरीय आकृतियां, सफेद स्तंभों पर बारीकी से उकेर कर बनाई सुंदर बेलें, जालीदार नक्काशी से सजे तोरण और इन सबसे बढ़कर जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं। विमल वसही मंदिर के अष्टकोणीय कक्ष में स्थित है।

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