शिक्षक दिवस

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भारत के द्वितीय राष्ट्रपति, शैक्षिक दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिवस, 5 सितम्बर के दिन शिक्षक दिवस के रूप में सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है। ऐसा ही कहा गया है की गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता, गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माहीहिंदू पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन को गुरु दिवस के रूप में स्वीकार करते हैं। विश्व के विभिन्न देश अलग-अलग तारीख़ों में शिक्षक दिवस को मानते हैं। बहुत सारे कवियों, गद्यकारों ने कितने ही पन्ने गुरु की महिमा में रंग डाले हैं।

शिक्षक दिवस

गुरु, शिक्षक, आचार्य, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को व्याख्यातित करते हैं जो हमें ज्ञान देता है, सिखाता है। इन्हीं शिक्षको को धन्यवाद देने के लिए एक दिन है जो की 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में जाना जाता है। सिर्फ़ धन को दे कर ही शिक्षा हासिल नहीं होती बल्कि अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और विश्वास, ज्ञानार्जन में बहुत सहायक होता है।[1]

शिक्षक दिवस को हम सभी मनाते आए हैं। लेकिन इस दिन को मनाना तभी सही मायने में सार्थक सिद्ध होगा जब आप अपने शिक्षक के प्रति सही नजरिया रखें। हमारे देश में पिछले कुछ ही समय में ऐसी कई घटनाएँ घटी हैं जो आपके व्यवहार, वातावरण और संस्कारों के अनुरूप नहीं हैं। चाहे वह घटना 'सभरवाल कांड' हो या फिर किसी शिक्षक द्वारा बच्चे के कपड़े उतारकर उसे दंडित करना हो।

महत्व

'शिक्षक दिवस' कहने-सुनने में तो बहुत अच्छा प्रतीत होता है। लेकिन क्या आप इसके महत्व को समझते हैं। शिक्षक दिवस का मतलब साल में एक दिन बच्चों के द्वारा अपने शिक्षक को भेंट में दिया गया एक गुलाब का फूल या ‍कोई भी गिफ्ट नहीं है और यह शिक्षक दिवस मनाने का सही तरीका भी नहीं है।

आप अगर शिक्षक दिवस का सही महत्व समझना चाहते है तो सर्वप्रथम आप हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि आप एक छात्र हैं, और ‍उम्र में अपने शिक्षक से काफ़ी छोटे है। और फिर हमारे संस्कार भी तो हमें यही सिखाते है कि हमें अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए। हमको अपने गुरु का आदर-सत्कार करना चाहिए। हमें अपने गुरु की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। अगर आपने अपने क्रोध, ईर्ष्या को त्याग कर अपने अंदर संयम के बीज बोएं तो निश्‍चित ही आपका व्यवहार आपको बहुत ऊँचाइयों तक ले जाएगा। और तभी हमारा शिक्षक दिवस मनाने का महत्व भी सार्थक होगा। [2]

कबीर के शब्दों में

संत कबीर जी के शब्दों से भारतीय संस्कृति में गुरु के उच्च स्थान की झलक मिलती है। भारतीय बच्चे प्राचीन काल से ही आचार्य देवो भवः का बोध-वाक्य सुनकर ही बड़े होते हैं। माता पिता के नाम के कुल की व्यवस्था तो सारे विश्व के मातृ या पितृ सत्तात्मक समाजों में चलती है परन्तु गुरुकुल का विधान भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता है।

शिक्षक दिवस के इस शुभ अवसर पर उन शिक्षकों को हिंद-युग्म का शत शत प्रणाम जिनकी प्रेरणा और प्रयत्नों की वज़ह से आज हम इस योग्य हुए कि मनुष्य बनने का प्रयास कर सकें। [3] कबीर जी ने गुरु और शिष्य के लिए एक दोहा कहा है कि- गुरू गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरू आपने गोविंद दियो बताय।[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शिक्षक दिवस (हिन्दी) (एच टी एम एल) हिन्दी की प्रसिद्ध रचनायें। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2010
  2. शिक्षक दिवस का महत्व (हिन्दी) (एच टी एम) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2010
  3. शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रेमचंद की कहानी 'प्रेरणा' (हिन्दी) (एच टी एम एल) आवाज़। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2010
  4. गुरु गोविंद दोउ खड़े (हिन्दी) (एच टी एम एल) उड़न तश्तरी। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2010

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